श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

समाज और राजनीति

हमने अक्सर देखा है कि लोग राजनीति में पावर, पैसा, वर्चस्व कमाने आते है। आज चाहे पंच, सरपंच से लेकर वार्ड मैम्बर, एमएलए या एमपी का चुनाव हो, लोग चुनाव जीतने के लिए अन्धाधुन्ध पैसा खर्च कर येन केन प्रकारेण साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति से चुनाव लड़ते है।यह भी देखा गया है कि राजनीति में एक बार चुनाव जीत जाए तो आने वाली कई पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित हो जाता है। वैसे तो राजनीति का मूल उद्देश्य और भावना जनता की सेवा करना है और यही राजनीतिक धर्म भी है। राजनेता इसी बात को प्रचारित कर चुनाव जीतते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद राजनेता वो उद्देश्य, भावना और धर्म को भूलकर पैसा, पावर और वर्चस्व कमाने में लग जाते है। जनता की भलाई की जगह स्वहित और अपने परिवारजनों की भलाई में लग जाते हैं। हर आने वाली सरकार पिछली सरकार के विकास कार्यों को बन्द कर देती है और नाम व पैसा कमाने के लिए खुद के नये कार्यों को शुरू करती है। राजनीति में सत्ता की लड़ाई के लिए पार्टियां एक दूसरे पर कीचड़ उछालती है, एक दूसरे को दोषारोपित करती है फिर भी चाहे पक्ष हो या विपक्ष सभी जिस उद्देश्य के लिए राजनीति में आते है उसको भूल कर जीवन भर पावर और पैसा कमाते है।आज हमारे समाज में लगभग कमोबेश यही हो रहा है। जबकि हम सभी जानते है कि समाज में चुनावों में जीतने के बाद न तो वो पावर मिलती है और न ही पैसा। फिर भी चुनावों में बेहिसाब पैसा खर्च कर येन केन प्रकारेण चुनाव जीतने की होड़ सी हो गई है। चुनाव जीतने के बाद जीतने वाले सामाजिक बन्धु कितना महासभा के उद्देश्यों को पूरा करते है। कितना समाज की भलाई करते है। यह हमने नागपुर और हस्तिनापुर में देखा है। हस्तिनापुर में तो इतनी भीषण गर्मी में समाज मूलभूत आवश्यकताओं के साथ-साथ चुनाव स्थल पर पानी और छाया तक के लिए तरस गया था और जिम्मेदारों ने अपना इस्तीफा देकर अपनी जिम्मेदारी की इतीश्री कर ली। ये समाज की भलाई तो नहीं हो सकती। पूरे समाज को दरकिनार कर नागपुर और हस्तिनापुर शुद्ध रूप से वर्चस्व को बरकरार रखने की राजनीति थी।

वर्तमान में महासभा दो महासभा में तब्दील हो गई है। एक अध्यक्ष जी की महासभा दूसरी महामंत्री जी की महासभा। एक अपने वर्चस्व को स्थापित करने की राजनीति कर रहे है तो दूसरी सामने वाले के वर्चस्व को ही खत्म करने की राजनीति कर रहे है। एक दूसरे को आरोपित करने, नीचा दिखने की लड़ाई में महासभा के गठन के उद्देश्य मीलों पीछे छूट गये हैं।यहां तक की महासभा की पिछली कार्यकारिणियों द्वारा चलाये जा रहे अच्छे और समाजिक कार्य भी वर्तमान कार्यकारिणी ने बन्द कर दिये है और अपना वर्चस्व और नाम स्थापित करने के लिए स्वयं के कार्यक्रम चलाये जा रहे है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण अमृत महोत्सव है। इन सब के विपरीत सबसे महत्वपूर्ण कार्य विधवा सहायता का है, जो बन्द कर दिया गया है। समाज की विधवा माताएं और बहिने भी सोचती है कि हम किस महासभा से गुहार लागाये? अध्यक्ष जी की या महामंत्री जी की? दोनों एक दूसरे को दोषारोपित कर समाज की भलाई को भूलते जा रहे हैं। दोनों ही शुद्ध रूप से राजनीति कर रहे है जिसमें न स्वहित है, न परिवार हित और न ही समाजहित ?

मेरा प्रश्न सिर्फ इतना सा है कि-
*जब समाज की भलाई करनी है, तो राजनीति क्यों ? और जब राजनीति ही करनी है, तो समाज की भलाई का ढ़ोंग क्यों ?

गिरीश जैन
पूर्व मंत्री,
श्री अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा,
शाखा जयपुर

This Post Has One Comment

  1. लक्ष्मीकांत जैन

    गिरीश जी बहुत अच्छा और सटीक विवरण किया महासभा का अपने । आप किस महासभा को सही मानते हो और लीगली कौनसी महासभा अखिल भारतीय पालीवाल महासभा है ।

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