श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

मित्रता: एक सच्चा साथी

मित्रता मानव जीवन का एक अनमोल रत्न है। यह वह संबंध है, जो किसी स्वार्थ या पारिवारिक बंधन से नहीं, बल्कि आपसी स्नेह विश्वास और सहानुभूति पर आधारित होता है। सच्चा मित्र वह होता है, जो हर परिस्थिति में हमारा साथ देता है और जीवन की कठिनाइयों में सहारा बनता है।

मित्र की परिभाषा
मित्र वह है, जो हमारे जीवन के हर पहलू में सहायक हो, चाहे वह खुशी हो या संकट ।
संस्कृत में कहा गया है

`मित्रं यः कृतेन सदा सुखदुःखेषु सहायकं । अर्थात, मित्र वही होता है, जो सुख-दुःख में समान रूप से साथ दे ।

मित्रता के प्रकार

1. सच्ची मित्रता: यह बिना स्वार्थ के होती है और जीवनभर चलती है।
2. स्वार्थी मित्रता: यह केवल व्यक्तिगत लाभ पर आधारित होती है।
3. आध्यात्मिक मित्रता: समान विचारधारा वाले लोगों के बीच होती है।
4. सामाजिक मित्रताः समाज में मेलजोल के दौरान बनती है।
5. कार्यस्थल की मित्रताः यह सहयोग और कार्य को सुगम बनाने के लिए होती है।

सच्चा मित्र किसे कहते हैं?

सच्चा मित्र वह होता है, जो हमारी अच्छाइयों और बुराइयों को समझकर हमें सही दिशा में प्रेरित करता है। वह बिना किसी अपेक्षा के हमारे साथ रहता है और हमारी सफलता में खुशी तथा असफलता में संबल प्रदान करता है। सच्चा मित्र वही है, जो न केवल सुख में बल्कि कठिन समय में भी साथ खड़ा रहता है।

सच्चे मित्र के लक्षण

सच्चा मित्र हमेशा आपके अहित रोकता है, हमेशा हमें प्रेरित करता है और हमारी गलतियों को सुधारने में मदद करता है। सच्चा मित्र हमारे साथ हर परिस्थिति में खड़ा रहता है और हमारा विश्वास कभी नहीं तोड़ता । वह हमारी भावनाओं को समझता है और उन्हें महत्व देता है । उसकी मित्रता में स्वार्थ नहीं होता और वह हमारी भलाई के लिए सोचता है । वह सदैव आपके बारे में हमदर्द बनकर हृदय से हितकारी बनकर सोचता है एवं आपको मंगलकारी कार्यों से जोड़ता है। सदमार्ग पर चलने की सलाह देता है, साथ देता है एवं आवश्यकता होने पर समझा भी देता है ।
ऐसा मित्र जो आपके बुरे समय में आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे आपको कठिन समय में अकेला होने का एहसास नहीं होने देता है वही आपका सच्चा मित्र होता है। मित्र जब प्रगति करें तो गर्व से कहो कि वह मेरा मित्र है और जब मुसीबत में हो तो गर्व से कहो कि हम उसके मित्र हैं। सच्चा मित्र हमेशा हर मुश्किल में साथ खड़ा रहता है, विपत्ति में कभी साथ नहीं छोड़ता है।
वैसे तो आजकल फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम जैसे अनेकों साधन है, जिससे सैकड़ों दोस्त बन जाते हैं, पर क्या आपकी मुसीबत में या आपके बुरे वक्त में साथ देने आएंगे? नहीं उस समय आपके साथ सिर्फ आपके माता-पिता, गुरु एवं सच्चा मित्र ही आपका साथ देगा। एक साल में 50 मित्र बनाना आसान है, परन्तु 50 साल तक एक ही मित्र से मित्रता निभाना खास बात है

मित्रता में आपस में शंका किन बातों पर हो सकती है?

मित्रता में कभी-कभी कुछ परिस्थितियों के कारण शंका उत्पन्न हो सकती है, जैसे:

1. गलतफहमी: किसी बात को सही ढंग से न समझने पर भ्रम हो सकता है।
2. अत्यधिक अपेक्षाएँ: मित्र के प्रति जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएँ रखने से असंतोष पैदा हो सकता है।
3. दूसरों की नकारात्मक बातें: किसी तीसरे व्यक्ति के द्वारा दी गई गलत जानकारी मित्रों के बीच शंका का कारण बन सकती है।
4. गोपनीयता का उल्लंघनः यदि मित्र हमारी निजी बातों को दूसरों के साथ साझा करे, तो अविश्वास हो सकता है।
5. अहंकार या ईर्षा: मित्रों के बीच प्रतिस्पर्धा या अहंकार के कारण भी शंका उत्पन्न हो सकती है।

शंका का निवारण कैसे करें?

1. खुलकर संवाद करें: किसी भी समस्या या गलतफहमी को स्पष्ट बातचीत के माध्यम से सुलझाएँ।
2. धैर्य और समझदारी रखेंः मित्र के दृष्टिकोण को समझने का प्रयास करें।
3. सच्चाई का पता लगाएँ: किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले तथ्यों की जांच करें।
4. क्षमा करें: यदि मित्र ने गलती की हो, तो उसे माफ करने का साहस रखें।
5. भरोसा बनाए रखें: आपसी विश्वास को मजबूत करने के लिए छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें।

मित्रता खंडित होने के कारण

चाणक्य नीति के अनुसार मित्रता खंडित होने के निम्नलिखित कारण है:-

1. विश्वासघातः विश्वास को तोड़ना मित्रता को समाप्त कर सकता है।
2. मित्र के साथ बहस करना: आपको मित्र के साथ बात करनी है बहस नहीं। बातचीत और बहस में बहुत बड़ा फर्क है। बहस इसलिए की जाती है कि कौन सही है ? जबकि बातचीत यह तय करती है क्या सही है ? बातचीत में एक व्यक्ति बोलता है दूसरा व्यक्ति सुनता है, परन्तु बहस में दोनों व्यक्ति बोलते है, सुनता कोई नहीं।
3. आलोचनाः मित्र की गलतियों को दूसरों के सामने उजागर न करें।
4. अहंकारः मित्रता में अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, बड़े-छोटे का भेद नहीं होना चाहिए, नहीं तो अहंकार जन्म लेता है जिसके कारण मित्रता में अहंकार बाधा बन सकता है।
5. दूसरों के द्वारा निंदा: यदि कोई दूसरा व्यक्ति आपके मित्र की निंदा करता है तो आप उसकी बातों में ना आए एवं पहले सच्चाई का पता लगाएं तथा छोटी-मोटी गलतियों को नजर अंदाज करें। मित्र के खिलाफ किसी अन्य की बातों में न आएं।
6. स्वार्थः मित्रता एक निःस्वार्थ और सच्चे भावनात्मक संबंध पर आधारित होती है। यदि इसमें स्वार्थ जुड़ जाए तो यह मित्रता की पवित्रता को नष्ट कर देता है और संबंध को कमजोर बना देता है। स्वार्थ से प्रेरित मित्रता एकतरफा लाभ की ओर झुकाव रखती है, जो समय के साथ विश्वासघात, निराशा और संबंध-विच्छेद का कारण बनती है। अतः मित्रता स्वार्थ पर आधारित नहीं होनी चाहिए। जब मित्र के साथ उधार की लेनदेन प्रारंभ होने लगती है तब लाभ-हानि की गणना होने लगती है, तो यह मित्रता कटुता में बदलने लगती हैं एवं मित्रता खंडित हो जाती है।
7. मित्र की पत्नी अथवा बहन के साथ एकांत में बात करना: यह एक शंका का कारण है एक बार यदि शंका जन्म ले लेती है, तो वर्षों की मित्रता खंडित होने में देर नहीं लगती। सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, मित्र के परिवार के सदस्यों, विशेष रूप से उसकी पत्नी और बहन के साथ सम्मानजनक दूरी और मर्यादा बनाए रखना जरूरी है, इनसे एकांत में बातचीत से बचना मित्रता में विश्वास और मर्यादा बनाए रखने के लिए आवश्यक है। ऐसा व्यवहार मित्रता को मजबूत बनाए रखने और अनावश्यक गलतफहमियों से बचने के लिए भी जरूरी है। इससे न केवल आपसी संबंध मजबूत होते हैं, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत सम्मान भी सुरक्षित रहता है। सच्ची मित्रता का आधार केवल विश्वास और सहयोग है, जो मर्यादा और सीमाओं का पालन करने से और गहरा होता है।
अतः यदि किसी कारण से मित्र की पत्नी या बहन से बात करनी हो, तो इसे सार्वजनिक रूप से या अन्य लोगों की उपस्थिति में करें। मित्र के सामने बातचीत करने से किसी भी तरह की गलतफहमी की संभावना नहीं रहती। बातचीत के दौरान शिष्टाचार और सम्मानपूर्ण भाषा का प्रयोग करें ।

मित्र बनाने के तरीके

मित्र बनाना जीवन को सुखद और संतोषजनक बनाने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। सच्चे मित्र बनने और संबंधों को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए ईमानदारी, निःस्वार्थता और सामंजस्य की भावना आवश्यक है। मित्र बनाने के लिए सच्चे और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ प्रयास करना चाहिए। यदि आप ईमानदार, दयालु और मिलनसार हैं, तो मित्र बनाना आपके लिए सहज और सुखद अनुभव होगा।
मित्र बनाने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है:-
1. खुद को बेहतर बनाएं: आत्मविश्वासी बनें, आत्मविश्वास दूसरों को आपकी और आकर्षित करता है। दूसरों को प्रेरित करने और उत्साह बढ़ाने वाली सोच रखें। अपनी बातों और व्यवहार में ईमानदारी दिखाएं।
2. मुस्कुराते रहें: आकर्षक व्यक्तित्व विकसित करें, आपकी मुस्कान और सकारात्मक रवैया दूसरों को आपके प्रति आकर्षित करेगा।
3. दूसरों की बात सुनें: दूसरों की बातें ध्यान से सुनें और उनकी भावनाओं को समझें। उनकी समस्याओं और भावनाओं को समझकर सही प्रतिक्रिया दें।
4. मिलनसार बनें: आसानी से घुलने-मिलने की आदत डालें, नए लोगों से खुलकर मिलें और बातचीत करें। सामाजिक गतिविधियों में भाग लें, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेल-कूद, या क्लबों में शामिल हों। जिनसे आपकी रुचियां मेल खाती हो, उनके साथ समय बिताएं।
5. सहयोग और समर्थन दे : मित्र की मदद करने और उसके साथ खड़े रहने की आदत डालें। कठिन समय में साथ लें, जब लोग जरूरत में हों, उनकी मदद करें। सहज रहें, जरूरत से ज्यादा दिखावा न करें, लेकिन स्वाभाविक रूप से सहयोगी बनें।
6. सकारात्मक दृष्टिकोण: सकारात्मक सोच और उत्साह से संबंध बनते हैं।
7. सराहना करें: ईमानदारी से उनके अच्छे गुणों की सराहना करें। उनके प्रयासों और सफलता को सराहें।
8. विश्वास बनाए रखें: मित्रता का आधार सत्य और विश्वास है। गोपनीयता बनाए रखें, उनके निजी रहस्यों को साझा न करें। ईमानदारी से व्यवहार करें, झूठ बोलने से बचें और वादों को निभाएं।
9. दूरी और सीमाओं का सम्मान करें: जबरदस्ती न करें, दोस्ती में स्वाभाविकता होनी चाहिए, इसे जबरदस्ती न थोपें, सीमाओं को समझें, व्यक्तिगत स्थान का सम्मान करे।

मित्रता में ध्यान रखने योग्य बातें

1. सम्मान बनाए रखें: सच्ची मित्रता का आधार विश्वास, समझ और सम्मान है। यदि मित्रता में सम्मान न हो, तो वह धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है। मित्र के प्रति आदर और उसकी भावनाओं का सम्मान करने से न केवल मित्रता गहरी होती है, बल्कि दोनों के बीच का बंधन भी मजबूत होता है। सम्मान से संबंध दीर्घकालिक और स्थायी बनते हैं तथा विश्वास और आत्मीयता बढ़ती है। सम्मानजनक मित्रता में नकारात्मकता और झगड़े की संभावना कम होती है।

2. गोपनीयता बनाए रखें: मित्र की निजी बातें किसी अन्य से साझा न करें। सच्ची मित्रता का आधार विश्वास और सम्मान है, और इन दोनों को बनाए रखने में गोपनीयता की अहम भूमिका होती है। मित्रता में जो बातें साझा की जाती हैं, ये अवसर गहरी भावनाओं, समस्याओं और व्यक्तिगत अनुभवों से जुड़ी होती हैं। यदि इन बातों की गोपनीयता भंग होती है, तो न केवल मित्रता को नुकसान पहुँचता है, बल्कि मित्र के आत्मसम्मान और विश्वास को भी ठेस पहुँचती है।

3. समय  : मित्रता में समय देना उसे पोषित करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। यह न केवल आपसी संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि जीवन में खुशी और सकारात्मकता भी लाता है। सच्ची मित्रता समय, धैर्य और समर्पण की माँग करती है। यदि आप अपने मित्र को समय देंगे, तो आपका संबंध हर परिस्थिति में मजबूत और स्थायी रहेगा। अतः नियमित बातचीत करें, मित्र से फोन पर बात करें या संदेश भेजें। सामूहिक गतिविधियाँ करें जैसे एक साथ घूमने, फिल्म देखने या किसी खेल में भाग लें। खास अवसरों पर साथ रहें, मित्र के पारिवारिक उत्सव, जन्मदिन, खुशी या संकट के समय में साथ मौजूद रहें। व्यस्तता के बावजूद, मित्र के साथ समय बिताने के लिए एक दिन तय करें ऐसी गतिविधियों में भाग लें, जो आप दोनों को पसंद हों।

4. स्वार्थ से बचे: मित्रता निःस्वार्थ होनी चाहिए। मित्रता तभी टिकाऊ और सुखद होती है, जब उसमें स्वार्थ का स्थान न हो। सच्ची मित्रता निःस्वार्थता, सहयोग, और विश्वास पर आधारित होती है। स्वार्थी मित्रता केवल अस्थायी होती है और अंततः हानि पहुँचाती है। इसलिए, मित्रता को सच्चे और निःस्वार्थ भाव से निभाना चाहिए ।

5. शिकायतें दूर करें: मित्रता में कभी-कभी शिकायतें या गलतफहमियाँ हो जाती हैं, जो स्वाभाविक हैं। लेकिन इन्हें सुलझाना जरूरी होता है ताकि मित्रता मजबूत बनी रहे। शिकायत को सही तरीके से व्यक्त करना और समाधान ढूंढना न केवल संबंध को बचाता है बल्कि उसे और गहरा भी करता है।
शांति से बात करें, बातचीत के लिए सही समय और स्थान चुनें। गुस्से में प्रतिक्रिया देने से बचें, और शांत मन से समाधान करें। मित्र को यह महसूस कराएँ कि आप समस्या को हल करना चाहते हैं, न कि झगड़ा करना । अपनी भावनाएँ साझा करें अपनी शिकायत को स्पष्ट और ईमानदारी से व्यक्त करें। ‘तुमने ऐसा किया‘ की बजाय मुझे ऐसा महसूस हुआ‘ जैसे वाक्य का प्रयोग करें। मित्र को अपनी बात रखने दें, उसकी बात ध्यान से सुनें। यदि यह कोई सफाई या स्पष्टीकरण देना चाहता है, तो उसे मौका दें। उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें।
गलतफहमियों को दूर करें, यदि कोई बात गलतफहमी के कारण हुई है, तो उसे स्पष्ट करें। एक-दूसरे के नजरिए को समझने की कोशिश करें। यदि गलती आपकी है, तो बिना झिझक माफ़ी माँगें। यदि मित्र की गलती है और वह माफी माँगता है, तो उदारता से माफ़ कर दें। क्षमा करने से संबंधों में सुधार होता है। पुरानी बातों को न दोहराएँ, शिकायत को सुलझाने के बाद, पुरानी बातों को बार-बार न दोहराएँ । बीती बातों को भुलाकर आगे बढ़ें।

मित्रता में शिकायतें होना स्वाभाविक है, लेकिन उन्हें सुलझाने के लिए ईमानदारी, संवाद और धैर्य की जरूरत होती है। जब आप सच्चे मन से प्रयास करेंगे, तो शिकायतें दूर होंगी और आपकी मित्रता और अधिक मजबूत और गहरी हो जाएगी।

इस समय एक रोचक एवं प्रेरक कथा याद आ रही है

दो मित्र, अजय और विजय, एक रेगिस्तान से गुजर रहे थे। रास्ते में दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई। गुस्से में अजय ने विजय को थप्पड़ मार दिया। विजय ने कुछ नहीं कहा और रेत पर लिखा, ‘आज मेरे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा’ ।

वे आगे बढ़े। चलते-चलते उन्हें एक नखलिस्तान मिला, जहाँ पानी था। विजय नहाने के लिए पानी में गया, लेकिन अचानक यह दलदल में फँसने लगा। अजय ने तुरंत उसकी मदद की और उसे बचा लिया। विजय ने इस बार पत्थर पर लिखा, ‘आज मेरे दोस्त ने मेरी जान बचाई’

अजय ने पूछा, जब मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा, तो तुमने रेत पर लिखा, और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई, तो पत्थर पर क्यों लिखा? विजय ने जवाब दिया, जब कोई हमें ठेस पहुँचाए, तो उसे रेत पर लिख देना चाहिए ताकि समय की हवा उसे मिटा दे। लेकिन जब कोई हमारे लिए अच्छा करे, तो उसे पत्थर पर लिखना चाहिए ताकि यह हमेशा याद रहे। अतः सच्चा मित्र वही होता है, जो छोटी-छोटी गलतियों को भुलाकर अच्छे कामों को हमेशा याद रखे और दोस्ती को मजबूत बनाए।

सच्ची मित्रता जीवन का सहारा है। मित्रता मानव जीवन का एक ऐसा उपहार है, जो जीने का आनंद और कठिनाइयों से लड़ने का साहस देता है। सच्चे मित्र जीवन के हर मोड़ पर सहारा बनते हैं और हमारी खुशियों को बनाते हैं। इसलिए, मित्रता ने ईमानदारी, विश्वास और सच्चाई को बनाए रखना आवश्यक है। सच्चा मित्र हमारे जीवन का दर्पण होता है, जो हमें हमारी गलतियों को दिखाकर सही दिशा में प्रेरित करता है।

एम.पी. जैन
सेवा सेवानिवृत्ति निदेशक सांख्यिकी
64, सूर्यनगर, तारों की कूंट, टोंक रोड, जयपुर

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