श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

क्षमा

अभी समाप्त हुए भाद्रपद माह में जैन धर्म के धर्मावलम्बियों द्वारा पर्यूषण पर्व मनाये गये । श्वेताम्बर आमनाय मनाने वाले जैन बन्धुओं ने पंचमी के दिन क्षमा पर्व मनाया तथा दिगम्बर आमनाय मानने वाले जैन बन्धुओं ने पड़वा के दिन। इस क्षमा पर्व को बडी धूम-धाम से मनाया । क्षमा शब्द सुनने और पढने में बहुत ही आकर्षक लगता है और इसका शाब्दिक अर्थ भी जो यह संदेश देता है कि अपने दुष्कृत्यो के लिए क्षमा मांगकर अपना मन साफ कर लेना ही उत्तम कृत्य है ।

जैन धर्म में उत्तम क्षमा धर्म का व्यापक उल्लेख मिलता है जिसको जैन मतावलम्बी अपने जीवन में भी उतारते है और यही नही इस क्षमा भाव के शब्द का गीता में उल्लेख किया गया है । इस्लाम व अग्रेजों के ईसाई धर्म में भी क्षमा का विशेष स्थान है ।

क्षमा शील होना मानव का स्वभाव होता है और क्षमा मांगना उससे भी बढकर है। परन्तु हम लोग उपरोक्त अवसरों पर मिच्छामी दुक्कड बोलकर इस व्यापक क्षमा शब्द की इति श्री कर लेते है । वास्तविक जीवन में हम क्षमा को धारण ही नही कर पाते है । समाजबन्धु क्षमा से संबंधित क्रियाओं को भूलकर अपने मनोभाव क्षणभर के लिए प्रशंसा प्राप्त करने के लिए प्रकट करते है ।

अगर क्षमा वास्तव में कोई भी व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकार करके मांगता है तो क्षमादाता भी इससे पीछे नही हटता है और क्षमादान प्रदान करता है । परन्तु वास्तविकता यह है कि यहाँ कोई भी अपनी गलती मानने को तैयार नही है और न क्षमा करने को कोई तैयार है। अगर क्षमा मांगने और क्षमा करने से कोई समस्या का समाधान हो सके तो आज समाज में वैमनस्यता को कोई जगह नही मिलती और संगठन छिन्न- भिन्न नही होते । समय आ गया है, समाज के हित में  अपने अहंकार को त्यागकर, क्षमा धर्म के मर्म को समझते हुए अपने कृत्य निर्धारित करे और समाज को एक सूत्र में पिरोने के संबंध में विचार करे तभी क्षमा धर्म की सच्ची अनुपालना होगी।

रमेश चन्द पल्लीवाल
सम्पादक

 

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