ओम अर्हम नम:
उद्यानपालक आज एक नया संदेश लेकर राजा के पास पहुंचा। महाराज आज अपने उद्यान में भगवान महावीर आये हैं और वो बोल भी रहे हैं । मैंने सुना है कि आज वे धर्म का उपदेश देंगे ।राजा प्रसन्नता के सागर में तैरने लगा । वह स्वयं महासेन वन में गया और नागरिको को इसकी सूचना करा दी ।
इन्द्रभूति ने देखा हजारों लोग एक ही दिशा में जा रहे हैं । उसके मन में कौतुहल उत्पन्न हुआ । उन्होंने संदेश वाहक को लोकयात्रा का कारण जानने को भेजा । उसने आकर बताया कि आज यहां श्रमणों के नये नेता आये हैं । उनका नाम महावीर है और वे अपनी साधना द्वारा सर्वज्ञ बन गये हैं । आज उनका पहला प्रवचन होने वाला है ।
इन्द्रभूति तिलमिला उठे । ये श्रमण हमारी यज्ञ संस्था को क्षीण करने पर तुले हुए हैं । श्रमण नेता पार्श्व ने हमारी यज्ञ संस्था को काफी क्षति पहुँचाई है । जनता को इस प्रकार अपनी और आकृष्ट करने वाले इस नये नेता का उदय क्या हमारे लिए खतरे की घंटी नहीं है । मुझे इस उगते अंकुर को ही उखाड़ फेंकना चाहिए। यह चिनगारी है इसे फैलने का अवसर देना समझदारी नहीं होगी । मैं वहां जांऊ और इस श्रमण नेता को वैदिक धर्म में दीक्षित करूं।
इन्द्रभूति महासेन वन के बाहरी कक्ष में पहुंचे । समवसरण को देखा । उनकी आंखो में अद्भुत रंग रूप तैरने लगा । उन्हें लगा जैसे उनका अहं विनम्रता की धारा में प्रवाहित हो रहा है । पर परम्परा का मोह एक ही धक्के में कैसे टूट जाता । वे साहस बटोरकर महावीर के पास पहुंचे ।
भगवान ने इन्द्रभूति को देखा । अपनी आँखो में प्रवाहमान मैत्री की सुधा को उनकी आँखो में उंडेलते हुए बोले, गौतम इन्द्रभूति ! तुम आ गये ?
इन्द्रभूति प्रतिमा की भांति निश्चल मौन खड़े रहे । उनके मन में विकल्प उठा महावीर मेरा नाम कैसे जानते हैं ? मैं कभी इनसे मिला नहीं । मेरा इनसे कोई परिचय नहीं । फिर इन्होंने कैसे कहा इन्द्रभूति ! तुम आ गये ।
इन्द्रभूति अपने ही गुंथे हुए विकल्प के जाल में उलझ रहे थे । भगवान ने सुलझाव की भाषा मे कहा – इन्द्रभूति तुम्हे जीव के अस्तित्व के बारे में सन्देह है ! क्यों ठीक है न ।
इन्द्रभूति के पैरो के नीचे से धरती खिसक गई । वे आवाक रह गये । अपने गूढ संदेह का प्रकाशन उनके लिए पहेली बन गया ।
भगवान फिर उन्हें संबोधित कर कहा तुम्हें अपने अस्तित्व में संदेह क्यों ? जिसका पूर्व और पश्चिम नहीं उसका मध्य कैसे होगा ? वर्तमान का अस्तित्व ही अतीत और भविष्य के अस्तित्व का साक्ष्य है । एक परमाणु भी अपने अस्तित्व से च्युत नहीं होता तब मनुष्य अपने अस्तित्व से च्युत कैसे होगा । यह अमिट लौ है, जलती रही और जलती रहेगी । इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता ।
सूक्ष्म तत्व को अस्वीकार करें तो गति तत्व और आकाश का स्वीकार कैसे किया जायेगा ? यह जीव इन्द्रियातीत सत्य है । इसे इन्द्रियों से अभिभूत मत करो, किन्तु अतीन्द्रिय ज्ञान से इसका साक्षात करो ।
श्रमण महावीर (आचार्य महाप्रज्ञ से चुनी हुई)
🙏🙏 विनीत 🙏🙏
हरीश मधु जैन बक्शी ( हरसाना)
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