श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

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सम्पादकीय —

अर्न्तजातीय विवाह का बढता प्रचलन

पिछले कुछ वर्षों से अपने समाज में अर्न्तजातीय विवाह का प्रचलन तीव्र गति से बढता नजर आ रहा है। यह एक विस्फोटक परिस्थिति बनती जा रही है। हांलाकि पूर्व में भी अर्न्तजातीय विवाह की कुछ छुट-पुट घटनाएं घटित होती रही है, लेकिन आज के समय में अर्न्तजातीय विवाह का विरोध सामाजिक स्तर पर नहीं किया जा रहा है, ना ही किया जा सकता है।

जैसे जैसे समाज के होनहार युवक एवं युवतियां शिक्षा के क्षैत्र में आगे बढ रहे है, वैसे वैसे वह अपने आचरण में व्यक्तिगत स्वच्छंदता को बढावा देने लगे है, अर्थात् अपने माता-पिता एवं परिवार जनों की राय की भी परवाह नहीं करते है । और इससे भी आगे बढकर अगर अच्छी आय वाली नौकरी या व्यवसाय प्राप्त कर लेने पर तो घर-परिवार के सदस्य भी तुच्छ नजर आने लगते है और यही से अर्न्तजातीय विवाह या अपनी पसन्द का सम्बन्ध बनाने के लिए अग्रसर हो जाते है । स्थिति चाहे लडकी के संबंध में हो या लडके के संबंध में दोनो बराबर रूप से देखने को मिलती है ।

पुराने जमाने में कुछ सामाजिक व्यक्तियों द्वारा यह कहा जाता था कि गैर समाज की बहु ले आयेगा तो कोई फर्क नहीं पडेगा क्योकि वह अपने समाज की हो जायेगी, लेकिन अपनी बेटी को गैर समाज में नहीं देते थे । इसके पीछे यह तर्क दिया जाता था कि बहु को तो अपने समाज के रीति-रिवाज सिखा दिये जायेगें लेकिन बेटी को अपने समाज की रीति-रिवाज छोडने पडेगें अर्थात् सभ्यता और संस्कृति का सवाल खड़ा हो जाता है ।

खैर कुल मिलाकर स्थिति समझौतावादी बनती जा रही है, जो कि हमारे समाज को स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए । अगर समय रहते इसमें सुधार नहीं किया जाता है तो हमारी धार्मिक मान्यताऐं/ संस्कृति / रीति-रिवाज समाप्त हो जायेगें एवं पारिवारिक संस्था विघटन की तरफ बढने लगेगी जो सामाजिक दृष्टि से किसी भी तरह उचित नहीं कही जा सकती । उम्मीद की जा सकती है कि समाज के सभी लोग इस तरफ ध्यान देगें।

रमेश पल्लीवाल
सम्पादक

This Post Has 2 Comments

  1. kapil Jain

    100% True

  2. Sumit kotiya

    जैसा कि आपने लेखा लिखा वह पढ़ने में और सुनने में बड़ा ही तर्क हीन लगता है आप सभी (माता पिता और सामाजिक प्रतिष्ठित) लोगो बच्चों को बड़े आसानी से दोषी बना देते हो । लेकिन कभी अपने आप को कभी इस परिस्थितियों के लिए दोषी नहीं मानते ऐसा क्यू ? क्या समाज का या माता पिता का कोई दोष नहीं है ? इस पर विचार प्रगट करें।
    क्यूंकि आप ऐसा कह रहे मोबाइल कोई भी तोड़े नाम तो छोटे बच्चे का ही आयेगा । अगर कुछ गलत लगे तो माफ करे ।

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