श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

पल्लीवाल जैन जाति का उद्गम।

श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका माह जनवरी 2025 के अंक में प्रकाशित लेख में श्रीमान श्री चंद जी द्वारा पल्लीवाल जाति का उत्पत्ति स्थान पाली नगर से होना बताया गया है। ऐसा उन्होंने श्री कन्हैया लाल जी जैन द्वारा प्रकाशित लेख को प्रमाणित मानते हुए लिखा है इस प्रकार से श्रीमान श्री चंद जी द्वारा पल्लीवाल जाति का उद्भव ईसा पूर्व पहली दूसरी शताब्दी के आसपास दक्षिण भारत से होना नहीं माना है।
इस संबंध में मेरा यह कथन है कि आचार्य श्री कुंदकुंद पल्लीवाल जात्युत्पन्न थे। उनका जन्म दक्षिण के तमिल प्रदेश के कुरुमराई नामक ग्राम में हुआ था यह कपोल कल्पित नहीं है। क्योंकि मैंने स्वयं नागौर जिले के डेह कस्बे के एक मंदिर में रखें ग्रंथ में इसे लिखा हुआ देखा था। यह बात भी मुझे वहां के एक धर्म प्रेमी सरावगी बंधु ने ही मेरी जाती जानकर बताई थी और मंदिर में उस ग्रंथ में पढ़ाया था । अब यह मेरा दुर्भाग्य था कि मैंने उस ग्रंथ का नाम जानने की कोशिश नहीं की। यह कथन मैंने एक बार श्रीमान श्री चंद जी को भी बताया था तो उन्होंने मुझसे यही कहा था कि इस बात को सरावगी लोग ही नहीं मानते हैं यद्यपि यह कथन उनका सही नहीं था।
डॉक्टर अनिल कुमार जैन एमएससी पीएचडी ने अपनी पुस्तक पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास में स्पष्ट लिखा है कि दिगंबर संप्रदाय में अधिकांश लोगों की धारणा तो यही है कि आचार्य कुंदकुंद पल्लीवाल जाति के रत्न थे इसका प्रमाण दो पट्टावालियों में उपलब्ध है एक आचार्य पट्टावाली नागौर के पट्टावाली शास्त्र भंडार से प्राप्त हुई है। इस पट्टावाली को सीकर राजस्थान से प्रकाशित चामुंडराय कृत चारित्र सार नामक ग्रंथ के अंत में प्रकाशित कराया है। इसमें लिखा है मिति पोष कृष्ण अष्टमी विक्रम संवत 49 और श्री वीर निर्माण संवत 519 में पल्लीवाल जैन जात्युत्पन्न श्री कुंदकुदाचार्य हुए । एक अन्य पट्टावाली आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी के शिष्य आचार्य श्री विमल सागर जी से प्राप्त हुई है। इस पट्टावाली को आचार्य महावीर कीर्ति स्मृति ग्रंथ (संपादक डॉ नेमेंद्र चंद) में प्रकाशित कराया है। इसमें भी आचार्य श्री कुंदकुंद को पल्लीवाल जाति का होना बताया है इस पट्टावाली की प्रमाणिकता के बारे में आचार्य श्री विमल सागर जी का कहना था कि इसे उनके गुरु आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी ने विभिन्न स्थानों के शिलालेखों ग्रंथ, प्रशस्तियों तथा प्राचीन पट्टावालियों के आधार पर बनाया था और इसे वह एकदम सही मानते थे।

सुरेश चंद जैन
Rit. तहसीलदार

राणीसती नगर, जयपुर।

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