श्री त्रिलोक चन्द जैन (अध्यक्ष)
नया बास, सकर कूंई के पीछे, अलवर (राज.)
मोबा. : 8233082920
श्री पारस चंद जैन ( महामंत्री )
77/124, अरावली मार्ग,
मानसरोवर, जयपुर-302020
मो.9829298830
Email: abpjmparasjain@gmail.com
श्री भागचन्द जैन ( अर्थमंत्री )
पुराने जैन मंदिर के पास, नौगावां,
जिला अलवर – 301025 (राज.)
मोबा. : 9828910628
E-mail: bhagchandjain07@gmail.com
श्री राजेन्द्र कुमार जैन (संयोजक)
82, शक्ति नगर, गोपालपुरा बाई पास,
जयपुर – 302015
मोबाइल – 9460066534
ईमेल: rajendra.jain82@gmail.com
श्री रमेश चंद पल्लीवाल (संपादक)
8, विश्वविद्यालय पुरी, गोपालपुरा रोड,
आशा पब्लिक स्कूल के पास,
गोपालपुरा, जयपुर 302018
मोबाइल नंबर: 9314878320
ईमेल: rcpalliwal@yahoo.co.in
श्री संजय जैन (सह – संपादक)
45ए, सूर्य नगर, गोपालपुरा बाई पास रोड,
जयपुर – 302015
मोबाइल: 9414338048
ईमेल: sanjaykjain@gmail.com
श्री अजय कुमार जैन (अर्थ – व्यवस्थापक)
सीडी -188, दादू दयाल नगर, मानसरोवर, जयपुर
पिन कोड: 302020
मोबाइल: 9784223311
ईमेल: ajay07469@gmail.com
बिखरता एवं सिकुडता परिवार
प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में परिवार का रूप वृहद्ध था जिसमें दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, भैया-भाभी, बुआ एवं बहिन, भाईयों की संख्या काफी अच्छी हुआ करती थी अर्थात अविभक्त परिवार प्राणियों की संख्या की दृष्टि से अत्यन्न सम्पन्न हुआ करता था । ऐसे परिवारों में कुछ पुरूष वर्ग से अविवाहित भी रह जाते थे। सब लोग मिलकर रहा करते थे जिनमें से कुछ कमाई करते थे कुछ घर का काम-काज देखते एवं कुछ रिश्तेदारों में आया जाया करते थे। शिक्षा का कम प्रसार था । औरते घर एवं कृषि कार्य में संलग्न रहती थी।
जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ, व्यापार का विकास हुआ और गॉवों से शहरों की तरफ पलायन हुआ तबसे संयुक्त परिवारों में विघटन की प्रक्रिया शुरू हो गयी। परिवार के सदस्य जो व्यापार या नौकरी के लिए बाहर रहने लगे उनके मन में अपनी कमाई समाने लगी और संयुक्त परिवार का विकल्प बनने लगे। परिणाम स्वरूप परिवार के बिखराव की प्रक्रिया शुरू हो गयी और परिवार एकल होते गये अर्थात परिवार का सिकुडना शुरू हो गया।
इसका परिणाम आज हमारे सामने है। परिवार में ना तो ताऊ है ना चाचा है ना मौसी है ना भाई है जब पुरूष नही है तो औरते भी नही है। यहाॅ तक की केवल एक अकेली संतान है अपने माँ बाप की, अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक समय ऐसा आयेगा की संस्कृति तथा संतति की विषमताऐं अपना विकराल रूप धारण कर लेगी। इसलिये ऐसी भयानक स्थिति को दर किनार करने के लिए सामाजिक चेतना का जाग्रत होना अनिवार्य है। जिसमें संतति का अक्षुण बनाया जाकर परिवार का संरक्षण करें। इस लेख का आशय यह बिल्कुल नही है कि परिवार नियोजन को तिलाजंलि दे दी जावे वरन परिवार में उपलब्ध सुख-सुविधा एवं साधन को ध्यान में रखकर परिवार नियोजन किया जाऐ ।
इस प्रकार समाज का दायित्व है कि परिवार की सिकुडन को रोके और परिवारों का संरक्षण करें ।
सम्पादक
रमेश चन्द पल्लीवाल