काफी लंबे समय से अपने पिताजी स्वं श्री मंगतराम जी जैन के कारणो से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से महासभा की कार्य प्रणाली को देखता रहा, उस समय के पदाधिकारियों का व्यवहार,आचरण,भाषा काफी प्रेम व सौहार्दपूर्ण वातावरण की होती थी किंतु पिछले पांच सात वर्षों से इस वातावरण में इसके स्थान पर झूठ फरेब, अहंकार ,एक दूसरे के प्रति शंका तथा पद लोलुपता छल कपट तथा एक दूसरे को नीचे दिखाने की प्रतिस्पर्धा की तरफ बढ़ने लगी! माह सितंबर 2024 की पत्रिका आने के पश्चात मैंने पिछले 5-7 वर्षों की पत्रिका का आज पुनः अध्ययन किया और देखा महासभा एवं समाज दो गुटों में बढ़ता जा रहा है इसका श्री गणेश/ पृष्ठभूमि का अध्ययन किया जाने तथा यह कब से प्रारंभ हुआ तो पाया कि इसका प्रारंभ वर्ष 2018 में इंदौर में होने वाले चुनाव से पूर्व फॉर्म भरने की समय से हुआ !
(1) यह प्रथम प्रकरण था जब महासभा के अध्यक्ष पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित किए जाने पर श्री आर सी जैन साहब का नाम लिया जाकर 11 लाख रुपए की स्वीकृति प्राप्त होना बताया गया, श्रीमान अशोक जी (नौगांव वाले) ने अपने भाषण में कहा कि इसकी गारंटी श्री पवन चौधरी (अलवर वाले) ने ली है और श्रीमान अशोक जी ने कहा कि पवन जी यह कह रहे हैं कि यदि इसका भुगतान श्री आर सी जैन साहब नहीं करेंगे तो मैं करूंगा, उस मीटिंग में इन दोनों के अलावा श्री मान देवकीनंदन जी( पूर्व अध्यक्ष महासभा) आदि अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे तथा इस प्रकरण को पल्लीवाल पत्रिका में भी अनेक बार छापा गया ,इस संबंध में प्रथम पक्ष श्री आर सी जैन साहब (भूतपूर्व अध्यक्ष- महासभा)का कहना था कि मैरे द्वारा ऐसा कहा ही नहीं गया जबकि दूसरे पक्ष श्री अशोक कुमार जी( नौगांवा वाले) श्री पवन चौधरी (अलवर वाले) एवं श्री देवकीनंदन जी (पूर्व महासभा अध्यक्ष ) का कहना था कि हमारे सामने कहा गया !इसके पश्चात प्रथम पक्ष द्वारा कहा गया कि मेरे द्वारा 11 लाख से अधिक विभिन्न संस्थाओं को दिए जा चुके हैं इस संबंध में दूसरे पक्ष का कहना था कि 11 लाख राशि महासभा की कैश बुक में आने चाहिए थी जो महासभा के खाते में नहीं आई है,इस राशि की वसूली का क्या हुआ? अलवर चुनाव के दौरान दोनों पक्ष एक हो जाने के कारण अब वो सभी लोग उसकी वसूली करना भूल गए और इस प्रकरण को एक ठंडे बस्ते में डाल दिया गया ऐसा क्यों किया गया अवगत कराया जावे!
(2) इसके पश्चात जयपुर शाखा द्वारा वाटिका में समाज के बन्धुओं के द्वारा प्लाट खरीदने के माध्यम से उपलब्ध कराई गई लगभग 4000 वर्ग गज जमीन का चला इसमें भी जिन बन्धुओं द्वारा पूर्ण रूप से आर्थिक सहयोग दिया उन्हें कोई आपत्ति नजर नहीं आई किंतु जिनके द्वारा कोई भी आर्थिक सहयोग नहीं दिया गया उन्होंने इसमें अपने-अपने हिसाब से कमियां निकालना प्रारंभ कर दिया जिसके कारण इसमें निर्माण कार्य अभी तक प्रारंभ नहीं किया जा सका! मुझे अनेक सदस्य द्वारा जयपुर शाखा एवं महासभा की मिटिंग का हवाला देकर बताया गया कि कुछ घटक इसमें आर्थिक लाभ/ जमीन लेना चाहते थे किंतु यह बात कहीं पर लिखित रूप से देखने एवं पढ़ने को नहीं मिली ,वास्तव में यह प्रकरण यदि कोई है तो जयपुर शाखा से संबंधित है महासभा का इसमें कोई दखल होना उचित नहीं है
(3) इस संबंध में श्री ओमप्रकाश जी जैन( दांतिया वाले )वरिष्ठ एडवोकेट एवं श्री राजीव रतन जी( पूर्व महामंत्री) एवं श्री पवन चौधरी(अलवर वाले)तथा श्रीमान महेश जी( पूर्व महामंत्री) सहित अनेक लोगों ने महासभा का पैन कार्ड एवं रजिस्टर्ड नंबर का उपयोग किए जाने पर इस प्रकार से विरोध किया तथा इसे इललीगल बताया जाकर इस प्रकार लिखा जो हमे55 वर्षों में देखने को नहीं मिला, जबकि आज पल्लीवाल समाज के तीन भवन (जयपुर ,अलवर एवं कोटा में )लगभग 30 -35 वर्षों से संचालित है और इन तीनों में महासभा का रजिस्ट्रेशन एवं पैन कार्ड लगाया गया था जो आज तक चला आ रहा है इसके संबंध में इनको कोई परेशानी नहीं है किंतु अब वाटिका की जमीन लिए जाने पर ऐसा क्यों किया जा रहा है ये उक्त टिप्पणी से स्पष्ट है,यह घोर अपराध है एवं समाज को हानि पहुंचाने वाला है!
(4) पल्लीवाल पत्रिका में श्रीमान पारस जी (महामंत्री) द्वारा वाटिका की जमीन की रजिस्ट्री करा कर समाज के 4-00 लाख रुपए से अधिक के भुगतान किए जाने को इन सभी महानुभावों द्वारा किसी जानकारी के लिखना सही नहीं था, मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह रजिस्ट्री श्री राजेंद्र कुमार जी( कैमरे वाले) पूर्व शाखा अध्यक्ष एवं श्री देवेंद्र कुमार जी जैन (बरगामा वाले )पूर्व महामंत्री तथा श्री बनवारी लाल जी ( बरगमां वाले) अर्थ मंत्री द्वारा कराई गई किंतु आजकल ये सभी जमीन लेने का विरोध करने वालों के चहते हो रहे हैं इसलिए इसका नाम नहीं लिखा जाकर श्री पारस चन्द जी (महामंत्री) का नाम दुर्भावना से लिखा गया जो उनकी मानसिकता को दर्शाता है
(5) श्री राजीव रतन जी( पूर्व महामंत्री )द्वारा पत्रिका में इस वाटिका की जमीन के विषय में लिखा जाकर एक करोड रुपए का घोटाला श्री पारस चन्द जी (महामंत्री)द्वारा किया जाना बताया गया किंतु फिर अगली पत्रिका उन्हीं के द्वारा इसमें डेढ़ करोड़ रुपए का घोटाला किया जाना बताया गया, में इनसे पूछना चाहता हूं कि कुछ माह के अंतराल में 50 लाख रुपए की घोटाले में वृद्धि किस प्रकार हुई इसकी गणना किस प्रकार से एवं किस आधार से की गई,इस प्रकरण को लेकर मेरे द्वारा एक लेख पल्लीवाल पत्रिका में छापने हेतु श्रीमान प्रकाश चंद जी जैन (संपादक )को दिया गया था किंतु उन्होंने इसे पत्रिका में छापने की बात तो दूर रही लेने से ही इनकार कर दिया और कहा कि जमीन से सम्बंधित कोई भी लेख लेने से मुझे बड़े आदमियों द्वारा मना किया हुआ है इन्हीं सब कारणों से डिजिटल पत्रिका निकालने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी, मैं यहां पर सभी लोगों से खास करके श्री राजीव रतन जी ( पूर्व महामंत्री)से और समाज के कार्यकारिणी के सदस्यों से यह पूछना चाहता हूं कि आपने कभी इतनी बड़ी भूमि लेने का कोई प्रयास किया? किंतु ऐसा नहीं किया, जबकि कोई जो कार्य कर रहे हैं उनकी बुराइयां निकलना आसान है और वास्तविक कार्य करना बहुत कठिन कार्य है इनकी खुद की कार्य शैली किस प्रकार की है यह तो सभी ने हस्तिनापुर के चुनाव में देख लिया,
(6) वाटिका जमीन के सामने 30 फीट रोड एवं पट्टा नहीं लिए जाने के संबंध में अवगत कराना चाहता हूं कि अलवर ,जयपुर एवं कोटा तीनों शाखों के भवन भी 30 फीट रोड पर ही बने हुए हैं और इसके अलावा जयपुर में अनेक भवन (शिक्षा समिति का भवन ,आर ए एस भवन, हरियाणा भवन ,छात्रों के पी जी आदि )30 फुट की सड़क पर ही बने हुए हैं क्या ये इनको तुड़वाने की क्षमता रखते हैं, इसके अलावा अनेक कॉलोनी के मकान एवं संस्थाएं केवल रजिस्ट्री के आधार पर ही 25 -30 सालों से निर्मित निर्मित है , इसमें सरकार को कोई समस्या नहीं है तो इन लोगों को किस बात की समस्या पैदा हो रही है यह समझ के बाहर है
(7) इसके पश्चात एक नई परिपाटी जयपुर में अमृत महोत्सव के दौरान देखने को मिली जिसके तहत कार्यकारिणी के चुने हुए सदस्यों एवं समाज के आजीवन सदस्यों को आजीवन के लिए महासभा से निष्कासित किया जाना प्रारंभ किया गया ,इसके पश्चात एवं परिणाम स्वरुप अलवर एवं मथुरा में इसका विस्तार होता गया यह किसी समस्या का समाधान नहीं हों सकता अपितु विघटन को बढ़ा दिया देने वाला कार्य था इस पल्लीवाल पत्रिका में एक ग्रुप द्वारा एकाधिकार जमा लिए जाने के कारण अन्य किसी के लेख नहीं छापना तथा बिना किसी नियम के प्रकाशित किए ही राशि वसूल करने का गोरखधंधा देखने को मिला जिसके कारण दूसरे ग्रुप को इससे समानांतर में एक डिजिटल पत्रिका का प्रकाशन करना पड़ा। इस संबंध में यहां पर मेरा एक उदाहरण देना चाहूंगा जिसमें मेरे द्वारा पैदल यात्रा पर एक लेख लिखा गया लेख के बदले में मुझे श्री प्रकाश चंद्र जैन (संपादक) द्वारा ₹1500 लिए गए ,पता नहीं यह उनके द्वारा किसी अन्य(श्री मान चन्द्र शेखर जी) के कहने पर लिए गए या वो बैक डोर एंट्री से राशि वसूल करने का गोरखधंधा कर रहे थे जबकि इस प्रकार से यदि कोई नियम बनाए गए हो तो उन्हें पत्रिका में प्रकाशित किया जाना था मेरे द्वारा पिछले 5-6 वर्षों में किन-किन से राशि प्राप्त की गई जानकारी जाने पर कोई जानकारी नहीं दी गई
(8) महिला सहायता के पहले वालें खाते हस्तांतरित नहीं की जाने के विषय में पिछली पल्लीवाल पत्रिकाओं में पढ़ने को मिला कि श्री राजीव रतन जी (पूर्व महामंत्री )द्वारा 4-5 बैंक खाते हैं वर्तमान अर्थमंत्री को नहीं दिये गए जिससे महिला सहायता देने में परेशानी आ रही है ,इससे श्री भागचंद जी द्वारा एक जयपुर में पुराने खाते को पुनः संचालित कराया जाकर महिला सहायता की राशि देना प्रारंभ किया गया इसके पश्चात पल्लीवाल पत्रिका के खाता संख्या को बदल कर पत्रिका में दर्शाया गया एवं पत्रिका के खाते को सिज कराना और फिर भागचंद जी द्वारा संचालित खातों को
सिज करने का कार्य तेजी से होने लगा, ऐसा किये जाने से महिला सहायता का भुगतान नहीं होने के अलावा महासभा को कार्य करने में कठिनाई हो होना स्वाभाविक हे इसलिएअब महासभा को राशि देने वालों की सोच में भी अंतर आने का प्रभाव देखने को मिल रहा है जो समाज एवं महासभा दोनों के लिए घातक साबित होगा ,अब मथुरा की मीटिंग में श्री राजीव रतन जी (पूर्व महामंत्री) द्वारा 4-5 खातो को हस्तांतरित नहीं किए जाने के विषय में श्री महेश जी (पूर्व महामंत्री) द्वारा कोई उल्लेख एवं जवाब नहीं लिया गया जो दोहरी चाल एवं कार्य प्रणाली को बताता है
आगामी 5-7 वर्षों के काले अध्यायों के बिन्दु –
( 1) इस कार्यकारिणी के लगभग 2 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि कौन सी कार्यकारिणी नये बनाए गए सदस्यों को जोड़कर अगले चुनाव कराएगी तथा चुनाव कराए जाने के पश्चात वही मुख्य प्रश्न पुनः उठने वाला है की नई कार्यकारिणी में कौन से अध्यक्ष एवं महामंत्री को मनोनीत सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा ,क्योंकि इन दोनों पदों के पदाधिकारियों के मनोनीत के रूप में चयन को लेकर विघटन पहले ही प्रारंभ हो चुका है जो आगामी कार्यकारिणी के समक्ष बने रहने की पूर्ण संभावना बनी रहेंगी
(2) श्रीमान महेश चंद जी (पूर्व महामंत्री) द्वारा मथुरा मीटिंग के दौरान श्रीमान राजेंद्र जी( अध्यक्ष जयपुर शाखा) से यह निवेदन किया गया की शाखा का कार्यकाल पूर्ण हो गया है अतः यथाशीघ्र चुनाव कराए जावे,मैं यहां पर श्रीमान राजेंद्र जी से मात्र दो कारणों से चुनाव नहीं कराये जाने का निवेदन करता हूं ,प्रथम कारण- इस समय महासभा में इतना भयंकर जहर घुला हुआ है जो पिछले 50-55 वर्षों में देखने को नहीं मिला!आपको ज्ञात है कि जयपुर शाखा में भी इस महासभा के पश्चात दो ग्रुप चल रहे हैं ऐसी स्थिति में आगरा एवं अलवर की शाखों के वहां हुए चुनाव के बाद के विवाद यहां पर भी होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है ,दूसरा कारण यह है कि जयपुर शाखा सबसे बड़ी शाखा होने के कारण हर कोई इसमें अपना प्रभुत्व जमाना चाहता है इसी क्रियाकलाप के तहत खेड़ली, महुआ,मंडावर ,हिंडौन आदि जगहों के लोगों ने अपनी अपनी शाखों में नाम होने के पश्चात भी जयपुर शाखा के सदस्य बनकर एक निकृष्ट कार्य किया हुआ है,इस प्रकार महासभा में उनका पता खेड़ली, महुआ ,मंडावर ,हिंडौन आदि स्थानों का है जबकि विधान के नियम 34 के उपनियम 5 एवं 6 के में यह स्पष्ट लिखा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो महासभा का सदस्य है उसी स्थान से शाखा का सदस्य बन सकता है अन्य शाखा स्थान से नहीं जयपुर शाखा की सदस्यों की लिस्ट एवं महासभा की सदस्यों की लिस्ट का मिलन किए जाने पर पाया गया की अनेक सदस्य महासभा की लिस्ट में खेडली , महुआ,मंडावर ,हिंडौन आदि का पता अंकित है और उनकी शाखों में भी उनके नाम दर्ज है फिर भी उन्होंने जयपुर शाखा में अपना नाम विभिन्न पतो से अपने नाम लिखा रखा है यदि इसमें आवश्यक संशोधन नहीं किया गया तो नॉमिनेशन के समय ही कोई कोर्ट केस अथवा अन्य समस्या पैदा कर सकता है जिसकी जिम्मेदारी आपकी स्वयं की होगी !उस समय आप यह नहीं कह सकते कि इन्हें महासभा के लिए आजिवन निष्काशित किया हुआ है अतः कोर्ट अथवा इस हेतु समाज की कोई गठित समिति इनकी बात पर विचार नहीं कर सकती
अशोक कुमार जैन भूतपूर्व अध्यक्ष, शाखा जयपुर