श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

आग की लपटे — आग ही आग

आग की लपटें भयंकर रूप धारण कर कभी कभी सड़क को शमशान बना देती है, “आग के रूप अनेक तो किसी के परिवार में गहरा अन्धेरा छा जाता है किसी के परिवार में मातम छा जाता है, कभी कभी चिनगारियाँ ऐसी चिपक जाती हैं कि जीवन पर्यन्त पीछा छोड़ नही पाती । खतरनाक मंजर समय नहीं देखता। सूरज भी आग की तपिश में मौत के ताण्डव को देखकर हैरान है।

हे सत्य पुरूष – मैंने कर्मों के राजा कर्मसत्ता से पूछा कि तुम्हारे पास  दया ही नहीं हैं क्या? क्यों इतना जुल्म, क्यों इतनी क्रूरता अनेक स्थानों से खीचकर सामुहिक चिता में धमासान अग्नि काण्ड के हवाले कर दिया। सभी को राख में क्यूँ बदल दिया ।

कर्मसत्ता – सुनो वत्स मैं किसी भी आग का आधार भूत कारण नहीं। जीव के स्वयं के दोष हैं। बिना जुर्म के किसी पर जुल्म नहीं हो सकता। जुर्म और जुल्म का स्थाई सम्बन्ध है। जुल्म के मचान पर जुर्म की बरसात होती है। जुर्म के साथ है जुल्म।
कल जलाया है तो आज जलना पड़ेगा। दुख दिया है तो दुख भोगना ही पड़ेगा। मेरा निर्णय प्राकृतिक न्याय पर ही आधारित है। शुद्ध ओर निष्पक्ष ।

हे वत्स – दुख की आग को तो देख रहे हो पर उसकी जन्मदाता दोष रूपी चिन्गारी को नहीं। आग के पीछे चिंगारी को नहीं। संसार में बैर – विरोध- ईर्ष्या की आग है। कर्मसत्ता का कथन है कि श्मशान की आग तो मुर्दों को जलाती है और संसार की आग जिन्दों को जलाती है । संसार स्वयं एक भयंकर आग है, दावानल है। अनादि काल से जल भी रहा है। अनन्त काल तक जलता रहेगा और जलाता भी रहेगा।
हे श्रेष्ठ बन्धु – कर्मबन्धु कहता है, पहले मेरे विचार सुनो, संसार में चारों गतियों के जीव किसी न किसी तरह की आग की लपटों से घिरे हुए हैं।

देव गति के जीव मुख्यतः लोभ की आग से, नरक गति के जीव दुखों की आग से, त्रिच गति के जीव जठराग्नि यानी भूख की आग से तथा भय की आग से, मनुष्य गति के जीव अहंकार की आग से त्रस्त हैं। सभी संसारी जीव चारों ही कसायों की आग से कम या अधिक जल रहे हैं।

छः खण्ड के अधिपति शुभम् चक्रवर्ती को सातवाँ खण्ड जीतने के लोभ की प्रचण्ड आग ने स्वाहा कर दिया। क्रौध की चिन्गारी से ग्रसित दैपायन मुनि ने अग्नि कुमार देव बनकर द्वारिका नगरी को अग्नि से स्वाह कर दिया। द्वारिका नगरी पर अग्नि वर्षा से तीन खण्ड के महाराजा श्री कृष्ण वासुदेव भी उस भीषणतम आग से अपने माता पिता को नहीं बचा सके ।

कमठ की अज्ञान या अहंकार की आग में नाग नागिन जल रहे हैं।

क्रौंधि चन्दकोशिका की आँखों से निकली विषैली आग ने महावीर स्वामी को डस लिया जिसे प्रभु महावीर ने अपने करूणा अमृत से बुझा दिया था।

दुर्योधन के षड़यन्त्र के आतिश से पनपी लाक्षागृह की पुण्य की बरसात से भीगे पाण्डवों को कुछ भी अहित नहीं कर पाई।

उन भव्य आत्माओं को वेदना नहीं पहुँचा सकती जो संयम – सन्तोष या समकित के कवच से सरक्षित है। अहंकार और अधिकार से जन्मी भीषण विस्फोट की आग में विश्व युद्ध हुए ।

दीपावली पर लोग सिर्फ पटाखों में आग नहीं लगाते, बल्कि अनेक जीवों की खुशियों को ही आग लगा देते है ।

दशहरा के दिनों में मैदान में अतिशबाजी की आग से जलता हुआ रावण पूछता है तुमसें कौन है जो रावण नहीं है।

हे सत्य पुरूष – कर्मसत्ता के तथ्य सत्य सुनकर मैं निःशब्द क्या बोलू । फिर भी हिम्मत करके पूछा सत्य वचन माते तो क्या संसार एक ज्वालामुखी है जिससे उगलती हुई आग में प्राणी प्रतिपल जल रहे हैं।

कर्मसत्ता – कुछ ऐसा ही समझो कुल लाकर हे वत्स संसार ज्वालामुखी की इस सर्वभक्षी आग में हर संसारी जल ही रहा है।

कोई चिता की आग में तो कोई चिन्ता की आग में कोई फैशन की आग में तो कोई व्यसन की आग में कोई क्रोध की आग में तो कोई धमण्ड की आग में कोई विषयों की आग में तो कोई विकारों की आग में कोई तृष्णा की आग में तो कोई ईर्ष्या की आग में कोई विरोध की आग में तो कोई प्रतिशोध की आग में कोई राख में दबे अंगारों के समान राग की आग में तो कोई दहकते शोलों के समान द्वेष की आग में जल रहा है।

हे कर्मयोगी – यद्यपि वचन माते आप के सभी विचार न्याय संगत है, तो क्या इनसे बचने का कोई उपाय नहीं ? अवश्य है वत्स – याद करो आचार्य श्री मानतुंग आदिनाथ भगवान की स्तुति करते हुए भक्तामर स्त्रोत के चालीसवें श्लोक में बताते हैं, सम्मुख्य आती हुई दावाग्नि को आपके नाम का कीर्तन रूपी जल शान्त कर देता है ।

हे वत्स तुम्हे जलना ही है तो प्रायश्चित की आग में जलते हुए पावन बनकर तथा तपस्या की आग में तपते हुए संयम की पवित्र वेदीपर सर्वस्य की आहुती देते हुए अपने सर्व कर्मों को जला दो महावीर की वाणी में संसार की इस आग में जलना नहीं, संयम बिना इस बार तो मरना नहीं। तू सिद्ध की तस्वीर बन मेरी तरह, तू तीर्थं से महावीर बन मेरी तरह।

 

छगन लाल जैन
रि. अध्यापक
हरसाना, अलवर

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