जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोच्च धर्म माना गया है, और जीव दया इसका एक महत्वपूर्ण अंग है। जीव दया का अर्थ है सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा दया और सम्मान का भाव रखना यह सिद्धांत न केवल मनुष्यों के प्रति, बल्कि सभी जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, और सूक्ष्म जीवों के प्रति भी लागू होता है। जैन धर्म में, जीवों के प्रति दया दिखाना और उन्हें किसी भी प्रकार की हानि से बचाना, आत्मशुद्धि और मोक्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना गया है।
जीव मात्र के प्रति भगवान महावीर का अहिंसा संदेश हम साकार कर सकते हैं। जीवदया को सामान्य रूप से गाय को कसाई से छुड़ाकर गौशाला में रखा देना कबूतर को दाना डालना अथवा बकरे को अमरिया करवा देना माना जाता है। यह तो श्रेष्ठ कार्य है ही. परन्तु यहां तक सीमित होकर संतोष कर लेना उचित नहीं है। जीवदया का अर्थ प्राणी मात्र को तनिक भी कष्ट न पहुंचे, उनकी रक्षा- सुरक्षा हो, अभय बनें उसके लिए हमें वैचारिक क्रांति को प्रधानता देनी होगी।
शाकाहार प्रचार-प्रसार व व्यसन मुक्ति के स्टीकर पोस्टर सी.डी. साहित्य प्रचार-प्रसार के लिए स्थनुमा वाहन एवं जीवदया फण्ड एकत्रित करके हम अनेकों ऐसे कार्य कर सकते है ऐसा करने से एक भी परिवार शाकाहारी बनें तो सैकड़ों जीवों को अभयदान स्वतः ही मिल जाएगा।
पशु मूक होते हैं, बोल नहीं सकते वे अपने दुःख दर्द भूख प्यास बीमारी और अनेक कष्टों को व्यक्त नहीं कर सकते है। हम भगवान महावीर जीवदया मैत्री संघ से जुड़कर मूक प्राणियों के लिए अधिक से अधिक सेवा कार्य कर सकते हैं। गौशालाओं को संचालित करने हेतु प्रबंधन में सहयोगी बन सकते हैं। गौशालाओं में चारे के लिए सहयोग व पंजीकृत गौशालाओं को अन्नदान दे सकते हैं।
गौशालाओं को गोधन के लिए मुंहपका खुरपका व मुंह में छाले की दवाई का निःशुल्क दवाई वितरण करवा सकते हैं। पशुओं के लिए स्वच्छ पानी के हौज बनवाने में सहयोग, जिन गौशालाओं में पशुओं के पीने के लिए पानी का अभाव है, वहां ट्यूबवैल, नलकूप आदि का प्रबंधन करने में सहयोगी बनें। पशुओं को अभयदान देकर उनको संरक्षण उपलब्ध कराना, पशुओं, पक्षियों के प्रति होने वाले अत्याचार क्रूरता और अन्याय के विरुद्ध वैचारिक वातावरण बनाना भगवान महावीर जीवदया मैत्री संघ का प्रमुख उद्देश्य है।
पक्षियों के लिए पक्षीघर का निर्माण करना भी भगवान महावीर जीवदया मैत्री संघ का महत्वपूर्ण कार्य है, अब तक दो पक्षीघरों का निर्माण कराया जा चुका है, तीसरे पक्षीघर का निर्माण दुर्गापुरा गौशाला में शीघ्र प्रारम्भ किया जाएगा।
नई गौशाला खोलने और वर्षों पुरानी गौशालाओं को संचालन में सहयोग कर सकते हैं आवश्यकता कबूतर खानों को दवाई व दाने हेतु सहयोग करना चबूतरे बनवाना, पशु-पक्षी चिकित्सालय खुलवाना बीमार पक्षियों घायल पशुओं के लिए ईलाज के लिए मदद करना पशु रक्षा करना एवं जीवदया के संकल्प पत्र भरवाने जैसे कार्य कर सकते हैं।
धर्म में वर्णित गुप्तदान एवं जीवदया के महत्व को समझें स्वीकार करें। शास्त्रों में वर्णित भावना के अनुसार अहिंसा धर्म का आधार ही करुणा कृपा भाव और अनुकम्पायुक्त मंगल मांगल्य है। भगवान महावीर जीवदया मैत्री संघ में पुरुषार्थ एवं परिश्रम से कमाया धन उदारमना होकर दान दें और अपना लोक लोकांतर सफल बनाएं अपना सहयोग भरा हाथ बढ़ाएं।
भगवान महावीर जीवदया मैत्री संघ का सहयोग करने के लिए संखक सदस्य बनकर रुपये 1,01,000 का सहयोग कर सकते हैं।
प्रतिमाह भेजे जाने वाले पक्षीवाने में भी सहयोग करने के लिए निवेदन है।
दुर्गापुरा गौशाला में बनने वाले तीसरे पक्षीघर के निर्माण अधिक से अधिक सहयोग देकर पक्षियों प्रति दया भावना का परिचय देवें। इसके अतिरिक्त उपरोक्त वर्णित किसी भी योजना में दान देकर सहयोग कर सकते है।
‘जैन धर्म में जीव दया का महत्व
1. अहिंसा और जीव दया
अहिंसा जैन धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जीव दया का पालन अहिंसा के व्यापक अर्थ को समझने और लागू करने में मदद करता है। यह सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि सभी जीवों में आत्मा होती है और हर आत्मा का सम्मान किया जाना चाहिए। किसी भी जीव को हानि पहुँचाना या उसकी हत्या करना जैन धर्म के विरुद्ध है। इसलिए जीव दया का पालन आवश्यक है ताकि अहिंसा का सिद्धांत सही मायनों में अपनाया जा सके।
2. मोक्ष की प्राप्ति में सहायक
जैन धर्म के अनुसार जीवों के प्रति दया और करुणा दिखाने से आत्मा की शुद्धि होती है, जो अंततः मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होती है जब व्यक्ति दूसरों के प्रति दया दिखाता है, तो वह अपने अंदर की क्रोध, घृणा और अहंकार जैसी नकारात्मक भावनाओं को कम करता है। इससे आत्मा को शुद्धि और शांति प्राप्त होती है, जो मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करती है।
3. पर्यावरण संखान
जीव दया का सिद्धांत न केवल जीव-जंतुओं तक सीमित है, बल्कि यह पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैन धर्म में पेड़-पौधों और प्रकृति के अन्य तत्वों के प्रति भी दया और सम्मान का भाव रखाने की शिक्षा दी जाती है। यह पर्यावरण को संरक्षित रखने और धरती पर जीवन को संतुलित बनाए रखने में मदद करता है।
4. शाकाहार और जीव दया
जैन धर्म में शाकाहार का पालन अनिवार्य है, क्योंकि मांसाहार से जीवों की हत्या होती है, जो अहिंसा के सिद्धांत के खिलाफ है। शाकाहार के माध्यम से जैन अनुयायी जीवों के प्रति दया और करुणा दिखाते हैं। इसके अलावा कुछ जैन अनुयायी लहसुन, प्याज और अन्य जड़ों का सेवन भी नहीं करते, क्योंकि इन्हें उखाड़ने से छोटे जीवों को हानि पहुँच सकती है।
5. नैतिकता और करुणा का विकास
जीव दया का पालन व्यक्ति के अंदर नैतिकता करुणा और दया का विकास करता है। यह सिद्धांत सिखाता है। कि जीवन में केवल अपने हित के बारे में न सोचकर दूसरों के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए। यह सामाजिक सामंजस्य और शांति की स्थापना में भी सहायक होता है।
6. जीवन का संतुलन
जीव दया का पालन जीवन में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। जैन धर्म में यह माना जाता है कि सभी जीव एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक जीव की पीड़ा दूसरे पर भी असर डालती है। इसलिए सभी जीवों के प्रति दया और करुणा दिखाना जीवन को संतुलित और सामंजस्यपूर्ण बनाए रखने के लिए आवश्यक है। निष्कर्ष जैन धर्म में जीव दया का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल अहिंसा के सिद्धांत का पालन करने में मदद करता है, बल्कि आत्मशुद्धि मोक्ष की प्राप्ति और सामाजिक सामंजस्य की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। जीवों के प्रति दया और करुणा दिखाकर व्यक्ति न केवल अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बना सकता है, बल्कि पूरे समाज और पर्यावरण के प्रति भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है। इस प्रकार जैन धर्म का जीव दया का सिद्धांत एक आदर्श जीवन जीने की दिशा में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।
एम.पी. जैन, मंत्री भगवान महावीर जीवदया मैत्री संघ
सेवा निवृत निदेशक सांख्यिकी
64. सूर्यनगर, तारों की कुंद, टॉक रोड, जयपुर
94140 57260