श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

चूहा और आदमी का बच्चा

यह एक बच्चों के लिए लिखा गया नाटक है। प्रकृति के साथ जो छेड़ छाड़ की जा रही है प्रकृति कैसे लोट कर हमें जबाब देती है उस पर आधारित यह बच्चों के लिए लिखा गया था सायद पल्लीवाल जैन समाज के किसी लेखक ने नाट्य विधा का उपयोग अपनी बात कहने के लिए किया है।सन 2022में मैं अपने पोते-पोतियों से मिलने मुम्बई गया था मेरी पोती तीसरी-चौथी क्लास में पढ़ती थी उसने कहा कि हमारे स्कूल का एनुअल फंक्शन है उसमें मुझे भाग लेना है तब मैंने यह नाटक लिखा था जो उनकी अध्यापिका ने मेरी स्वीकृति से अपने स्कूल के बच्चों द्वारा मंचित किया।

दृश्य प्रथम

चाल का एक कमरा, उसी कमरे में सोने, खाने, पीने, रहने, नहाने का सभी सामान ( कमरे में ही पूरी गृहस्थी ।
लगभग पैंतीस वर्ष की एक महिला और उसका एक वर्ष का बच्चा । महिला की वेशभूषा निम्न गरीब परिवार की तरह, बच्चा भी अर्द्धनग्न अवस्था में ।
मां अपने बेटे को गोदी में लिटा कर कमरे की खिड़की के पास कटोरी में दूध लेकर चम्मच से पिलाते हुए। खिड़की की मुंडेर पर एक चूहा अपनी गोल-गोल आंखों से कमरे में देखते हुए ।
औरत ने जैसे ही कटोरी में से दूध निकालने के लिए चम्मच डाली उसी समय चूहा कमरे की खिड़की से उस औरत के पास कूदा। चूहे के कूदते ही औरत के हाथ से कटोरी गिर गई और सारा दूध जमीन पर फैल गया।
बच्चा जोर-जोर से रोने लगा, मां परेशान बच्चे को चुप कराने की मुद्रा में कभी पप्पी लेती, कभी गले लगाकर चुप कराने की कोशिश करती पर बच्चा भूख से बेहाल और जोर-जोर से रोना और छटपटाहट।
मां का बच्चे को जमीन पर रोते हुए लिटाना, जल्दी से कटोरी में पानी लाकर उसे पानी पिलाने की कोशिश, बच्चे का मुंह फेर कर और जोर-जोर से रोना, मां परेशान क्या करे, कई प्रकार से बच्चे को बहलाने की कोशिश, बच्चा भूख से बेहाल और जोर-जोर से रोना और रोते ही जाना ।

दूसरा दृश्य समानान्तर

चूहा कमरे में पड़े लोहे के बक्से की आड़ में अपनी गोल-गोल आंखों से महिला और बच्चे को देखते हुए, बच्चे की रोने की आवाज से व्यथित भाव ।
चूहे के मन में अपनी करनी का पछतावा पर मजबूर, कमरे में बनी मोरी के रास्ते से भागा और बाहर निकल कर सोच विचार की मुद्रा में चारो ओर देखते हुए विचारने लगा कि बच्चे को दूध नहीं मिला तो बच्चा भूख से मर जायेगा, क्या करूं कि बच्चे को पेट भर दूध मिल जाए चूहा भ्रमित कुछ भी नहीं सूझ रहा…….
चूहा भागा भागा चूहों के एक बिल के पास रुक जाता है बहुत व्याकुल, सोच-विचार में तल्लीन, रुका हुआ । बिल के मुहाने पर एक घंटी लटकी हुई है जिसकी डोरी नीचे की ओर लटकी हुई है। चूहा व्यथित – व्याकुल उस डोरी को पकड़ कर घंटी बजाता है, घंटी की आवाज सुनकर एक सैनिक नुमा चूहा बिल के मुहाने पर आकर उस चूहे से घंटी बजाने का कारण पूछता है।
सैनिक चूहा – इस समय घंटी क्यों बजाई, तुम्हें पता नहीं कि यह समय महाराज के आराम फरमाने का है। चूहा – महोदय, मेरा इसी समय महाराज से मिलना बहुत आवश्यक है कृपया मुझे महाराज के सामने जाने की अनुमति दें।
सैनिक चूहा – इस समय महाराज नहीं मिल सकते, यह उनके आराम का समय है । राज-काज के समय पर आना।
चूहा – (गिडगिड़ाते हुए) मुझे महाराज से अभी मिलना है, मुझ पर कृपा करें और महाराज जी से मिलने की अनुमति दें।
सैनिक चूहा (धक्के मारकर घंटी के पास से हटाने की कोशिश में) भागो यहां से अभी मिलने की समय नहीं है।
सैनिक चूहे और चूहे के बीच धक्का-मुक्की जिद्दो-बहस, जोर-जोर की आवाज ।
अन्दर से आवाज आई- कौन है इस समय क्यों शोर मचा रखा है। इस आवाज को सुनते ही कई चूहा सैनिक भगते हुए बिल के मुहाने की ओर लपकते हैं।
बिल के अंदर का दृश्य- बिल के अन्दर कई चूहा सैनिक हाथ में बल्लम-भाले लेकर खड़े हैं।
चूहा राजा बिल के अंतिम भाग में एक गोल डिजाइन के पलंग पर लेटा है। कई चूहियाऐं राजा के पैर दबा रही हैं। कुछ चुहिया पंखे हिला रही है। पुराने राजाओं के शयन कक्ष जैसा दृश्य ।
चूहा सैनिक- चूहा महाराज के सामने उपस्थित होकर बाहर की घटना का पूरा विवरण बताता है- ” एक छोटा चूहा आपसे अभी मिलने की जिद कर रहा है, उसे मना भी कर दिया पर वह आप से तुरन्त ही मिलने की जिद पर अड़ा हुआ है।
चूहा राजा – उसे हमारे सामने उपस्थित करो ।
सैनिक चूहा — बिल के मुहाने की तरफ जाते हुए और मुहाने पर पहुंच कर हिकारत के साथ उस चूहे को देखते हुए – चलो, महाराज ने तुम्हे बुलाया है।
सैनिक चूहा राजा के शयन कक्ष की ओर बढ़ते हुए, पीछे-पीछे बच्चा चूहा चलते हुए, उसके पीछे तीन सैनिक चूहे चलते हुए, राजा चूहे के शयन कक्ष में प्रवेश करते हैं । जो चूहियाऐं राजा चूहे की सेवा में लगी थीं राजा चूहे के इशारे से तुरन्त सेवा छोड़ कर हट गई और इधर-उधर खड़ी हो गई।
राजा चूहा – एक गांवदार तकिये की सहारे अपने बैड पर सम्भल कर बैठते हुए । बड़ी रौबीली आवाज में- ‘बताओ क्या बात है, तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई इस समय हमें परेशान करने की, तुम्हें पता नहीं कि यह समय हमारे आराम का होता है। हम तुम्हें अभी इसी समय दण्डित भी कर सकते हैं लेकिन कोई बात नहीं हम चूहों के राजा हैं, उनकी हर परेशानी को दूर करना हमारा ध्येय भी है और कर्तव्य भी । बोलो क्या कहना चाहते हो ।
चूहा — जान की अमानत चाहूं महाराज, मैं बहुत दुःखी और व्यथित हूं, बात ही कुछ ऐसी है कि मुझे इस समय आकर आपको परेशान करना पड़ा, पर मैं क्या करूं, मेरे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है – इसलिए आपकी सलाह मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चूहा राजा – बोलो क्या बात है ।
चूहा महाराज, मैं खाने की तलाश में यही पास की लुहार गली की एक चाल में एक खिड़की के रास्ते से एक कमरे में कूदा, वहां एक औरत अपने बच्चे को कटोरी में दूध भर कर चम्मच से पिला रही थी। मेरे कूदने से घबराहट में औरत के हाथ से दूध की कटोरी छूट गई और सारा दूध जमीन पर बिखर गया, औरत के पास और दूध भी नहीं था । बच्चा भूख से बिलबिला कर रो-रो कर बेदम हुआ जाता है, मुझ से यह दृश्य देखा नहीं गया। बच्चा भूख से मर जायेगा, मुझे ऐसा उपाय बताएं कि मैं उस बच्चे के लिए दूध का इन्तजाम कर सकूं ।
राजा चूहा— बड़ी जोर से हा… हा… कर के हसने लगा, सभी सैनिक चूहे भी राजा के स्वर से स्वर मिला कर हसने लगे, सेविका चूहियाएं भी अपने चेहरे पर साड़ी के पल्ले डाल कर मन्द मन्द मुस्कराने लगीं।
चूहा राजा – बस इतनी सी बात है, अरे भाई हम चूहे हैं हमारा तो काम ही दूसरों के घर में घुस कर अपना पेट भरना है, हमें इससे क्या फरक पड़ता है कि बच्चा रो रहा है, भूख से तड़प रहा है। यह सब तो हमारे काम के लिए साधारण बात है, तुमने हमें इतनी सी बात के लिए परेशान किया।

 

चूहा – महाराज जब तक उस बच्चे को दूध नहीं मिलता तब तक मैं बैचेन रहूंगा, मेरे कारण ही तो दूध की कटोरी जमीन पर गिर गई जिससे दूध फैल गया, मैं जी नहीं पाउंगा। मुझे कोई उपाय सुझाएं कि बच्चे के लिए दूध का इंतजाम हो सके।
राज चूहा – चूहे को टालने की मुद्रा में भाई हमारे पास तो दूध का इंतजाम है नहीं, दूध तो गाय देती है तुम पास के किसी बाड़े में जाकर गाय से दूध मांग लाओ और बच्चे के लिए ले जाकर दे दो।
चूहा राजा के दरबार से निकल कर गाय की खोज में इधर उधर दौड़ने लगा । दूर कहीं एक गाय उसे जमीन पर बैठी हुई दिखाई दी चूहा उसके पास गया और हाथ जोड़ कर बोला- गऊ माता, मुझे दूध दे दो।
गाय – अरे चूहे तू दूध का क्या करेगा।
चूहा गाय को पूरी कहानी सुनाता है।
गाय – भाई चूहे, मैं तेरी दया भावना सुन कर दूध तो दे देती पर क्या करूं मेरे थनों में अब दूध आता ही नहीं है। मैने बहुत दिनों से हरी घास नहीं खाई है, अपना पेट गली-गली घूम कर लोगों के द्वारा फैंके हुए कचरे से भर रही हूं। जब तक हरी घास नहीं खाऊं तब तक दूध थनों में आयोग ही नहीं, हरी घास मिले और उसे मैं खाऊं तो दूध थनों में आये तब ही मैं तुझे दूध दे सकती हूं ।
चूहा – गऊ माता, हरी घास कहां मिलेगी।
गाय – हरी घास तो जंगल में मिलेगी।
चूहा – मैं जंगल में जाता हूं, माता तेरे लिए हरी घास लाता हूं। आप उसे खाकर दूध देना, मैं बच्चे के लिए दूध लेकर जाउंगा और बच्चे का जीवन बचाउंगा।
चूहा जंगल की तलाश में दौड़ा, दौड़ते-दौडते बहुत दूर निकल गया तब उसे जंगल दिखाई दिया।
दृश्य- जंगल बिल्कुल सूखा हुआ, सारी घास जली हुई, कहीं हरी घास का नामो निशान नहीं, चूहा परेशान।
चूहा – जोर-जोर से आवाज लगाते हुए, जंगल- ओऽऽ – जंगल, मुझे घास दे, घास लेकर गाय के पास जाउंगा, गाय घास खाएगी, तब जाकर दूध दे सकेगी, तब दूध बच्चे के पास ले जाऊंगा, बच्चा दूध पीएगा तब ही जिन्दा रह पायेगा। वह जंगल को जोर-जोर से पुकारने लगा।
हो ।
जंगल- मरियल सा हड्डियों के ढांचे सा चूहे के सामने आया और बोला- अरे भाई, क्यूं इतना शोर मचा रहे
चूहे ने हाथ जोड़कर जंगल को पूरी कहानी सुनाई।
जंगल— भाई, मैं घास तो अवश्य दे देता परन्तु बहुत दिनों से वर्षा नहीं हुई, नदी का पानी भी मुझे नहीं मिला, जब तक नदी पानी नहीं देगी मेरी प्यास नहीं बुझेगी, तब तक जंगल में हरी घास पैदा नहीं होगी। तुम नदी के पास जाओ और उससे पानी छुड़वाओ तब पानी मुझे मिलेगा, जंगल में नई घास पैदा होगी तब मैं तुम्हें घास दे सकूंगा।
चूहा परेशान, पर हार नहीं मानी
चूहा ढूंढता – ढंढता नदी के पास पहुंच गया।
दृश्य- नदी बिल्कुल सूखी हुई, उसमें पानी की धारा ही नहीं बह रही थी, कुछ गड्डों में पानी भरा था पर उनमें भी कोई हलचल नहीं थी, गड्ढों का पानी गड्ढों में ही पड़े रहने के लिए मजबूर, नदी में कोई बहाव नहीं।
चूहा – जोर-जोर से पुकारने लगा, नदी… नदी, पानी दो, नदी पानी दो । चूहे की जोर-जोर की पुकार सुन कर नदी बिल्कुल फटेहाल गिरती पड़ती आई और बहुत ही कमजोर आवाज में कहने लगी- किसने मुझे इतनी जोर- जोर से पुकारा ।
चूहा – हाथ जोड़कर नदी के सामने आया और बोला मैंने आपको पुकारा ।
चूहा नदी को भी पूरी कहानी सुनाता है।
नदी – भाई चूहे, मैं तुम्हारी भावना की कदर करती हूं। मैं जंगल को पानी अवश्य देती पर क्या करूं तुम खुद ही देख रहे हो कि मुझ में पानी है ही नहीं बहुत दिनों से बारिश हुई ही नहीं तो मुझे भी पानी नहीं मिला मैं बहकर जंगल तक जा नहीं पा रही हूं। पिछली बार जो बारिश हुई थी उसके पानी को मनुष्य जाति के लोगों ने डैम बना कर रोक लिया । मेरे पास जो पानी आता है वह पहाड़ों से आता है तुम पहाड़ के पास जाओ और उससे निवेदन करो कि पानी छोड़ो तो मुझे मिले। मैं जंगल में जाकर पूरे जंगल को हरा-भरा कर दूंगी।
चूहा – परेशान व्याकुल, नदी से बोला यदि पहाड़ पानी छोड़ दे तो तुम जंगल को हरा-भर कर दोगी न। नदी- हां, मैं जंगल को हरा-भरा अवश्य कर दूंगी मेरी प्रकृति तो बहने की ही है, यदि पानी होगा तो मैं अवश्य बहुंगी और जंगल में जाकर, जंगल को हरा-भरा कर दूंगी।
चूहा फिर दौड़ा, दौड़ते-दौड़ते थक गया पर उसने हार नहीं मानी, आखिर उसे पहाड़ दिखाई दे गया ।
दृश्य- पहाड़ पथरीला, उस पर पेड़ों का कोई नामो-निशान नहीं, जगह-जगह से टूटा, खुदा हुआ निर्जीव अवस्था में खुले आसमान के नीचे खड़ा हुआ।
चूहा – असमंजस की अवस्था में खड़ा हुआ पहाड़ की स्थिति को देखता रहा गया। फिर भी उसने कोशिश की ।
चूहा – पहाड़ को जोर-जोर से पुकारने लगा, पहाड़ बाबा सामने आओ, पहाड़ बाबा सामने आओ, मुझे नदी के लिए पानी चाहिए।
दृश्य- हड्डियों के चरमराने जैसी आवाज, लम्बा-चौड़ा-मोटा परन्तु बड़ा दुःखी सा पहाड़ चूहे के सामने आ गया।
पहाड़- क्यूं हल्ला मचा रखा है, मेरी यह हालत तो कर दी अब भी चैन से मुझे मरने नहीं दोगे क्या ?
चूहा – हाथ जोड़कर, पहाड़ बाबा आप अपना पानी छोड़ दें, पानी नदी में जायेगा, नदी जंगल को पानी देगी, जंगल में नई घास उगेगी। घास गऊ माता खायेगी, उसके थनों में दूध आयेगा, मैं वह दूध ले जाकर उस रोते बिलखते हुए भूखे, मनुष्य के बच्चे को ले जाकर दूंगा उसकी भूख मिटेगी और उसका जीवन बच जाएगा।
दृश्य- चूहे की बातें सुनकर पहाड़ आग-बबूला हो गया, उसकी आंखे लाल हो गई, क्रोध में कांपने लगा।
पहाड़ – तुम किस आदमी के बच्चे को जीवन देने की बात कर रहे हो, तुम्हें पता भी है कि मेरी यह हालत किसने इतनी खराब की है। उस आदमी के बच्चे ने, उसने अपने स्वार्थ के लिए, अपने घर को सजाने के लिए मेरे ऊपर उगे हुए सभी पेड़ों को काट डाला, अपने घर, महल बनाने के लिए मुझ में जगह- जगह डायनामाइट लगा कर मुझे घायल कर दिया। मेरी ऐसी स्थिति बना दी कि मैं चाहूं भी तो मुझ पर पेड़ नहीं उग सकते। इस आदमी ने मेरे प्राकृतिक स्वरूप को पूरी तरह से छिन्न-भिन्न कर मुझे इस हालात में मरने के लिये विवश कर दिया और तुम उस आदमी के बच्चे को जिन्दा रखने के लिये व्याकुल हो रहो हो । मैं इस मनुष्य जाति को कभी भी माफ नहीं करूंगा, मेरी बहुआ है कि इस जाति का सर्वनाश प्राकृतिक उथल-पुथल से ही होगा।
चूहा – विवश, शर्मिंदा, निःसहाय अवस्था में मुड़ा और धीरे-धीरे चलते हुए लोप हो गया।

अशोक कुमार जैन
2- बी रामद्वारा कॉलोनी, महावीर नगर,
टोंक रोड, जयपुर (राज.)

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