श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

सादा जीवन उच्च विचार

एक बार 108 मुनि श्री प्रमाण सागर जी का शंका समाधान का कार्यक्रम चल रहा था तो एक महिला ने उनके सामने अपनी शंका रखी। एक कथन है “सादा जीवन उच्च विचार”। तो क्या मुनिवर सादा जीवन जीने वालों के ही उच्च विचार हो सकते हैं? जो एक अच्छा उच्च जीवन जी रहा है, उसके विचार उच्च नहीं हो सकते हैं क्या? मुनिवर पहले मुस्कराए और बोले, ये किसने कहा कि उच्च जीवन जीने वाले लोगों के उच्च विचार नहीं हो सकते, अवश्य हो सकते हैं। जो व्यक्ति उच्च विचार रखता है, उसके जीवन में सादगी तो होगी ही जैसे कि हमारे देश में श्री रतन टाटा जी को ही देखिए, वे कितने धनी व्यक्ति हैं, एक बड़े उद्योगपति हैं, लेकिन उनके जीवन में सादगी व विचारों में उच्चता है। वे अपना जीवन परमार्थ में लगाए हुए हैं। वास्तव में मुनिवर के इस उत्तर से मुझे भी बहुत अच्छा महसूस हुआ।

इस समय जगह-जगह चातुर्मास कार्यक्रम के दौरान मुनिवर के प्रवचनों के माध्यम से ज्ञान की गंगा बहाई जा रही है। हमें भी इस बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहिए। अगर हम प्रत्यक्ष रूप से उनके समक्ष जाकर ज्ञान गंगा का लाभ नहीं उठा सकते हैं तो टेलीविजन या मोबाइल फोन के माध्यम से हमें यह लाभ अवश्य उठाना चाहिए। हो सकता है यह सभी के लिए संभव नहीं हो। भौतिकवादी युग में व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों के कारण भाग-दौड़ में लगा है। परिवार के लालन-पालन और सभी प्रकार की सुविधाएं जुटाने के कारण वह अधिक से अधिक आय अर्जित करना चाहता है, इसलिए धर्म के प्रति उसका इतना रूझान नहीं रह पाता है। लेकिन अनेक महिलाएं एवं पुरुष समय होते हुए भी अपने अन्य सभी कार्यक्रमों को प्राथमिकता पर रखते हैं, लेकिन धार्मिक कार्यों से संबंधित कार्यक्रमों में भागीदारी के समय वे या तो अस्वस्थ हैं, समय नहीं मिलता, या अन्य किसी भी प्रकार का कारण सामने रख देते हैं। इससे प्रतीत होता है कि धर्म के प्रति उनमें रूचि का अभाव है।

दूसरी तरफ कहा जाता है कि आजकल के बच्चे इतने व्यस्त हैं कि वे धर्म से दूर होते जा रहे हैं, उनमें संस्कारों की कमी है। उन्हें अपने धर्म और संस्कृति के प्रति कोई लगाव नहीं है। वे घर-परिवार को भी समय नहीं देते, सारा दिन मोबाइल में लगे रहते हैं, नौकरी और यार दोस्तों के साथ ही सारा समय बिता देते हैं।

इसमें बच्चों के साथ-साथ माता-पिता की भी गलती है क्योंकि उनमें से अधिकांश के परिवारों में धार्मिक वातावरण का अभाव रहा है। पारिवारिक परिवेश का बच्चों पर प्रभाव पड़ता है।

हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों लेकिन कुछ पल हमें धर्म के लिए अवश्य निकालने चाहिए। धर्म से व्यक्ति के अंदर विवेक जाग्रत होता है जिससे वह गलत कार्य करने में संकोच करेगा। धर्म का रसपान करने से विचारों में शुद्धि आएगी। जिस प्रकार व्यक्ति एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर जाने के लिए रेल या बस का टिकट लेता है उसी प्रकार अपने जीवन की यात्रा को पूरा करने के लिए हमें धर्म रूपी टिकट लेना चाहिए। धर्म हमारे कर्मों का क्षय करता है। धर्म का अनुसरण करने से विचारों में उच्चता और विचारों की उच्चता से जीवन में सादगी आएगी। किसी ने ठीक ही लिखा है—

पकड़ लो हाथ मेरा प्रभु, इस जगत में भीड़ भारी है।
कहीं खो न जाऊं इस जग में, ये जिम्मेदारी तुम्हारी है।।

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