श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

सम्पादकीय —

भादप्रद माह के आगमन के साथ ही हमारी समाज के पयुषण पर्व भी प्रारम्भ हो गये । पयुषण पर्व समस्त जैन समाज द्वारा अपनी अपनी आमनाय के अनुसार धार्मिक क्रियाओं के साथ सम्पन्न हुए। पर्युषण पर्व की महत्ता का अहसास इस बात से ही हो जाता है कि प्रत्येक जैन जन का व्यवहार पूरे वर्ष में किये जाने वाले व्यवहार से भिन्न नजर आता है। मन्दिर मार्गी मन्दिर जी में पूजा – प्रक्षाल करते हैं तथा स्थानकवासी अपना स्वाध्याय व प्रतिक्रमण स्थानको में साधु सटो के साथ करते हैं और अपनी कर्म कि निर्जरा का बोध करते हैं तथा अपने कषाय आदि पर पूर्ण नियन्त्रण करते है।
लेकिन कुछ वर्षो से यह देखने में आ रहा है कि हमारे पर्व दर्शन कम प्रर्दशनों का अधिक स्थान प्राप्त करते जा रहे है। दर्शन का महत्व कई रूपो में परिलक्षित होता है। जैसे मंदिरो में विराजित तीर्थकरों की प्रतिमाओं के दर्शन साधु मुनियो – साध्वियों के दर्शन, शास्त्रों का पढन-पाठन इन सब के लिये एकाग्रचित होना आवश्यक है, क्योंकि बिना एकाग्रचित भाव के आपको किसी भी वस्तु धर्म आदि का अहसास नही हो सकता अर्थात दर्शन केवल उक्त उल्लेखित बातो से ही संबंधित नही है। दर्शन का मतलब अपने अर्न्तमन में झांकना और शुभ कर्मों को करने के लिए तत्पर होना है। परन्तु आज के आधुनिक युग में दर्शन का स्थान प्रदर्शन की वृत्ति लेती जा रही है। धार्मिक क्रियाओं की जगह राजनीतिक लाभ-हानि के हिसाब से पर्युषण पर्वों का आयोजन बढ चढकर किया जाने लगा है जिसकों धर्मनिष्ठता नहीं कहा जा सकता। प्रदर्शन में विभिन्न बातो का समावेश है जिनका जिक्र में यहाँ करना उचित नही समझता, जिनकाअहसास आप सभी भली-भाँति कर सकते है ।
अतः आप सबसे यह निवेदन करना चाहता हूँ कि दर्शन को प्रदर्शन की वस्तु ना बनाकर धार्मिक आचरणों पर अधिक ध्यान देव, जिससे समाज में समरसता का भाव बने और किसी को भी किसी तरह का अभाव महसूस न हो ।

श्री रमेश चंद पल्लीवाल (संपादक)

This Post Has One Comment

  1. नरेश चंद जैन

    बहुत ही सारगर्भित लेख। धन्यवाद जी

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