आज मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं । पुराने समय की बात है हमारे गांव मे एक ठाकुरजी का मंदिर था । उसमें सब तरह के देवता विराजमान थे । महादेवजी का परिवार, हनुमानजी, कृष्ण और कई तरह के देवी देवताओं की मूर्तियां वहां थी । मंदिर की सेवा पूजा एक बाबाजी करते थे और गांव का एक लड़का जिसका नाम भोला था वह बाबाजी की सेवा टहल और थोड़ा बहुत मंदिर के काम में बाबाजी की मदद करता था। भोला वाकई बहुत भोला और सरल था । मंदिर में जो कुछ चढ़ावा आता उससे दोनों अपनी गुजर बसर करते और मस्त रहते थे । बाबाजी की उम्र काफी हो गई थी । एक बार कुंभ का मेला लगा । बाबाजी ने सोचा क्यूं न इस बार कुंभ में नहा लिया जाय । अगली बार जिंदगी का पता नहीं, मौका मिले या न मिले । उन्होंने भोला को अपना इरादा बताया कि भई तू पीछे से मंदिर संभाल लेगा या नहीं । भोला ने कहा महाराज आप आराम से बे-खटके जाओ और मंदिर की चिंता मत करो । वैसे मुझे आपके साथ रहते बरसों हो गये हैं इसलिए मंदिर की सारी साज संभाल मुझे आती है अत: आप बे फिकर जाओ और कुंभ नहा आओ ।
सस्ता जमाना था । बाबाजी ने भोला को सब कुछ समझा कर उसको 100 रूपये दिये और कहा ! देख ! मेरे हिसाब से ये कम नहीं पड़ेगें पर फिर भी अगर तुझे कुछ जरुरत पड़े तो मैं बाहर जो बणिये की दुकान है उससे कह जा रहा हूं, तू उससे जो भी चाहिऐ ले लेना । भोला ने कहा महाराज आप चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगा और आप तो गंगा में गोते लगा आओ । शाम को बाबाजी रवाना हो गये ।
दूसरे दिन भोला उठा । मंदिर की साफ सफ़ाई की फिर नहा धोकर मंदिर की पूजा पाठ की, दिया जलाया और भगवान से पूछा ! बताओ प्रभु आज क्या खाओगे ? अब ठाकुरजी तो क्या जवाब देते । उसने फिर पूछा ! कि आज क्या बनाए । फिर खुद ही बोला ! अच्छा तो आज चूरमा बाटी दाल बनालें । कैसा रहेगा । सौ रुपए थे ही, सारा सामान ला कर उसने दाल बाटी चूरमा बनाया । उसने गिन लिये थे कुल 22 प्रतिमायें थी उस हिसाब से 22 पत्तल बिछा कर खाना परोस दिया और बोला बाबा आ जाओ, भोजन तैयार है । पर कोई हलचल नहीं । फिर थोड़ी देर बाद बोला ! बाबा आ जाओ भोजन ठंडा हो रहा है और मुझे भी भूख लगी है जल्दी आ जाओ । फिर को॓ई शिट्ट नहीं । अब भोला को गुस्सा आ गया । उसने मंदिर के कौने में एक मोटा डंडा पड़ा था उसे उठाकर जोर से जमीन पर फटकारा बाबा तीन बार कह चुका हूं दुपहरी हो गई भोजन ठंडा हो रहा और मुझे भी भूख लग रही है और तुम हो कि सुन ही नहीं रहे और फिर जोर से डंडा फटकारा । अब तो तमाम मूर्तियो से घसड घसड सारे देवी देवता निकल कर पंगत में बैठ गये । भगवान दुपहरी हो गई भोजन ठंडा हो रहा है और मुझे भी भूख लग रही है और आप सुन ही नहीं रहे । फिर उसने जमके भगवान को भोजन कराया फिर आप भोजन किया और चैन से सो गया । अब तो रोज यह कार्यक्रम चलने लगा । भगवान क्या खाओगे ? और अपने ही मन से रोज कभी खीर पूरी कभी हलवा पूरी जैसे विभिन्न व्यंजन बना कर भगवान को भोजन कराने लगा । लठ्ठ हमेशा हाथ में रखता । इस तरह चार माह बीत गये ।
एक दिन बाबाजी वापस आ गये अपने हाल चाल बताये और भोला से पूछा को॓ई दिक्कत तो नहीं हुई। महाराज खूब मौज रही और भगवान को जम के भोजन कराया । पैसे तो कम नहीं पड़े । कम ! महाराज आप बणिये से कह ही गये थे उसका एक हजार ऊधार हो गया है । अबे क्या बकवास करता है ? मेरा पूरा जीवन हो गया पूजा भोग लगाते कभी एक आने से ज्यादा का प्रसाद नहीं चढ़ाया और तू कहता सौ के अलावा एक हजार और उधार हो गये ।
महाराज मैंने तो रोज भगवान से पूछकर उनकी इच्छानुसार भोजन कराया । बाबा को भरोसा नहीं हुआ ।उनकी सारी उम्र हो गई थी मंदिर की सेवा टहल करते । पर भोला को भी वो जानते थे कि भोला झूठ नहीं बोलता, पर उनको भरोसा नहीं हुआ ।अच्छा तू एक काम कर । मैं छुप जाता हूं तू कल मुझे ये करके दिखा । दूसरे दिन भोला ने रोज की तरह भोजन तैय्यार किया । लठ्ठ उठाया और भगवान से कहा आ जाओ प्रभु ! भोजन तैयार है । तुरंत सब देवी देवता निकल कर पंगत में बैठ गये और जम के भोजन किया । बाबाजी दंग रह गये । उन्होंने भोला के चरण पकड़ लिये । ये तूने कैसे किया ? मेरी सारी जिंदगी हो गई मंदिर में पूजा-पाठ करते । तू ये बता ! तूने किया क्या ? महाराज मैंने कुछ नहीं किया “जो कुछ किया इस लठ्ठ ने किया” । भोला का भोलापन निश्छल भक्तिभाव सरलता ने भगवान को अनायास उसके पास ला दिया । जरुरत भीतर से अपने को सरल और साफ करने की है । भगवान तो वहां बिराजमान हैं ही । उन्हें और कहीं ढूंढना नहीं है पर अंदर जाने में डर लगता है । जन्म जन्मातर से कभी अंदर नहीं गये । अंदर बहुत झाड़ झंकाड़ है । बहुत कचरा है और वहां अकेले ही जाना होता है । और अंदर जाये बिना को॓ई गति नहीं ।
जय जिनेन्द्र।
हरीश मधु जैन बक्शी (हरसाना)
80 शक्ती नगर जयपुर