श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

कहानी सबसे सुहानी – धन दुखों का कारण

एक बार की बात है कि वर्णी जी के एक भक्त थे, वे प्रतिदिन उपदेश सुनते थे, वे एक दिन आए और वर्णी जी से बोले-मैंने आपकी बहुत चर्चा सुनी है। आप बहुत बड़े तेजस्वी हैं आप मुझे ऐसा आशीर्वाद दें, कि मैं खूब पैसा कमाऊँ और आपकी सेवा वैय्यावृत्ति एवं दान करूँ। वर्णी जी ने कहा त्याग के लिये पैसा ही क्यों कमाना, जो है उसी में से दान करना चाहिये तथा नियम लेना चाहिये, कि लोभ नहीं करेंगे। सेठ जी बोले छूटता नहीं है। वर्णी जी ने कहा सेठ जी कल आना, तब आपके प्रश्न का उत्तर देंगे, अब सेठजी प्रसन्न थे। जब सेठ जी के आने का समय हुआ तो वर्णी जी खंभा पकड़कर खड़े हो गये। तभी लोगों का आना प्रारंभ हो गया और वर्णी जी खंभे को इस ओर से उस ओर, उस ओर से इस ओर धक्का लगाते हैं, सब को आश्चर्य होता है, कि यह क्या हो रहा है ? सब लोग पूछते हैं-कि वर्णी जी आप क्या कर रहे हैं? वर्षी जी ने कहा-यह मत पूछो, कि मैं क्या कर रहा हूँ ? यह देखो कि इस खंभे ने मुझे पकड़ लिया है मुझे छुड़ाओ । सभी पूछते हैं-पंडित जी, आप इतने विद्वान होकर ऐसा कह रहे हो। उसी समय सेठ जी भी आ गये, उन्होंने पूछा तो वर्णीजी ने उन्हें भी वही जवाब दिया। तब सेठजी बोले-पंडित जी, आप क्षमा करें, आप खंभे को छोड़ दें। आपमें इतनी अज्ञानता कैसे आ गई? खंभा कभी किसी को नहीं पकड़ सकता है। वर्णीजी ने कहा-बस यही अज्ञानता है तुम्हारी, कि सम्पत्ति तुम्हें नहीं, तुम सम्पत्ति को पकड़े हो। तुम उसके प्रति लोभ तथा आसक्ति को छोड़ दो। क्योंकि धन दुःख का कारण है।

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