श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

मूल्यवान क्षण जीवन के

जिंदगी के वे क्षण मूल्यवान है जिनमें हमें आत्म हित के अवसर प्राप्त होते हैं, इनमें भी वे क्षण अधिक मूल्यवान है जिनका हम सदुपयोग करते हैं। इनमें भी वे क्षण अधिक मूल्यवान है जिनको हम साकार कर लेते हैं। वे समझदार होते हैं जो कल पर नहीं आज पर विश्वास रखते हैं। कल का भरोसा नहीं। आज और अब के सिद्धान्त पर चलने वाला सफल होता है, उपलब्धि पाता है। ‘जिसने कर लिया सो काम, भज लियो सो राम’ भगवान् आदिनाथ को नीलांजना की मृत्यु देख वैराग्य हुआ और वैराग्य होते ही वन की राह ले ली। क्षण भर की देरी नहीं की। ‘शुभस्य शीघ्रं’ शुभ कार्य को शीघ्र कर लेना चाहिए। यदि धर्म कार्यों में आपका उपयोग लग रहा है आप धर्म कार्यों में तत्परता से भाग ले रहे हैं बस आपके जीवन के वे ही क्षण मूल्यवान है।

बिना विचारे आत्म हित के पथ पर गमन नहीं हो पाता। वैराग्य होते ही आदि प्रभु विचारों में डूब गये। प्रायः व्यक्ति वृद्ध भी हो जाते हैं तो भी आत्महित का भाव नहीं हो पाता। सारी की सारी सृष्टि आदि प्रभु के वैराग्य का दृश्य देख चीख रही थी। परंतु वे सौम्य मुद्राधारी प्रभुवर चले जा रहे थे। वन में पहुँचते ही निग्रंथ हो गये। किसी ने कहा- इतनी जल्दी क्यों प्रभु? दुनिया भर को देखा निज को नहीं निहारा। अब संकल्पित हूँ स्वयं को देखने के लिए। जब दृष्टि अंदर की ओर हो तो आत्म हित का पथ प्रारंभ हो जाता है बाहर की दृष्टि सबको देख लेती है निज आतम वैभव को नहीं देख पाती। बाहर की दृष्टि पर द्रव्यों को देखती है और वह बहिरात्म अवस्था उत्पन्न करती है। जब तक दुनिया को देखेंगे कल्याण नहीं होगा कभी न कभी तो अपने आप को देखना ही पड़ेगा क्योंकि आत्म दर्शन के बिना कल्याण संभव नहीं है। अनादि काल से इस आत्म तत्व की भटकन, पर द्रव्यों को देखने के कारण ही हो रही है जो आत्मा अपने आप को देख लेती है वह अपने को पा लेती है। आदि प्रभु ने यही कहा- अभी तक परद्रव्यों को बहुत देखा परंतु अब निज आत्म तत्व को देखने जा रहा हूँ। अब पर में नहीं निज में रमूंगा और निज स्वात्मा की उपलब्धि करूंगा।

जिंदगी को पा लेने की यही कीमत है कि हम उस जिंदगी का उपयोग निज आत्मान्वेषण में करे। बस आत्माविष्कार के वे ही क्षण प्रयोजनीय है, मूल्यवान है, उनकी कीमत करें। यही जीवन को पाने का सार है।

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