श्री पल्लीवाल जैन तीर्थ यात्रा संघ, जयपुर के तत्वाधान में 44 यात्रियों की बुन्देलखण्ड की 13 दिवसीय यात्रा 13 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई।
यात्रा का दिनांकवार विवरण
दिनांक 13.10.2024
प्रातः 6:00 बजे तक सभी यात्री बस पर पहुंच गए। जिन यात्रियों के नवीन परिचय पत्र बनाए गए, उन्हें परिचय पत्र वितरित किए गए तथा पर्ची के माध्यम से बस की सीटों का आवंटन किया । इसके पश्चात सभी यात्रीगण एवं उनके परिजन श्री चन्द्रप्रभु दिगंबर जैन पल्लीवाल मंदिर, शक्तिनगर पहुंचे। दर्शन करने के पश्चात नाचते गाते, जय-जयकार करते हुए हुए बस पर आए । यात्रा का शुभारंभ 13 अक्टूबर को शक्ति नगर जैन मंदिर से श्रीमान शिखर कोटिया के द्वारा बस को झंडी दिखाकर रवाना किया गया। बस अपने निर्धारित समय 6.30 पर रवाना हो गई।
यात्रा के दौरान ज्ञान तीर्थ क्षेत्र, मुरैना, सोनागिर तीर्थ, करगुवाजी झांसी, श्री दिगंबर जैन तीर्थोदय एवं धर्मोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र गोलाकोट, खनियांधाना, श्री दिगंबर जैन दर्शनोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र थूवोनजी, श्री 1008 दिगंबर जैन अतिशेष क्षेत्र पपोराज, श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र आहारजी, श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणागिरी लघु सम्मेद शिखर, श्री दिगंबर जैन अतिथि तीर्थ क्षेत्र आदिश्वर गिरी नोहटा, श्री 1008 दिगंबर जैन मंदिर अमृत तीर्थ जबलपुर, श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र, हनुमानताल, जबलपुर, श्री दिगंबर जैन अमरकंटक सर्वोदय तीर्थ, श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिरी, श्री दिगम्बर जैन रेवातट सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर, तीर्थ धाम ढाईद्वीप जीनायतन इन्दौर, श्री मक्सी पाश्र्वनाथ श्वेताम्बर जैन तीर्थ, श्री अंदेश्वर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर, बेणेश्वर धाम डूंगरपुर, कीकाभाई श्वेताम्बर जैन तीर्थ ऋषभदेव, श्री भटटारक यशकीर्ति दिगंबर जैन टस्ट गुरूकुल ऋषभदेव, केसरियाजी जैन मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर केसरियाजी, एवं काया तीर्थ उदयपुर की यात्रा की गई। जयपुर से 6.30 बजे रवाना होकर रूपबास होते हुए दोपहर को 1:30 बजे मुरैना पहुंचे ।
मुरैना में यात्रियों का शानदार स्वागत
दिनांक 13.10.2024 को मुरैना पहुंचने पर श्री चंद्रभान जी जैन हिंडौन वालों के बहनोई श्री आशीष जैन एवं मुरैना समाज के वरिष्ठजनों द्वारा सभी तीर्थ यात्रियों का दुपट्टा ओढ़ाकर, तिलक लगाकर, माला पहनाकर, भेंट स्वरूप तोलिया का उपहार देकर बहुत ही शानदार ढंग से बहुमान किया गया।
इस शुभ अवसर पर मुरैना समाज के गणमान्य महिला एवम पुरुष उपस्थित थे। श्रीमान विमलचंद जी, विनोद जी, पदम जी, प्रदीप जी एवम आशीष जी जैन (राष्ट्रीय विवाह संयोजक पल्लीवाल महासभा) एवं पुरुष तथा महिला विंग में श्रीमती बविता जी संगीता जी एवं अन्य महिलाओं ने महिला तीर्थ यात्रियों का सम्मान किया। ज्ञान तीर्थ की भोजनशाला में ही वात्सल्य भोज किया गया। ज्ञान तीर्थ पर ही श्री अशोक जी अलीपुर वालों के समधि श्री विजय कुमार मयंक कुमार जैन मुरैना द्वारा सभी यात्रिओं को प्रभावना के लिफाफे दिए गए। मुरैना से चलकर सांय 4:00 बजे ग्वालियर किले के उरवाई गेट से ग्वालियर किले पर पहुंचे। ग्वालियर समाज के मंत्री हमारे साथ किला दिखाने के लिए गए।
पहाड़ी की चोटी पर किले के प्रवेश द्वार से ठीक पहले सड़क के दोनों ओर रॉक कट जैन स्मारक स्थित है। कुछ यात्री यहीं पर रूक गये तथा कुछ लोग उपर किला देखने चले गए। किला देख कर 5:15 पर आए। इस बीच में जो यात्री रॉक कट पर रह गये थे, उन्होंने घाटी में स्थित त्रिशला माता के मंदिर के दर्शन किए।
ग्वालियर किले से रवाना होकर जैन होस्टल, ग्वालियर पहुंचे, जहां पल्लीवाल जैन महासभा शाखा, ग्वालियर द्वारा शाम को वात्सल्य भोज कराया गया। पल्लीवाल जैन महासभा शाखा ग्वालियर के अध्यक्ष श्री राकेश जी एवं अन्य गणमान व्यक्तियों द्वारा सम्मान किया गया ।
वात्सल्य भोज के पश्चात श्री राकेश जी के साथ ग्वालियर का सर्वण जैन मंदिर के दर्शन करने पहूंचे। स्वर्ण मंदिर ग्वालियर के दर्शन करके सोनागिरी जी के लिए रवाना हो गए तथा रात को 9:30 बजे सोनागिरी तीर्थ की विशाल धर्मशाला पहुंचे, जहां सभी यात्रियों के प्रत्येक जोड़े को एक-एक कमरा आवंटित किया गया तथा केसर का दूध पीकर सभी रात्रि विश्राम के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए।
दिनांक 14.10.2024
प्रातः सभी यात्रीगण जल्दी तैयार होकर सोनागिरी तीर्थ क्षेत्र की वंदना के लिए रवाना हो गए। श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र, सोनागिरिजी में कहने को तो 84 सीढियां ही बताते हैं। परंतु प्रत्येक मंदिर पर जाने के लिए भी अलग-अलग सीढ़ियां हैं, जिन्हें कुल मिलाकर लगभग 200 से ढाई सौ से सीढ़ियां हो जाएंगी। पहाड़ी पर चढ़ते समय दोनों तरफ मंदिर है जिन पर क्रमांक डाले हुए हैं। क्षेत्र पर कुल 80 मंदिर है जिनमें 77 प्राचीन मंदिर है एवं तीन नए मंदिर है। इसके अलावा 27 मंदिर पर्वत की तलहटी में है।
ों की डोली 600 रूपये लेती है। सोनागिरी जी में हमारे सहयोगियों द्वारा दोपहर का भोजन तैयार किया गया तथा गरमा गरम भोजन करके 11:30 बजे झांसी के लिए रवाना हो गए। दोपहर 1:00 बजे झांसी किले पर पहुंचे जहां श्री बृजेंद्र कुमार जैन फाजिलाबाद वालों के समधि श्री अशोक कुमार मणि कुमार जैन द्वारा झांसी किले पर यात्रियों का स्वागत किया गया तथा एक समय के वात्सल्य भोज के लिए 5100 रुपए एवं मिठाई के डब्बे भेंट किए गए।
झांसी किले पर ही श्री बृजेंद्र कुमार जैन फाजिलाबाद वालों के साढू श्री प्रकाश जी जैन गर्वित जैन झांसी द्वारा यात्रियों का स्वागत किया एवं 3100 रुपए एक समय के नाश्ते के लिए एवं मिठाई के डब्बे भेंट किए गए। झांसी किले पर ही श्री धर्मेंद्र कुमार जी भरतपुर वालों के साले श्री विनोद कुमार जैन एवं धर्मेंद्र जैन द्वारा यात्रियों के लिए मिठाई के डिब्बे भेंट किए एवं माला पहनकर यात्रियों का स्वागत किया गया। झांसी किला देखकर 11:45 पर करगुवां के लिए रवाना हो गए तथा 2:50 पर करगुवां तीर्थ पहुंचे।
करगुवांजी जैन मंदिर 700 साल पुराना मंदिर है, जो झांसी शहर के आसपास के क्षेत्र में स्थित है। यह दिगंबर जैनियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। करगुवां मंदिर के दर्शन किए तथा वहां श्री धर्मेंद्र कुमार जी भरतपुर वालों के साले श्री विनोद कुमार जैन एवं धर्मेंद्र जैन द्वारा यात्रियों को करगुवां तीर्थ पर चाय कॉफी पिलाई गई। चाय कॉफी पीने के बाद 3:25 पर ओरछा के लिए रवाना हो गए तथा 3:45 पर ओरछा पहुंचे।
बस को बस स्टैंड पर खड़ा करके ऑटो रिक्शा से ओरछा के दर्शनीय स्थल देखने के लिए निकल गए। सबसे पहले किले में टिकट लेने पहुंचे। टिकट लेकर चतुर्भुज मंदिर पहुंचे। चतुर्भुज मंदिर में किसी भी भगवान की मूर्ति नहीं है। चतुर्भुज मंदिर देखकर वहां से 800 मीटर की दूरी पर स्थित ओरछा की छतरियां देखना निकल गए।
छतरियां देखकर वापस महल परिसर में आए तथा वहां जहांगीर महल एवं अन्य महल तथा उद्यान देखें। बस पर हमारे सहयोगियों को भेज कर पहले से ही तैयार किया गया भोजन महल में ही मंगा लिया तथा सभी ने जहांगीर महल के सामने दालान में बैठकर शाम का भोजन लिया। भोजन करके वापस ऑटो रिक्शा से ओरछा के जैन मंदिर में आए। यहां संध्याकालीन आरती करके रामराजा मंदिर देखने गए। वापस झांसी होते हुए गोलाकोट के लिए रवाना हो गये। रात्रि 10:30 बजे गोलाकोट पहुंचे। जहां की धर्मशाला में प्रत्येक जोड़े के लिए एक-एक कमरा बुक था। रात्रि विश्राम गोला कोर्ट धर्मशाला में किया। गोलाकोट धर्मशाला बहुत ही सुंदर एवं साफ सुथरी है। गोलाकोट में रात्रि को दूध पीकर सभी यात्री अपने-अपने कमरों में विश्राम के लिए चले गए।
दिनांक 15.10.2024
प्रातः जल्दी उठकर सभी यात्री गोलाकोट के आदिनाथ भगवान के मंदिर में दर्शन करने पहुंचे । क्षेत्र पर 3000 हजार साल प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। मंदिर में आदिनाथ भगवान की मूलनायक प्रतिमा चमत्कारी है उसके और दोनों और पारसनाथ भगवान की खगड़ासन प्रतिमाएं विराजित है।
यहां से दर्शन करके 10:30 बजे रवाना हो गए तथा 1:30 बजे चंदेरी पहुंचे। बस एक स्थान पर खड़ी करके ऑटो रिक्शा के माध्यम से चंदेरी के चौबीसी बड़ा मंदिर के दर्शन करने के लिए पहुंचे। श्री दिगम्बर जैन चौबीसी बड़ा मंदिर, चंदेरी, पुराने बड़ा मंदिर के पीछे बना है, वास्तव में इसमें 24 मंदिर हैं जिनमें सुंदर शिखरों पर 24 तीर्थंकरों की 24 मूर्तियां स्थापित हैं इस मंदिर में भगवान चंद्रप्रभु और पुष्पदंत की मूर्तियाँ सफेद रंग की हैं, पद्मप्रभु और वासुपूज्य की मूर्तियाँ लाल रंग की हैं, सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ हरे रंग की हैं। भगवान मुनिसुव्रत और नेमिनाथ काले रंग की हैं और बाकी 16 मूर्तियाँ सुनहरे या पीले रंग की हैं। सभी मूर्तियाँ एक जैसी हैं, जो असल में मिलना बहुत मुश्किल है।
चंदेरी में महिलाओं द्वारा बाजार से साड़ियां क्रय करने के लिए समय देने का आग्रह किया । क्योंकि मुख्य बाजार से बाहर आ चुके थे तथा बस पुनः वापिस नहीं जा सकती थी । अतः मुख्य सड़क पर ही एक बड़े शोरूम पर बस को रोका गया एवं महिलाओं के लिए क्रय करने के लिए लगभग 45 मिनट का समय दिया गया। कुछ महिलाओं ने खरीदारी की।
यहां से रवाना होकर श्री दिगंबर जैन दर्शनोदाय अतिशय तीर्थ क्षेत्र थूबोन जी पहुंचे। यहां के जिन मंदिरों में भव्य एवं चित्ताकर्षक जिन प्रतिमाएं विराजमान हैं।
रात्रि 9:00 बजे पपौराजी पहुंचे। पपौराजी धर्मशाला में 23 कमरे बुक थे। अतः प्रत्येक जोड़े को एक-एक कमरा आवंटित किया गया एवं रात्रि विश्राम पपौरा जी में किया।
दिनांक 16.10.2024
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, पपौराजी लगभग 3 किमी की लंबाई में प्राचीर के भीतर है। 108 मंदिर कलात्मक और बहुत ऊंचे हैं जो आसमान को चूमते हैं। इनका निर्माण 12वीं से 20वीं शताब्दी के बीच हुआ है। 24 मंदिरों के एक विशाल समूह को चौबीसी के रूप में जाना जाता है, प्रत्येक दिशा में 6 मंदिर हैं। द्वार ऐसे लगते हैं जैसे रथ से घोड़े जुड़े हों और वे सभी तेजी से दौड़ रहे हों। बाहुबलीजी का मंदिर भी सुंदर है।
पपौराजी में सुबह उठकर सभी यात्री पपोराजी जी में स्थित 77 मंदिरों के दर्शन करने के लिए मंदिर परिसर में आ गए। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर के मध्य में नंदीश्वरदीप तथा पंचमेरू का एक बहुत ही आलीशान मंदिर बना हुआ है।
पपौराजी से दर्शन करके 9:05 पर रवाना हो गए तथा 10:00 बजे श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र, आहारजी पहुंचे। भगवान महावीरजी के समकालीन 1000 वें कामदार मदनकुमार ( नलराज ) ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। भगवान शांतिनाथजी की मुख्य मूर्ति लगभग 5 मीटर ऊंची है। त्रिकाल चौबीसी और विदेह क्षेत्र के 20 तीर्थकरों की मूर्तियाँ दीवार के साथ स्थापित हैं। मूर्तियाँ 11वीं और 12वीं शताब्दी की हैं।
आहारजी से 11:30 पर रवाना होकर फलहोड़ी बड़गांव पहुंचे। फलहोड़ी बड़गांव में मूल नायक महावीर स्वामी की प्रतिमा के साथ 13 अन्य तीर्थकरों की प्रतिमाएं भी विराजमान है। दूसरे देरासर में चंदाप्रभु भगवान तथा 16 अन्य तीर्थकरों की प्रतिमाएं विराजमान है ।
फलहोड़ी बड़ागांव से 12:15 पर रवाना होकर 1:15 बजे पर द्रोणगिरी पहुंचे। सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि एक प्राचीन निर्वाण क्षेत्र है जो प्राचीन साहित्य, प्राचीन गुफा, प्राचीन जैन मंदिरों और मूर्तिकला की कला से प्रमाणित होता है। क्षेत्र पर 76 जिनालय हैं। इसे छोटा सम्मेद शिखर भी कहा जाता है।
हमारे यात्रा सहयोगियों द्वारा यहां खीर, मालपुआ एवं पूरी का भोजन तैयार किया गया। भोजन करके यहां से खजुराहो के लिए रवाना हो गए। रात्रि 8:00 बजे खजुराहो पहुंचे तथा खजुराहो के होटल खजुराहो इन में रात्रि विश्राम किया। 20 कमरे होटल खजुराहो-इन में बुक थे तथा दो कमरे बगल के होटल में मिले ।
दिनांक 17.10.2024
खजुराहो के होटल में सुबह जल्दी नाश्ता लेकर खजुराहो के मंदिर देखने के लिए निकल पड़े। खजुराहो के मंदिर देखने के बाद सीधे खजुराहो के जैन मंदिर पहुंचे। जहां श्री महाराज साहब का प्रवचन चल रहा था। इन मंदिरों का समूह एक कम्पाउंड में स्थित है। इस समूह का सबसे विशाल मंदिर र्तीथकर आदिनाथ को समर्पित है। आदिनाथ मंदिर पाश्र्वनाथ मंदिर के उत्तर में स्थित है। जैन समूह का अन्तिम शान्तिनाथ मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस मंदिर में यक्ष दंपत्ति की आकर्षक मूर्तियां हैं।
तीनों जैन मंदिरों के दर्शन करने के पश्चात आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के दर्शनों का इंतजार करते रहे। लगभग 1 घंटे बाद महाराज साहब के दर्शन किये। दर्शन भली प्रकार से हो गए। इसके बाद खजुराहो मंदिर की भोजनशाला में सभी ने स्वादिष्ट भोजन किया। भोजन करने के उपरांत कुंडलपुर के लिए रवाना हो गए तथा सायं 4:00 बजे कुंडलपुर पहुंच गए। यहां भी हमें कुंडलपुर की अयोध्या धर्मशाला में 23 कमरे मिल गए। अतः प्रत्येक जोड़े को एक-एक कमरा आवंटित किया गया। कमरों में सामान रखकर सायं 6:00 बजे सभी लोग बड़े बाबा के मंदिर में पहुंच गए। वहां सभी ने बड़े भक्ति भाव से आरती की, नृत्य एवं भजनों का आनंद लिया। श्रीमान अशोक जी जैन एलआईसी, बीटी रोड जयपुर में मंदिर प्रांगण में भगवान महावीर जीव दया मैत्री संघ के संरक्षक सदस्य बनने के भाव प्रकट किया एवं सहमति प्रदान की। सभी यात्रीगणों ने उनके जीव दया के प्रति दया भाव की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए बहुत-बहुत अनुमोदना की। भक्ति करके सभी यात्रीगण वापस धर्मशाला आ गए तथा रात्रि विश्राम किया।
दिनांक 18.10.2024
सुबह जल्दी तैयार होकर बड़े बाबा के दर्शनों के लिए निकल गए तथा कई यात्री पैदल पहाड़ी की क्षेत्र की वंदना के लिए निकल गए। बड़े बाबा के दर्शन करने के पश्चात पहाड़ी की वंदना के लिए गए एवं पहाड़ी से नीचे उतरकर नीचे के मंदिरों के दर्शन किए।
बड़े बाबा मंदिर को पहले श्री दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर के नाम से जाना जाता था। बड़े बाबा मंदिर कुंडलपुर का सबसे पुराना मंदिर है। मूल मंदिर आठवीं शताब्दी में बनाया गया था, जबकि इसमें स्थापित मूर्ति गुप्त काल के बाद की है। विक्रम संवत 1757 के एक शिलालेख के अनुसार, मंदिर को भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति ने फिर से खोजा था और बुंदेला शासक छत्रसाल की सहायता से उनके शिष्य ने खंडहरों से इसका पुनर्निर्माण किया था ।
मंदिर का निर्माण 1997 में आचार्य श्री विद्यासागरजी के मार्गदर्शन में शुरू हुआ था, और ऋषभनाथ की मूर्ति, जिसे बड़े बाबा के नाम से जाना जाता है, को 17 जनवरी 2006 को निर्माणाधीन एक नए मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था।
कुंडलपुर सिद्ध क्षेत्र सर्वज्ञ श्रीधर केवली का मोक्ष स्थान है। भगवान आदिनाथजी की 15 फुट ऊँची चमत्कारी मूर्ति इस स्थान की शोभा बढ़ा रही है। इस स्थान का विकास इसलिए हुआ क्योंकि आचार्य श्री विद्यासागरजी ने 5 चातुर्मास और 7 ग्रीष्मकालीन चर्चाएँ की थीं। एक युद्ध में जीत के बाद छत्रसाल ने मार्ग का निर्माण किया और कुछ अन्य चीजों के साथ 74 किलो का पीतल का घंटा भेंट किया। उन्होंने प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण भी किया। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान पाश्र्वनाथजी का समवसरण हुआ था। कुल 63 मंदिर तथा 400 सीढ़ियाँ हैं।
तीर्थस्थल कुंडलपुर की बदना करके एवं यहां से भोजन करके नोहटा के लिए निकल गए। और 2:00 बजे नोहटा पहुंचे। इस स्थान को नोहटा इसलिए कहा जाता है क्योंकि पहले यहाँ नौ हाट (बाजार) हुआ करते थे। यहाँ स्थापित विभिन्न चमत्कारी मूर्तियाँ 9वीं से 21वीं शताब्दी की हैं। रॉड स्टोन में भगवान आदिनाथजी की 7 फीट ऊँची मूर्ति और त्रिकाल चौबीसी मंदिर हैं।
यहां से दर्शन करके 4:15 पर तेजगढ़ पहुंचे। श्री दिगम्बर जैन चन्द्रोदय कलातिशय त्रिक्षेत्र, तेजगढ़ में कुल 5 मंदिर हैं। मंदिर विशाल और सैकड़ों साल पुराने हैं। भगवान चंद्रप्रभजी की सुंदर मूर्तियों के कारण यह स्थान चंद्रोदय धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है। तेजगढ़ में मूल प्रतिमा विघ्नहर चिंतामणि पारसनाथ भगवान की प्रतिमा है। यहां से दर्शन करके जबलपुर के लिए रवाना हो गए तथा 8:30 बजे जबलपुर पहुंचे।
जबलपुर की पीसनहारी मढिया में 23 कमरे मिल गए। सभी यात्री अपने-अपने कमरों में सामान रखकर तथा रात्रि को दूध पीकर यहां से हनुमानताल जैन मंदिर के दर्शनों के लिए रवाना हो गए। 10:20 पर हनुमानताल जैन मंदिर पहुंचे। पूरे संसार में यह एक ऐसा मंदिर जैन मंदिर है, जो 24 घंटे खुला रहता है।
हनुमान ताल मंदिर जैन मंदिर अत्यंत भव्य एवं आकर्षक है। इस मंदिर में कांच का कार्य बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक ढंग से किया गया है एवं संगमरमर पर नक्काशी भी देखने लायक है। हनुमान ताल मंदिर देखकर ऑटो रिक्शा के माध्यम से वापस पिसनहारी की मढ़िया की धर्मशाला में आए तथा रात्री विश्राम पिसनहारी की मढ़िया की धर्मशाला में किया।
दिनांक 19.10.2024
पिसनहारी की मढ़िया मंदिर का नाम इसके निर्माता, एक स्थानीय महिला के नाम पर रखा गया है, जिसने पौराणिक कथाओं के अनुसार, आटा पिसाई करके बचाए गए पैसे से मंदिर के निर्माण के लिए भुगतान किया था ।
पीसनहारी मढिया की धर्मशाला में सुबह जल्दी तैयार होकर प्रातः 6:00 बजे पहाड़ी पर वंदना करने के लिए निकल गए। यहां मंदिर क्रमांक 13 बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में मूल प्रतिमा पारसनाथ भगवान की तथा तीन अन्य प्रतिमाएं पारसनाथ भगवान सुशोभित है। दर्शन वंदना करने के पश्चात तलहटी के मंदिर में आए यहां पर महावीर भगवान की मूल प्रतिमाएं तथा 24 अष्टधातु की प्रतिमाएं विराजमान हैं। बगल के मंदिर में पंच मेरु एवं नंदीश्वर द्वीप की भव्य रचना बनाई गई है।
हमारे यात्रा सहयोगियों द्वारा सुबह का नाश्ता तैयार किया गया। नाश्ता करके 9:30 पर भेड़ाघाट के लिए रवाना हो गए तथा 10:30 बजे भेड़ाघाट पहुंचे। भेड़ाघाट से नावों में बैठकर संगमरमर की चट्टानें देखने के लिए निकल गए। नदी के दोनों और संगमरमर की चट्टानों का दृश्य बहुत लुभावना है। वापस घाट पर आकर बस से धुआंधार झरने पर पहुंच गए।
धुआंधार झरने से 12:30 बजे रवाना होकर 1:00 बजे अमृत तीर्थ पर पहुंचे। अमृत तीर्थ पर मूल प्रतिमा आदिनाथ भगवान की है तथा एक ओर भरत तथा दूसरी ओर बाहुबली भगवान की प्रतिमा सुशोभित है।
अमृत तीर्थ के दर्शन करके रवाना होकर घुघवा फॉसिल पार्क दोपहर 3:30 बजे पहुंच गए। यहां हमारे यात्रा सहयोगियों द्वारा भोजन तैयार किया गया। तथा इस बीच में पार्क का म्यूजियम तथा फॉसिल्स का अवलोकन किया। यहां से भोजन करके शाम 6:30 बजे अमरकंटक के लिए रवाना हो गए तथा रात्रि 11:30 बजे अमरकंटक पहुंचे। अमरकंटक की सर्वोदय धर्मशाला में 12 कॉटेज बुक कर रखे थे। तथा प्रत्येक कॉटेज में दो-दो कमरे थे अतः प्रत्येक यात्री जोड़े को एक-एक कमरा आवंटित किया गया। रात्रि विश्राम सर्वोदय धर्मशाला में किया
दिनांक 20.10.2024
अमरकंटक की सर्वोदय तीर्थ धर्मशाला में सुबह जल्दी तैयार होकर सर्वोदय तीर्थ के दर्शन किए। आदिनाथ भगवान की मूल प्रतिमा तथा दाएं ओर चंद्रप्रभु भगवान तथा बाईं ओर शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा सुशोभित है। मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है तथा बहुत ही भव्य मंदिर बन रहा है। भगवान आदिनाथ भगवान की मूर्ति के ठीक सामने 12 मंजिल का मान स्तंभ है जिसमें 1008 धातु की मूर्तियां विराजमान है।
यहां हमारे यात्रा सहयोगियों द्वारा भोजन तैयार किया गया भोजन करके 1:30 पर छिंदवाड़ा के लिए रवाना हो गए तथा रात्रि 11:30 पर छिंदवाड़ा पहुंचे। रात्रि विश्राम छिंदवाड़ा के सनशाइन होटल में किया। होटल में ₹1500 की दर से 22 कमरे बुक थे। अतः प्रत्येक जोड़े को एक-एक कमरा आवंटित किया गया। होटल के बाद दूध गर्म किया गया तथा रात्रि विश्राम छिंदवाड़ा होटल में किया।
दिनांक 21.10.2024
छिंदवाड़ा के होटल सनशाइन से प्रातः 6:30 पर रवाना हो गए। नाश्ता बस में ही जो सामान उपलब्ध था उसे कराया गया। इसके बाद प्रातः 9:30 बजे एक स्थान पर चाय के लिए रुके तथा वहां से 10:10 पर मुक्तागिरी के लिए रवाना हो गए।
यद्यपि मुक्तागिरी तीर्थ मध्य प्रदेश में ही है, परंतु छिंदवाड़ा से मुक्तागिरी पहुंचने के लिए महाराष्ट्र बॉर्डर क्रॉस करना पड़ता है। अतः महाराष्ट्र बॉर्डर पर बस को रोकना पड़ा तथा महाराष्ट्र का रोड टैक्स जो 7 दिन के लिए 8880 रुपए था। यहां से रवाना होकर दोपहर एक बजे मुक्तागिरी तीर्थ पहुंचे।
तीर्थ पर पहुंचते बादल छा गए तथा धूप की तेजी कम हो गई। अतः सभी यात्रियों ने मुक्तागिरी तीर्थ की वंदना बड़े आराम के साथ कर ली। कहने पर को तो मुक्तागिरी तीर्थ में चढ़ने के लिए 250 सीढ़ियां तथा उतारने के लिए साढ़े 300 सीढ़ियां बताते हैं । परंतु प्रत्येक मंदिर पर चढ़ने की सीढ़ियों को जोड़ लिया जाए तो लगभग 400 से अधिक सीढ़ियां होंगी। मुक्तागिरी सिद्ध क्षेत्र जैन तीर्थ में 52 जैन मंदिर हैं, जिनमें से सबसे पुराना एक गुफा है। इन मंदिरों का निर्माण 13वीं – 14वीं शताब्दी में हुआ था ।
यहां पर हमारे यात्रा सहयोगियों द्वारा भोजन तैयार किया गया। भोजन करके नेमावर के लिए रवाना हो गए तथा रात को 11:45 पर नेमावर पहुंचे। नेमावर की धर्मशाला में भी 22 कमरे बुक थे । अतः प्रत्येक यात्री जोड़े को एक-एक कमरा आवंटित किया गया।
दिनांक 22.10.2024
नेमावर धर्मशाला में सवेरे जल्दी तैयार होकर रेवा नदी के तट से सन 1980 में प्राप्त चतुर्थ कालीन अतिशयकारी मनोवांछित फल दाता मूलनायक श्री 1008 पारसनाथ भगवान के दर्शन किए। नवीन मंदिर परिसर रेवा नदी के तट पर निर्माणाधीन है। इस मंदिर में मूल नायक नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा है तथा चार अन्य तीर्थंकर विराजित है। बाहर की ओर चारों तरफ जिन देव जी की देहरियों में प्रतिमाएं विराजमान हैं तथा छः तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी विराजमान है। नवीन मंदिर लाल पत्थर से निर्मित हो रहा है तथा बहुत ही भव्य बनेगा। मंदिर के चारों ओर त्रिकाल चौबीसी एवं पंच बालयति मंदिर भी है।
नेमावर से नाश्ता करके 9:00 बजे रवाना हो गए तथा 1:30 पर ओंकारेश्वर पहुंचे। ओंकारेश्वर में बस को बस स्टैंड पर खड़ी कर कर ऑटो रिक्शा से नदी तट पर पहुंचे। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए। वापस नाव द्वारा दूसरे तट पर पहुंचे तथा ऑटो रिक्शा से बस पर आए तथा 3:30 बजे सिद्धवरकूट के लिए रवाना हो गए। 3:50 पर से सिद्धवरकूट पहुंच गए। सिद्धवरकूट मंदिर में मूल नायक संभवनाथ भगवान् की प्रतिमा है। दाएं ओर चंदाप्रभु भगवान तथा 11 अन्य तीर्थकरों की मूर्तियां है। बाईं ओर महावीर भगवान तथा साथ अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजित है।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने निकल गए। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओम्कारेश्वर है। ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था । वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है, उसी ओमकार स्वरुप ज्योतिर्लिंग श्री ओम्कारेश्वर है, अर्थात यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं।
दिनांक 23.10.2024
सुबह महावीर तपोभूमि उज्जैन की धर्मशाला में प्रातः जल्दी उठकर मंदिरों के दर्शन किए। भगवान महावीर ने यहीं पर गहन साधना की थी। मुनि अभयघोष ने यहीं मोक्ष प्राप्त किया था, इसलिए यह स्थान सिद्ध क्षेत्र भी है। यहीं पर आचार्य समंतभद्र ने शिवलिंग को प्रणाम किया था और उसमें से चंद्रप्रभु भगवान की मूर्ति निकली थी।
यहां से अवंतिका पारसनाथ के लिए रवाना हो गए। लगभग 8:00 बजे अवंतिका पारसनाथ पहुंचे। श्री अवन्ति पाश्र्वनाथ तीर्थ में मूल प्रतिमा अवंतिका पारसनाथ की है तथा एक और गोड़ी पारसनाथ एवं आदिनाथ भगवान की प्रतिमाएं सुशोभित है। बाईं और मुनिसुव्रतनाथ स्वामी, महावीर स्वामी, चंद्र प्रभु भगवान तथा चिंतामणि पारसनाथ तथा चार अन्य प्रतिमाएं हैं। दाई और नेमिनाथ भगवान, संखेश्वर पारसनाथ, शांतिनाथ भगवान तथा आदिश्वर भगवान की बड़ी मूर्ति तथा दो अन्य प्रतिमाएं सुशोभित हैं। मंदिर में चारों ओर कल्याण मंदिर स्तोत्र यंत्र सहित 44 देरियों में हैं। मंदिर में ऊपर 108 पारसनाथ की रचना, सिद्ध चक्रपथ, कल्पवृक्ष, आदिनाथ की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में राजा विक्रमादित्य के समय का शिवलिंग भी है। मंदिर परिसर में ही बहुत ही अच्छी धर्मशाला भी है।
अवंतिका पारसनाथ से ऑटो रिक्शा में रवाना होकर महाकाल मंदिर पहुंचे। महाकाल मंदिर में भीड़ नहीं थी अतः महाकाल के आराम से दर्शन हो गए। महाकाल मंदिर शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है और यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिन्हें शिव का सबसे पवित्र निवास माना जाता है। यह मंदिर पवित्र शिप्रा नदी के किनारे स्थित है।
महाकाल के दर्शन करने के पश्चात वापस धर्मशाला आए । महावीर तपोभूमि में हमारे सहयोगियों द्वारा गरमा गरम पकौड़ी बनाई गई तथा श्री अशोक कुमार जी जैन पुत्र श्री मंगतराम जी जैन द्वारा इंदौर से पैक किया गया नाश्ता लड्डू, मसूर पाक, गठिया, पपड़ी इत्यादि का नाश्ता किया गया।
यहां से नाश्ता करने के पश्चात मक्षी पारसनाथ के लिए रवाना हो गए। लगभग 1:15 पर मक्षी पारसनाथ पहुंचे। श्री मक्सी जी पार्शवनाथ अतिशय क्षेत्र लगभग 1000 वर्ष पुराना है। यहाँ पार्शवनाथ और सुपार्शवनाथ भगवान की मूर्तियों वाले 2 बड़े और छोटे मंदिर हैं।
परमार राजाओं ने यहाँ एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि जब मोहम्मद गजनवी भारत आया, तो वह अन्य लोगों के साथ इस मंदिर को ध्वस्त करने के इरादे से आया था। लेकिन, यहाँ आते ही वह एक गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गयाय उसे श्री प्रभु के चमत्कार का अनुभव हुआ। परिणामस्वरूप, मोहम्मद गजनवी ने अपनी सेना को किसी भी तरह से मूर्ति या मंदिर को नुकसान नहीं पहुँचाने का आदेश दिया। उन्होंने मंदिर के प्रवेश द्वार पर पाँच कंगारों का निर्माण भी करवाया।
मक्सी पारसनाथ से 2:00 बजे रवाना होकर 4:30 पर उन्हेल पहुंचे। उन्हेल में कामित पूरण पारसनाथ भगवान की 3500 साल पुरानी मूल प्रतिमा है एक और महावीर स्वामी शांतिनाथ भगवान शंकेश्वर भगवान आदिनाथ भगवान जी रावल पारसनाथ अमीझरा पारसनाथ नेमिनाथ भगवान तथा सुपाश्र्वनाथ भगवान की प्रतिमाएं हैं। बाहर बगल में नाकोड़ा भैरव, घंटार्कण महावीर तथा महालक्ष्मी जी की प्रथम सुशोभित है। बाहर जहां बस खड़ी थी वहां एक तालाब की पाल पर एक मंदिर था। यहां बैठकर हमारे सहयोगियों द्वारा महावीर तपोभूमि उज्जैन में ही तैयार की गई पूरी सब्जी का भोजन किया एवं भोजन करने के पश्चात अंदेश्वर पारसनाथ के लिए रवाना हो गए रात्रि 10:00 बजे अंदेश्वर पारस पहुंचे तथा वहां की धर्मशाला में रात्रि विश्राम किया।
दिनांक 24.10.2024
प्रातः अंदेश्वर महादेव धर्मशाला में सभी यात्रीगण तैयार होकर मंदिर में दर्शन करने हेतु पहुंचे। अंदेश्वर पाश्र्वनाथजी एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो कुशलगढ़ तहसील में एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर 10वीं शताब्दी के दुर्लभ शिलालेखों का घर है। इस स्थान पर दो दिगंबर जैन पाश्र्वनाथ मंदिर भी हैं।
यहां से दर्शन करने के पश्चात हमारे सहयोगियों द्वारा बनाया गया नाश्ता किया गया तथा नाश्ता करने के पश्चात ठीक 9 00 बजे माही डैम के लिए रवाना हो गए। पहले माही डैम के गेस्ट हाउस पर पहुंचे। वहां से माही डैम का नजारा ज्यादा अच्छा नहीं दिख रहा था । डैम के अधिशासी अभियंताजी से बातचीत करने के उपरांत हमें डैम की गैलरी तक जाने की इजाजत दे दी गई। यहां से माही डैम का नजारा मनमोहक लग रहा था। कुछ लोग सीढ़ियां चढ़कर डैम के ऊपर चले गए।
डैम देखकर यहां से 12:00 बजे रवाना हो गए तथा 1:00 बजे वीरोदय तीर्थ पर पर पहुंचे। वीरोदय तीर्थ पर श्री विजय प्रकाश जैन (खोह वाले) बांसवाड़ा द्वारा श्री पल्लीवाल जैन तीर्थ यात्रा संघ जयपुर के सभी यात्रिओं का माला पहनकर स्वागत सत्कार किया एवं दोपहर के भोजन की बहुत ही सुन्दर व्यवस्था की गई। संघ के सभी यात्रियों ने उनके द्वारा किए गए स्वागत सत्कार एवं स्वादिष्ट भोजन व्यवस्था की भूरि भूरि प्रशंसा की गई। संघ के अध्यक्ष श्री श्रीचंद जैन, मंत्री श्री महावीर प्रसाद जैन एवं संयोजक श्री सुरेश चंद जैन द्वारा श्री विजय प्रकाश, उनके परिवार एवं साथियों का माल्यार्पण एवं शाल ओढ़ा कर सम्मान किया। संघ अध्यक्ष श्री श्रीचंद जैन द्वारा श्री विजय प्रकाश जैन एवं परिवार का बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
यहां से भोजन करने के पश्चात 2:30 पर त्रिपुरा सुंदरी के लिए रवाना हो गए। 3:15 पर त्रिपुरा सुंदरी पहुंचे। यहां देवी त्रिपुर सुंदरी का एक मंदिर है, जिसे तरताई माता के नाम से जाना जाता है, जिसमें काले पत्थर की सुंदर मूर्ति है, जिसके 18 हाथों में एक प्रतीक हैं, जबकि देवी एक बाघ पर सवार दिखाई देती हैं। इस मंदिर के निर्माण की सही तारीख ज्ञात नहीं है, ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण सम्राट कनिष्क से पहले किया गया था, जिन्होंने यहां शासन किया था। यह हिंदुओं के शक्तिपीठों में से एक है
यहां से दर्शन करने के पश्चात 4:45 पर बेणेश्वर धाम के लिए रवाना हो गए। बेणेश्वर धाम तीन नदियों माही, जाखम, एवं के संगम पर स्थित है तथा बेणेश्वर धाम बीच में एक टापू पर है। बरसात के दिनों में जब तीनों नदियां तूफान पर होती हैं तो इस धाम का चारों तरफ से संपर्क टूट जाता है। बेणेश्वर मंदिर, जिसमें क्षेत्र का सबसे प्रतिष्ठित शिव लिंग है, एक डेल्टा पर स्थित है। सोम और माही नदियों के संगम पर बनता है। ऐसा माना जाता है कि लिंग स्वयंभू या स्वयं निर्मित है। यह पांच फीट ऊंचा है और शीर्ष पर पांच भागों में टूटा हुआ है।
बेणेश्वर धाम से 5:30 पर केसरिया जी के लिए रवाना हो गए। रास्ते में बावला में श्री अजय कुमार जी जैन अलवर वालों ने हमारे यात्रा से ड्राइवर एवं कंडक्टर प्रत्येक को 800 रुपए के रेडीमेड पेट एवं शर्ट दिलाए । इसके पश्चात आगे रवाना हो गए परंतु रात्रि में एक जगह रास्ता भटक गए एवं बड़ी मुश्किल से बस को पानी में होकर निकलना पड़ा तथा इस प्रकार रात्रि 10:00 बजे केसरिया की कीकाभाई धर्मशाला पहुंच कर रात्रि विश्राम किया । धर्मशाला में कमरे बहुत ही साफ-सुथरे थे।
दिनांक 25.10.2024
कीका भाई धर्मशाला में सभी यात्रीगण जल्दी उठकर केसरिया जी आदिनाथ भगवान के दर्शन करने पहुंच गए। केसरियाजी तीर्थ या ऋषभदेव जैन मंदिर जैन धर्म के दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल माना जाता है ।
यहां से दर्शन बंदन करने के पश्चात आचार्य पुलक सागर महाराज साहब के दर्शन करने के लिए आश्रम में गए। आचार्य श्री सभी संतो को ज्ञानशाला में शिक्षा दे रहे थे। एक-एक करके सभी ने महाराज साहब के दर्शन किया तथा मंदिर में दर्शन करने के पश्चात वापस धर्मशाला आ गए। कीका भाई धर्मशाला के मंदिर में दर्शन किए। ठीक 7:30 बजे धर्मशाला में नाश्ता तैयार हो गया था अतः सभी लोग नाश्ता करने गए। धर्मशाला में नाश्ता करके सभी लोग अपना सामान पैक करके बस पर आ गए तथा ठीक 8:30 बजे बस रवाना हो गई। यहां से चलकर श्री राजेंद्र शांति विहार (श्री आदेश्वर श्वेतांबर जैन मंदिर) काया उदयपुर पहूंचे दर्शन करने के पश्चात जयपुर के लिए रवाना हो गये।
यात्रा के दौरान 5.50 लाख नवकार मंत्र का जाप किए गए। रास्ते में भक्ति पूर्ण वातावरण रहा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही की सभी यात्री वरिष्ठ नागरिक थे लेकिन किसी भी यात्री को रास्ते में कोई भी तकलीफ नहीं हुई। इस प्रकार से यात्रा सानंद संपन्न हुई ।
महावीर प्रसाद जैन
मंत्री