श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

जैन दर्शन में भाव कर्म किस प्रकार कर्मों को बदलते हैं

जैन दर्शन में भाव कर्म किस प्रकार कर्मों को बदलते हैं :-

एक दृष्टांत से समझते हैं:-

एक सेठ था उसके चंदन की लकड़ी का छोटा सा व्यापार था,उसके मरने के बाद लड़के ने व्यापार को काफी बढ़ा लिया था इससे वह चंदन सेठ के नाम से प्रसिद्ध हो गया ।
एक दिन उस राज्य का राजा ग्राम / नगर भ्रमण के लिए निकला अपनी प्रजा का हाल चाल जानने के लिए कि मेरी प्रजा को कोई परेशानी तो नहीं है ।
सभी लोग राजा का अभिवादन /सम्मान करने के लिए अपने अपने घरों से निकल कर राजा के दर्शन करने के लिए आये ।
लेकिन जो चन्दन सेठ था जब राजा उसके घर के आगे से निकला तो चन्दन सेठ नीचे नहीं आया और ऊपर छत से ही राजा का अभिवादन किया ।

इसी समय सेठ के मन में लालच के कारण विचार आया कि यदि राजा की मृत्यु हो जाए तो मेरा जो पुराना चंदन का स्टॉक है वह सब राजा के दाह संस्कार में काम आयेगा ,सब अच्छे दाम पर बिक जाएगा जिससे काफ़ी आय भी होगी ।

दूसरी और राजा को ये बात बुरी लगी कि इस सेठ को इतना घमंड जो नीचे भी नहीं आया । गुस्से में राजा ने अपने मंत्री को उसी समय आदेश दिया कि कल सुबह इस चंदन सेठ को दरबार में बुलाकर फाँसी पर लटकाया जाए ।

देखो केवल भावो के कारण सेठ अपने लाभ के लिए राजा की मृत्यु की सोच रहा है और उधर राजा भी उसे मृत्यु यानी फाँसी की सजा की सोच रहा था ।

जबकि दोनों को एक दूसरे के विचारो ( भावों )के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था लेकिन एक दूसरे के प्रति विपरीत भाव ही हो रहे थे ।

रात के समय जब सेठ का सोने समय हुआ तो उसे विचार आया की मैंने राजा के बारे में जो सोचा था ,मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था क्योंकि राजा तो पिता तुल्य है और मैं अपने पिता के लिए ऐसे कैसे सोच सकता हूँ ,उसे बहुत पश्चाताप हुआ,उसने अपने आप से कहा कि मैं कभी भी इस प्रकार की बात मन में नहीं लाऊँगा ।इस तरह उसने अपने भावों को बदल दिया ।

दूसरी तरफ़ दूसरे दिन मंत्री ने राजा से कहा कि उस चन्दन सेठ को फाँसी के लिए बुला ले क्या,लेकिन राजा ने यह कह कर मना कर दिया कि पता नहीं उसकी कोई मजबूरी होंगी कि वो नीचे नहीं आया ,कोई भी ऐसा कारण हो सकता है जिससे उसने ऊपर से ही अभिवादन किया,इसलिये उसे इस छोटी सी बात के लिए फाँसी की सजा नहीं दी जाए ।उसने भी अपना मन बदल दिया ।

देखो भावो के कारण ही एक दूसरे के भाव परिवर्तित हो गए जबकि किसी को भी एक दूसरे के भावो के बारे में मालूम नहीं था ।
इससे ये भी सिद्ध होता है कि हम जो भाव कर रहे हैं यानी किसी के प्रति ग़लत सोच रहे हैं तो दूसरा भी आपके प्रति ग़लत भाव सोच रहा हैं ।और यदि हम अच्छा सोचते हैं तो सामने वाला भी हमारे प्रति अच्छा ही सोचेगा ।

भावो के कारण ही हम अपने इस भव में या आने वाले भवों में सुखी दुःखी होंगे ।

इसलिए भावों पर नियंत्रण रखना जरूरी है ।

त्रिभुवन जैन
कोटा

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