विश्व में शांति स्थापित हो, ऐसा हम सभी चाहते हैं, किन्तु आज अनेक देशों में अशांति व्याप्त है। हमने इतिहास में विश्व युद्धों, अरब-इजराइल, इराक-ईरान, भारत-चीन, और भारत-पाकिस्तान के युद्धों के गंभीर परिणाम देखे हैं। इसके बावजूद, आज भी कई देश अणु, परमाणु बम, विनाशकारी आयुधों, रॉकेट, और मिसाइलों के उपयोग के लिए तैयार खड़े हैं, जिससे सम्पूर्ण मानव जाति के विनाश की संभावना बनी रहती है। अलकायदा और आईएसआईएस जैसे उग्रवादी, आतंकी संगठनों द्वारा विभिन्न देशों में फैलाई गई आतंकवाद की घटनाओं के दुष्परिणाम हम देख चुके हैं।
आज मनुष्य धन-दौलत की प्राप्ति के लिए अवैध तरीके अपनाकर परिग्रही और अनैतिक होता जा रहा है। अवैध रूप से अर्जित धन का संचय करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, और मनुष्य में प्रेम भाव की कमी होती जा रही है। मनुष्य से मनुष्य के प्रति नफरत की प्रवृत्ति बढ़ रही है, और समाज में अनेक बुराइयाँ पनप रही हैं। यही सब कारण विश्व अशांति के स्रोत हैं।
उपरोक्त सभी कारणों के बावजूद, आज मानव शांति की तलाश में भटक रहा है। विश्व में शांति कायम करने, व्यापक रूप से फैले हुए आतंकवाद को समाप्त करने, और मानव मात्र में सुख, शांति, भाईचारे, और प्रेम भाव को स्थापित करने में जैन धर्म के सिद्धांत और जैन जीवन शैली बहुत सहायक हो सकते हैं। जैन धर्म का पालन करने के लिए जाति, सम्प्रदाय, या देश आदि का कोई प्रतिबंध नहीं है। जैन धर्म एक वैज्ञानिक धर्म है, और इसके सिद्धांतों से विश्व की कई बड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
यह मेरी मान्यता है, और केवल मेरी ही नहीं, बल्कि सभी जैन धर्म अनुयायियों की भी धारणा है कि यदि जैन धर्म के सिद्धांतों की पालना और जैन जीवन शैली को सभी देशों में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा अपनाया जाए, तो न केवल हमारे देश भारत में, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में भी कई मुख्य समस्याओं का समाधान हो सकता है। विचारों में अहिंसा, चिंतन में अनेकांत, वाणी में स्याद्वाद, और समाज में अपरिग्रह के द्वारा हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
जैन धर्म के मुख्य सिद्धांतों में से निम्नलिखित तीन सिद्धांतों की विवेचना प्रस्तुत की जा रही है:
1. अहिंसा 2. अपरिग्रह 3. अनेकांतवाद
इन सिद्धांतों की विस्तृत विवेचना से स्पष्ट होता है कि उनकी पालना से विश्व में फैली अशांति स्वतः ही शांति में परिवर्तित हो सकती है।
1. अहिंसा
जैन धर्म में अहिंसा का सिद्धांत सर्वोपरि है। मनुष्य ही नहीं, बल्कि प्राणी मात्र की हिंसा को भी जैन धर्म में महापाप माना गया है। किसी प्राणी की हिंसा के बारे में सोचना भी हिंसा मानी गई है। न केवल वास्तविक हिंसा, बल्कि हिंसात्मक विचार भी अहिंसा के सिद्धांत का उल्लंघन माने जाते हैं। अगर सभी लोग अहिंसा के इस सिद्धांत का पालन करें, तो विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
2. अपरिग्रह
अपरिग्रह का सिद्धांत संपत्ति और संसाधनों के अत्यधिक संग्रहण से बचने की शिक्षा देता है। आज के समय में, जैन धर्म के अनुयायियों में भी परिग्रह की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो चिंताजनक है। अगर अपरिग्रह के सिद्धांत का कठोरता से पालन किया जाए, तो आर्थिक अपराध, भ्रष्टाचार, और अवैध व्यापार जैसी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो सकती हैं।
3. अनेकांतवाद
अनेकांतवाद का सिद्धांत विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों के प्रति सम्मान की भावना विकसित करने की शिक्षा देता है। आज के समाज में, जहां लोग केवल अपने विचारों को सर्वोपरि मानते हैं, अनेकांतवाद की आवश्यकता और भी अधिक हो गई है। यदि इस सिद्धांत का पालन किया जाए, तो धर्म, सम्प्रदाय, जाति, और मजहब के नाम पर होने वाली हिंसा और झगड़ों का अंत हो सकता है।
इस प्रकार, जैन धर्म के उपरोक्त सिद्धांतों और जैन जीवन शैली की कठोरता से पालना करके न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है। जैन धर्म के सिद्धांत विश्व शांति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।