श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

महासभा में उत्पन्न गतिरोध -विवेचन

दिनांक 30 अगस्त 2024 को मथुरा के मधुवन होटल में समाज के कुछ महानुभावों की एक मीटिंग सम्पन्न हुई थी, जिसे उन्होंने अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा की कार्यकारिणी की मीटिंग बताया गया था। महामंत्री के विरुद्ध प्रतिनिधि सभा द्वारा दिनांक 26 अगस्त 2024 को अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने के कारण उन्हें मीटिंग बुलाने का कोई अधिकार नहीं था। उनके द्वारा आहूत की गई मीटिंग वैधानिक नहीं मानी जा सकती है। इस अवैधानिक मीटिंग में लिए गये सभी निर्णय अवैधानिक होने के कारण मान्य नहीं है। विधिक रूप से शून्य है।
कार्यकारिणी को अध्यक्ष और महामंत्री को उनके पद से पदच्युत करने का कोई अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल और केवल प्रतिनिधि सभा का होता है। यदि कार्यकारिणी को यह अधिकार होता तो भूतकाल में अनेकों बार इन तीनों पदाधिकारियों में से किसी भी पदाधिकारी को हटाया जा सकता था। इन तीनों को प्रतिनिधि सभा द्वारा चुना गया है, उसके द्वारा ही हटाया जा सकता है।
मथुरा मीटिंग में कई वक्ताओं द्वारा भाषण दिये गये थे और कहा गया था कि निष्पक्ष व्यक्तियों की कमेटी बनाकर मामले को सुलझा लिया जाए तो अच्छा रहेगा। संगठन को मजबूत करने व एकता की बातें की गई थी किन्तु निर्णय लिया गया 5 व्यक्तियों को महासभा की आजीवन सदस्यता हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त करने का, यह कैसी एकता, यह तो समाज को तोड़ने का कार्य हुआ। यह भी कहा गया कि श्री शिखर चन्द जी सिंघई, श्रीचन्द जैन और 3-4 अन्य लोगों के अलावा निष्पक्ष व्यक्ति उस समिति में लिए जाए, तो क्या बोलने वाले स्वयं श्री देवकी नन्दन जी, श्री सुमत प्रकाश जी निष्पक्ष कहलाऐंगे ? पूर्व पदाधिकारी सभी निष्पक्ष नहीं रहे, क्योंकि इनमें सभी दोनों तरफ विभाजित हैं। पूर्व में हमने श्री देवकी नन्दन जी, अशोक जी नौगाँवा, श्री रमेश जी पल्लीवाल के साथ निष्पक्षता से समझौते की बातें की थी, किन्तु मथुरा मीटिंग में जब यह कहा गया कि हम समाज को एक होने नहीं देना चाहते हैं, तब श्री देवकी जी एवं श्री अशोक जी को यह बोलना चाहिए था कि हमने जिसमें श्रीचन्द जैन भी ये प्रयास किये थे। मेरे द्वारा हमेशा पल्लीवाल समाज की एकता को बल दिया गया है, चाहे मैं समाज में किसी पद पर रहा हूँ या अब सामान्य सदस्य हूँ। मेरे लिए मीटिंग में यह भी कहा गया था कि मैं पदलोलुप हूँ। आप सभी की जानकारी में मैं यह लाना चाहूँगा कि मैं वर्ष 2011 के बाद समाज के किसी भी पद पर नहीं रहा हूँ और 2007 के बाद मैंने समाज का कोई चुनाव भी नहीं लड़ा। वर्ष 2004 में महामंत्री पद का चुनाव लड़ा था, उसमें समाज द्वारा महामंत्री पद का दायित्व सौंपा गया। पुनः वर्ष 2007 में महामंत्री पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुआ था। इस तरह 7 वर्ष तक महामंत्री पद के दायित्व का निर्वहन किया गया था। इस कार्यकारिणी में भी किसी भी प्रकार के पद प्राप्त करने की दूर-दूर तक भी सोच नहीं थी पद प्राप्त करने के लिए किसी भी वर्तमान पदाधिकारी या अन्य व्यक्ति से इच्छा जाहिर नहीं की, अतः पदलोलुप कहना मिथ्या कथन है।
मुरैना के एक महानुभाव द्वारा इसी मीटिंग में मेरे ऊपर यह आक्षेप लगाए कि मैंने उनसे अलवर मीटिंग में उपस्थित होने के लिए यह कहकर दबाव बनाया कि कार्यकारिणी में उनकी पत्नी का महिला संयोजिका का पद सुरक्षित है। उन्होंने मीटिंग में यह भी बताया कि उन श्रीमान् ने जब मुझसे फोन पर रात्रि में बातें की थी, तब उन्होंने अपने पुत्र के द्वारा मेरे फोन के वार्तालाप को टेप करा लिया था। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि यह श्रीमान् आपराधिक कृत्य भी करते हैं और वह भी अपने पुत्र द्वारा ऐसा गैर कानूनी कार्य करवा रहे हैं।
मैंने मुरैना के इन श्रीमान् को पत्र लिखकर उनसे कहा था कि अपने पुत्र को तो अपने जैसा मत बनाओ, आपको वह टेप मीटिंग में अवश्य सुनाना चाहिए था जिससे वहाँ उपस्थित महानुभावों को वास्तविकता का तो मालूम पड़ता। मैंने उनको लिखा कि श्रीमान जी मैंने तो रात्रि में आपको फोन किया नहीं था, आपका ही फोने मेरे पास आया था। वे मुझसे अलवर सम्मेलन की जानकारी चाह रहे थे, मैंने उनको अलवर सम्मेलन के बारे में जानकारी दे दी, किन्तु वह अपने हिसाब से जवाब मुझसे चाह रहे थे। मेरा पत्र उनको मिल गया और उन्होंने मुझसे वाट्सअप पर क्षमा याचना कर ली थी।
उपरोक्त वक्ताओं द्वारा लगाये गये सभी आक्षेप आधारहीन है। जिनका कोई औचित्य नहीं था।
अभी समय है महासभा में हुये इस गतिरोध को समाप्त करने, हमारे संगठन को सुदृढ़ करने के लिए ठोस प्रयास होने चाहिए, उसके लिए निष्पक्ष समाज सेवियों को समाजहित में आगे आकर प्रयास करने चाहिए।

श्री चन्द जैन पूर्व महामंत्री
अशोक विहार, जयपुर

This Post Has One Comment

  1. नरेन्द्र कुमार जैन डीड राईटर अलवर

    माननीय अलवर में अधिवेशन जो निर्णय हुए वो किसी तरह से उचित नहीं थे। उसमे गलत निर्णय लेकर गलती की शुरुआत हुई जिससे मथुरा मीटिंग का जन्म हुआ। आप भली भांति जानते हैं कि क्रिया की प्रतिक्रिया तो होगी ही।
    जय जिनेन्द्र

Leave a Reply