श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

शाखा समाचार – इंदौर

🙏अष्टानिका पर्व ( 108 मडंलीय सिद्ध चक्र महामंडल विधान एवं रथार्वतन महोत्सव ) का आयोजन -इंदौर 🙏

अष्टानिका पर्व एक वर्ष में तीन बार -कार्तिक, फागुन और आषाढ़ के महीनों की अंतिम अष्टमी शुक्ला से पूर्णिमा तक चलने वाला आठ दिवस का यह पर्व है ,इस पर्व के आठ दिनों तक मुख्यतः सिद्ध भगवान का सिद्ध चक्र मंडल विधान का आयोजन किया जाता है जिसमें हम सिद्ध भगवान की आराधना करते हुए अपने कर्मों से मुक्त होने एवं सुख और शांति की भावना भाते हैं
जैन परंपरा में सिद्ध चक्र महामंडल विधान का विशेष महत्व है (मंडल- जिसमें एक वृताकार मंडल को चित्रांकित किया जाकर विधान किया जावे तथा महामंडल -जिसमें 108 मंडलों के वृताकार मंडलों का निर्माण किया जाकर विधान किया जावे )इसे अष्टानिकी पूजा के रूप में जाना जाता है, ऐसा कहा जाता है कि सिद्ध चक्र विधान में समस्त पूजाएं समाहित हो जाती है, भाव विशुद्धि के साथ इस विधान का अनुष्ठान करने से घर गृहस्थी के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ऐसी मान्यता है कि ग्रहस्थी के जीवन भर में कोई ज्ञात अज्ञात पापो के प्रायश्चित के लिए एक बार इस विधान को अवश्य करना चाहिए ,इसे सर्व सिद्धिदायी और मंगलकारी विधान के रूप में माना जाता है
महासती मैना सुंदरी द्वारा इस विधान के अनुष्ठान से अपने पति श्रीपाल का कुष्ठ रोग मिटाने की कथा जगत्प्रसिद्ध है यहीं कारण है कि आज प्रत्येक श्रावक अपने जीवन में कम से कम एक बार यह विधान करने का मनोभाव
रखता है!
धर्म नगरी के नाम से विख्यात शहर- इंदौर में संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य निर्ग्रन्थ गौरव मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज के ससंघ(पूज्य मुनिश्री 108संधानसागर जी मुनिराज एवं मुनिश्री निर्वेश सागर जी महाराज) द्वारा दिनांक 7-11-24 से 14- 11- 24 तक इस महामंडल विधान का संस्कृत भाषा में आयोजन किया गया, इसके प्रथम दिन महाराज साहब के सानिध्य में मोहता भवन परिसर (जंजीर चौराहा )से कार्यस्थल विजय नगर चौराहा तक करीब 3 किलोमीटर की घट यात्रा बड़ी धूमधाम से बैंड बाजों एवं 108 भव्य वेदियों के सहित निकाल कर विधान का शुभारंभ किया गया, आयोजन स्थल पर 108भव्य वेदियों में 108जिन प्रतिमाओं के समक्ष108विशाल मंडल बनाया जाकर अकृत्रिम जिन जिनालयों( मन्दिरों)का निर्माण किया गया और संस्कृत के वेद मंत्रो ,तंत्र यंत्रों के बीजाक्षरो के उच्चरणों से उनमें प्रतिमाओं को स्थापित किया गया,इन प्रत्येक मंडल पर 10 से 12 इंद्र इंद्राणियों सहित लगभग 4000 श्रावक व श्राविकाओं द्वारा इस विधान में भाग लिया गया ,
इस प्रकारका108महामंडलो का विधान भारत वर्ष में प्रथम बार श्री सम्मेद शिखर जी में किया गया था किन्तु वहां पर इसके साथ रथार्वतन महोत्सव का कार्य किन्हीं कारणों से सम्पन्न नहीं हों सका, किन्तु इस बार यहां होने वाला आयोजन ऐसा था जिसमें 108 कृत्रिम जिन जिनालयों ( मन्दिरों) के निर्माण के साथ साथ 108महाविधान मंडलों के कार्य के साथ साथ रथार्वतन महोत्सव के कार्य को भी सम्पन्न किया गया, यह इंदौर निवासियों के लिए ही नहीं बल्कि सभी जैनियो के लिए विशेष तोर पर इस विधान में शामिल होने वाले श्रावक एवं श्राविकाओं के एक लिए एक सौभाग्य की बात रही है, विधान में प्रत्येक दिन प्रातः प्रतिक्रमण ,भावना योग एवं सभी प्रतिमाओं के अभिषेक व शांतिधारा ,नित्य पूजन ( नंदीश्वर दीप एवं नव देवताओं की )के पश्चात विधान का कार्यक्रम संपन्न किया गया जिसके अंतर्गत 8 दिनों में 2040 मंत्रों के 18,360 जापों से सभी श्रावक आनंद व प्रफुल्लित हो गये ! प्रतिदिन होने वाले अभिषेक एवं शांति धारा से लगभग 8 से 10 लाख रुपए की राशि प्राप्त होती थी इस प्राप्त राशि को सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में दिए जाने हेतु योजना बनाई गई ,दिनांक 10 -11 -24 को प्राप्त राशि को प्राचीन तीर्थ जीर्णोधार योजना के कार्य में तथा दिनांक 13 -11 -24 को प्राप्त राशि को जीव दया में हेतु देने की घोषणा की गई ,इस प्रकार से इस मद में प्राप्त राशि को वास्तविक धार्मिक कार्यों में लगाया जाना बहुत ही पुणर्याजक माना गया, सभी श्रावकों एवं श्राविकाओं द्वारा इस उत्तम कार्य की बहुत बहुत अनुमोदना की गई,प्रमाण सागर जी महाराज द्वारा अपने प्रवचनों में बताया गया कि पूजा सामग्री मन्दिर के पूजारी को ना देकर गोशालाओ में भेजनी चाहिए और पूजारी को उसकी एवज में कुछ राशि दे देनी चाहिए, इसी के तहत सिद्ध चक्र विधान के उपयोग में आईं करीब 15 टन पूजा सामग्री में से 5 टन सामग्री 12-11-24 को गोशाला कों भेज दिया गया और शेष सामग्री को विधान के पश्चात भेजा जाएगा!
सांयकाल प्रतिदिन शंका समाधान के पश्चात महाआरती एवं महाभक्ति का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था जिसमें भी करीब 3 से 4 हज़ार श्रावक भाग लेते थे ये सभी कार्यक्रम इस आयोजन के चार चांद लगने का मुख्य कारण रहे !
8वें दिन (14-11-24)के विधान संपन्न होने के पश्चात हवन के रूप में विश्व शांति महायज्ञ के तहत 108अहुतियां दीं जाकर विधान पूर्ण होने की घोषणा की गई,
इसके पश्चात 15-11-24 को 108 विशेष आकर्षक रथों द्वारा रथावर्तन महोत्सव मनाया गया, जिसमें108रथो में 108 प्रतिमाओं को विराजमान कर विजयनगर कार्यस्थल से एल आईं जी, पाटनीपुरा,आस्था टॉकीज , भमोरी,रसोमा चौराहा ,होटल वोब से पुनः समारोह के आयोजन स्थल पर करीब 4 किलोमीटर की यात्रा चार घंटे में एक विशाल जुलूस के रूप में सम्पन्न की गई ! इन रथों में 2 स्वर्ण एवं 35 रजत सहित 108 रथ थे जिनमें से कुछ रथ 150 वर्ष पुराने भी थे, ये रथ राजस्थान , गुजरात, बिहार एवं उत्तर प्रदेश से जुलूस में शामिल किये जाने हेतु मंगवाये गये थे,इन108रथो में से 4 रथ ऐसे थे जिन्हें चलाने/हांकने के लिए किसी ट्रेक्टर का प्रयोग ना करके रथ को लेने वाले लाभार्थी के परिवार के सदस्यों एवं श्रावक श्राविकाओं द्वारा ही चार किलोमीटर तक खेचा गया,इन 108 रथों में से एक रथ ( क्रम संख्या -41) लेने का हमें भी सौभाग्य प्राप्त हुआ, इस रथार्वतन महोत्सव कों देखने एवं भाग लेने के लिए करीब एक लाख लोग विभिन्न शहरों , प्रदेशों एवं विदेशों से एकत्रित हो कर आनन्द व प्रफुल्लित हो गये।
हम पिछले 20 वर्षों से चातुर्मासो के विधानों में नियमित रूप से भाग लेते रहे किंतु इस वर्ष धर्मनगरी इंदौर एवं श्री 108 श्री प्रमाण सागर जी महाराज के आशीर्वाद से यह चातुर्मास हमारे लिए धार्मिक दृष्टि से विशेष रहा, इस चतुर्मास में हमें तीन विधान सामूहिक रूप से (भक्तांबर विधान, दसलक्षण विधान एवं
सिद्ध चक्र महामंडल विधान )भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ, पिछले सभी विधानों में एक मंडल बनाया जाकर विधानों का आयोजन किया जाता रहा किंतु इस सिद्ध चक्र महामंडल विधान में 108 कृत्रिम जिन जिनालयों को बनाया जाकर 108 महामंडलों को बनाया गया तथा समापन के समय 108 रथो के रथार्वतन महोत्सव में करीब एक लाख श्रावक एवं श्राविकाओं सहित दर्शकों ने इस अन्तिम दिन की शोभायात्रा में भाग लिया जो बहुत ही आनंदित एवं प्रफुल्लित था!

अशोक कुमार जैन (श्रावक)
भू अ -शाखा, जयपुर

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