श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

हम कहाँ खड़े हैं ?

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा के 55 वर्ष पूर्ण हो जाने पर हमें विवेचन करना होगा कि महासभा अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में कितनी सफल रही है। हम आज कहाँ खड़े है ? इस पर हमें चिंतन करना है। महासभा के गठन का उद्देश्य परस्पर सदभाव प्रेम बढाना तथा समाज के और अन्य धर्म / जाति / सम्प्रदाय / वर्ग के सभी व्यक्तियों की नैतिक, अर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तथा शारीरिक उन्नति करना है।

समाजोपयोगी जनहित एवं परमार्थ के अनेक कार्यों का जिनको महासभा द्वारा किया जाना चाहिए का उल्लेख भी महासभा के विधान में किया गया है।

जैसे जैसे 1969 से महासभा आगे बढती गई प्रगति की गति भी बढती गई, किन्ही कार्यकालों में प्रगति में रूकावट आई, तो किन्ही कार्यकाल में गतिशीलता में बढोतरी होती रही। उसमें संगठनात्मक सुदृढता, आर्थिक रूप से उन्नति अनेको कार्य व गतिविधियों का संचालन किया गया ।

पिछले 6 – 7 वर्षो से अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा का ग्राफ नीचे की ओर गिरता जा रहा है। पूर्व में चल रही अनेकों गतिविधियाँ / योजनाएँ या तो बन्द हो गई है या उनमें अवरोध उत्पन्न हो गया है। पिछले कार्यकाल में शीर्षस्थ पदाधिकारियों ने महासभा के कार्यों गतिविधियों पर ध्यान नही देकर अपनी अन्य योजनाओं पर ध्यान केंद्रित रखा। महासभा के वर्तमान कार्यकाल में महासभा की अवनिति चरम पर पहुँच गई है। महासभा की इस स्थिति को देखकर आत्मिक दुख होता है। हम महासभा से वर्ष 1976 से जुडें है, सदैव महासभा के कार्यों में सक्रिय भागीदारी साझा की है। वर्ष 2004 से 2011 तक महासभा के महामंत्री पद के दायित्व का निर्वाहन किया है। हमारे कार्यकाल में जो भी कार्य हमारे द्वारा किए गए थें, वे आपके सामने हैं उनका उल्लेख यहाँ करने का कोई औचित्य नहीं है। महासभा की आगे की स्थिति को देखकर सबसे बड़ा दुख यह होता है कि महासभा दो भागों में विभाजित होने के कगार पर खडी हुई हैं हालांकि पूर्व में भी दो बार महासभा में यह स्थिती बनी थी किन्तु हमारे संस्थापक महामंत्री व पूर्व अध्यक्ष आदरणीय श्री क्रान्ति कुमार जी जैन, श्री शेखर चन्द जी जैन पूर्व अध्यक्ष महासभा के प्रभाव से उस वक्त संकट खत्म हो गया था। आज स्थिती यह है कि इन दोनो भूतपूर्व अध्यक्षों व अन्य भूतपूर्व पदाधिकारियों का प्रभाव भी काम नही आ रहा है। अहम का प्रभाव अपना ज्यादा विकट रूप धारण किये हुआ है। अहम के अलावा कुछ सलाहकारों का भी प्रभाव ज्यादा ही असर डाले हुये है, जो दोनो पक्ष के एक होने मे रोड़ा अटकाए हुए है आज अगर ये दोनो पक्ष (श्री त्रिलोक चंद जी व श्री महेश जी) सच्चे मन से, निष्पक्षता से स्वविवेक से निर्णय लेकर समन्वय से कार्य करे तो शायद कुछ सफलता मिल सकती है ।

आज महासभा की यह स्थिती क्यों और कैसे हुई ? इस पर विचार करे तो यह सर्व मान्य सत्य है- जो समाज के अधिकाश समाज जनों द्वारा स्वीकारा भी गया है कि इस स्थिती की शुरूआत तो महासभा की कार्यकारिणी के निर्वाचन हेतु नामांकन पत्रों को नागपुर में भरवाने का कार्यक्रम निर्धारित करना व बाद में हस्तिनापुर में मतदान कार्यक्रम रखना यह पूर्णतया हठधर्मिता पूर्ण निर्णय था । नागपुर में भी निर्विरोध चुनाव संपन्न होने की स्थिती बन गई थी, किंतु कुछ व्यक्तियों की व्यक्तिगत द्वेषता के फलस्वरूप चुनाव निर्विरोध संपन्न नही हो सके थे।

अलवर में महासभा के चुनाव व्यवस्थित रूप से शान्ति पूर्व सम्पन्न हो गये थे। मतगणना के बाद तीनों निर्वाचित पदाधिकारियों ने आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हुए गले मिलकर, सामूहिक जुलूस में एक साथ चल कर एकता का परिचय दिया। समाज के सामने एक अच्छा संदेश गिया कि यह तीनों मिलजुल कर एक राय से समाज हित में कार्य करेंगें और निश्चत रूप से इनके नेतृत्व में महासभा प्रगति की और अग्रसर होगी ।

प्रथम मीटिंग पदमपुरा आहूत की गई उसमें ही महासभा के ऊपर ग्रहण लगना आरम्भ हो गया । विधान के अनुरूप मीटिंग की कार्यवाही प्रारम्भ नहीं करने पर गम्भीर मतभेद पैदा हो गए। जैसा कि अध्यक्ष महोदय द्वारा अनेकों बार अपने उद्बोधन में आमजन को बताया गया कि हम तीनों ने यह सामूहिक निर्णय किया था कि पदमपुरा की मीटिंग में केवल निर्वाचित तीनों पदाधिकारियों व क्षेत्रीय सदस्यों को ही आमंत्रित किया जाएगा, उसके बाद भी महामंत्री द्वारा बिना अध्यक्ष की सहमति एवं उनकी जानकारी में नहीं लाकर पूर्व अध्यक्ष एवं महामंत्री को मीटिंग में आमंत्रित कर दिया। अध्यक्ष द्वारा उनको मीटिंग में उपस्थित नही होने के निवेदन करने के बावजूद भी पूर्व अध्यक्ष एवं महामंत्री मीटिंग में उपस्थित हुए। दूसरे जिनका नाम महामंत्री को सहमंत्री के लिए प्रस्तावित करना था उन्हे भी अध्यक्ष जी की जानकारी में लाए बगैर आमंत्रित कर लिया गया था।

पूर्व अध्यक्ष एवं महामंत्री के मीटिंग मे उपस्थित होने पर मीटिंग की कार्यवाही सम्पन्न होने में गंभीर रूकावटें आई तथा हंगामा पूर्ण वातावरण में बगैर किसी निर्णय के यह मीटिंग समाप्त हुई। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि विधान की धारा 14 (1) (ग) व (घ) में स्पष्ट उल्लेख है कि अंतिम भूतपूर्व अध्यक्ष महामंत्री एवं सहमंत्री तीनों पद मनोनीत सदस्य पदाधिकारियों की श्रेणी में आते है । पहले कार्यकारिणी (निर्वाचित ) इनका मनोनयन करेगी उसके बाद यह कार्यकारिणी में मनोनीत सदस्य पदाधिकारी के रूप में सम्मलित होगें। निश्चित रूप से यह विधान की अवहेलना थी। वैसे भी जिन्हे अंतिम अध्यक्ष व महामंत्री के रूप में कार्यकारिणी की मीटिंग में बुलाया गया था, उन दोनो को अंतिम अध्यक्ष व महामंत्री मानना भी विवादास्पद है।

महासभा की दूसरी मीटिंग श्री महावीर जी में बुलाई गई थी उस मिटिंग में विधान की घोर अवहेलना की गई थी। महासभा के शेष पदाधिकारियों व सदस्यों का मनोनयन केवल महासभा के निर्वाचित पदाधिकारियों व क्षेत्रीय सदस्यों द्वारा ही किया जाना विधान की धारा 15 ( 2 ) में स्पष्टतय उल्लेखित है। नागपुर व अलवर दो जगह के निर्वाचन कार्यक्रम में 3 पदाधिकारी व 40 क्षेत्रीय सदस्य (कार्यकारिणी सदस्य) निर्वाचित हुए थें। इन 43 को अन्य पदाधिकारियों का मनोनयन / निर्वाचन करना था महावीर जी में 2 सदस्य अनुपस्थित रहे थे। शेष रहे 41 सदस्यों को निर्वाचन प्रक्रिया में भाग लेना था। महावीर जी की मीटिंग में उपस्थित अनेकों सदस्यों के द्वारा बताया गया है कि 50 व्यक्तियों द्वारा मतदान प्रक्रिया में सम्मलित होकर अन्य पदाधिकारियो को निर्वाचन किया गया था। अध्यक्ष जी को भी विधान की धारा 20 (1) ग में मतदान का अधिकार देते हुए भी मतदान नहीं करने दिया गया था। इस तरह से यह पूर्णतया अवैधानिक कार्यवाही थी । उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह स्पष्ट है कि वर्तमान कार्यकारिणी में मतभेद के मुख्यरूप से यही कारण थे जिनकी वजह से कार्यकारिणी में गंभीर मतभेद व मनभेद पैदा हो गये। अगर समय रहते यह तीनों पदाधिकारी आपस में विधान के अनुरूप मिल बैठकर सर्व मान्य तरीके से इनका समाधान करते तो आज यह स्थिती पैदा नही होती।

अब विवाद विकराल रूप ले चुका है दोनो धड़ों की अलग-अलग मीटिंग हो रही है, एक ग्रुप ने साधारण सभा और प्रतिनिधि सम्मेलन आयोजित कर लिया। दूसरे ग्रुप ने कार्यकारिणी की बैठक आयोजित कर ली। एक दूसरे को पदों से हटा दिया है। एक ग्रुप द्वारा आयोजित प्रतिनिधि सभा ने महामंत्री के खिलाफ अविश्वास पास कर महामंत्री को पदमुक्त कर दिया। दूसरे ग्रुप ने कार्यकारिणी की मीटिंग में ही अध्यक्ष व अर्थमंत्री को पद से हटा कर महासभा की साधारण सदस्यता से भी बर्खास्त कर दिया। यह कितना वैधानिक है ? कार्यकारिणी को अध्यक्ष व अर्थमंत्री को पदों से हटाने की कितनी वैधानिक स्वीकारोक्ति है ? यह विचारनीय विषय है। यह वैधानिक शाक्तियों का दुरूपयोग तो नहीं है ? महासभा को इस तरह संगठनात्मकरूप से कमजोर करने, दो ग्रुपों में विभाजित होने की यह स्थिती पैदा करने में श्री पल्लीवाल जैन पत्रिका के मुख्य पदाधिकारियों की भी “निष्पक्षता नही होने व्यक्ति विशेषों के प्रभाव में आकर निर्णय लेने के कारण सहभागिता रही है। अब यह विवाद केवल तीन व्यक्तियों का नही रहा है बल्कि जो दोनो पक्षों द्वारा अपने अपने पदाधिकारी मनोनीत किए गये हैं व भी सम्मलित हो गये है। उनका पदमोह भी पुनः पदमपुरा मीटिंग से पूर्व की स्थिती में वर्तमान कार्यकारिणी को लाने में बहुत बड़ा अवरोध है। आज यदि दोनो पक्षों के मनोनित सदस्य / पदाधिकारी अपने पदो को त्याग दें और अंतिम भूतपूर्व अध्यक्ष व महामंत्री के पदों का मोह पूर्व अध्यक्ष एवं महामंत्री छोड दे तो निश्चित रूप से महासभा के विवाद को समाप्त करने के लिए भूतपूर्व पदाधिकारियों व समाज के श्रेष्ठीजनों की दोनो पक्षों के द्वारा मान्य समझौता समिति के माध्यम से विवाद को समाप्त किया जा सकता है। महासभा में एकता कायम हो सकती है। आपसी निष्कासन में दोनो पक्ष खत्म करे मुकदमें बाजी को समाप्त करें एकता कायम होने के बाद सभी मिल जुलकर महासभा की उन्नति के लिए कार्य करें। समाज और महासभा को आगे बढाएं। इन्ही शुभ भावनाओं के साथ ।

इतिश्री
श्रीचंद जैन 
पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री महासभा 110, अशोक विहार विस्तार, जयपुर

This Post Has One Comment

  1. राजेन्द्र प्रसाद जैन, अध्यक्ष जयपुर शाखा

    आज के हालात यहीं से पैदा होने लग गए थे : प्रथम मीटिंग पदमपुरा आहूत की गई उसमें ही महासभा के ऊपर ग्रहण लगना आरम्भ हो गया । विधान के अनुरूप मीटिंग की कार्यवाही प्रारम्भ नहीं करने पर गम्भीर मतभेद पैदा हो गए और
    अब यह विवाद केवल तीन व्यक्तियों का नही रहा है बल्कि जो दोनो पक्षों द्वारा अपने अपने पदाधिकारी मनोनीत किए गये हैं वे भी सम्मलित हो गये है। उनका पदमोह भी पुनः पदमपुरा मीटिंग से पूर्व की स्थिती में वर्तमान कार्यकारिणी को लाने में बहुत बड़ा अवरोध है।

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