श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

गिद्ध बनने का संकल्प

श्री अशोक कुमार जैन हिन्दी भाषा के मूर्धन्य लेखकों में से एक हैं।हिंदी साहित्य की हर विधा में इनकी रचनाशीलता रही है।इस अंक में श्री अशोक कुमार जैन के द्वारा लिखा लेख “गिद्ध बनने का संकल्प”सभी समाज जनों के अध्ययन-मनन के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है आशा है सुधि पाठकों को इस रचना की बेबाकी पसंद आएगी।

सम्पादक 

   जब से नन्दन जी आकर बैठे थे तब से भईया जी ने यह वाक्य पचास बार पचास तरह से घुमा-फिराकर कहने के बाद अब एकदम साफ-साफ बोला था। इससे पूर्व वे लल्ला बाबू की बुराई कई रूपों में कर चुके थे। उन्होंने लल्ला बाबू के बारे में इतना कुछ आड़ा-तिरछा करके बता दिया था कि कोई समझदार आदमी होता तो अब तक आश्चर्य करने लगता कि इतना दुष्ट आदमी समाज सेवक बन कर समाज को नेतृत्व प्रदान कर रहा है और लोगों को खबर भी नहीं भईया जी देख रहे थे, इतना कुछ कहने के बाद भी, नन्दन जी समझे या समझ कर भी नहीं समझे। तब उन्होंने सीधा कहना उचित समझा ‘आप तो इस लल्ला बाबू का कोई इन्तजाम करो।’
  नन्दन जी बोले, ‘क्या बात है भईया जी आप लल्ला बाबू से इतना नाराज क्यों हैं ? ‘
  आप जानते नहीं…. भईया जी ने कहा।
   मिल-जुल कर रहना सीखो भईया जी आप सभी लोग समाज सेवी हो सारा समाज आप लोगों की ओर आशाभरी नजरों से ताकता है। आपको दिखाना होगा कि हम सब एक हैं, तभी तो समाज में भी एकता आएगी नन्दन जी ने अपने काले चश्मे में से भईयाजी की ओर देखते हुए मुस्कराकर जवाब दिया। ‘न हो फिर भी दिखाना तो चाहिए ही न।’ यह बात तो आपको हमारे जैसे पेशेवर सामाजिक राजनीतिज्ञों से सीखनी चाहिए। कौन कहता है कि एक हो जाओ। लड़ो-मरो पर बात एकता की करो। लड़ाई की बात ही मत करो। आप तो इतने विद्वान हैं, पर आप तो दुश्मन को दुश्मन बता कर मारना चाहते हो, यह बात ठीक नहीं है वो जमाने गये जब क्षत्रियों, राजपूतों का जमाना था। दुश्मन को कहकर मारते थे। यह कोई बुद्धिमानी नहीं थी। तभी तो दुश्मन कभी मरता नहीं था वह तैयार हो जाता था। ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर लल्ला बाबू आपका दुश्मन है……
   आप सब कुछ जानते हैं, कैसे मेरे पीछे पड़ा है, मेरी कोई बात चलने ही नहीं देता। अपनी चालबाजियों से बहुमत उसने अपने पक्ष में कर लिया है। नकारा से नकारा लोगों को पद बांट दिये हैं। मुझे तो समाज जनों ने वोट देकर चुना था और आज वह चापलूस मुझे यह बता रहा है कि विधान के अनुसार आपको कोई अधिकार नहीं है। जिस आदमी के कारण समाज का मुंह काला हुआ उससे मिलकर लल्ला बाबू समाज को तोड़ने पर आमदा है आप से कौन सी बात छिपी है आप सब जानते हैं वह कैसे मेरे पीछे लगा है।
   वह भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर रहा है। दुश्मन से ऐसे नहीं लड़ा जाता। आप हमको ही देखिये, कितने विरोधी हैं हमारे। जिनको हमने पाला-पोसा आज वही विरोधी हो गए। हमारे निर्णय के खिलाफ हो हमारे मुंह पर जूता मार दिया, फिर भी हमने कोई नाराजगी व्यक्त की क्या ? आज भी हमारे चैले आपस में एक दूसरे की टांग खिंचाई करते हैं, पर सार्वजनिक मंच पर और आम समाज के सामने यही कहते हैं कि हम तो समाज के अदना से सेवक हैं, हममें कोई लड़ाई नहीं है तथा ह सभी में घनघोर मोहब्बत चल रही है।
   आप लोगों की यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात है यदि आपस में मतभिन्नता है, जो अब दुश्मनी में बदल गई है, तो यह जरूरी तो नहीं कि सारी दुनिया में डिंडोरा पीटते फिरो कि हम में दुश्मनों के बराबर मतमेद हैं। इससे वातावरण खराब होता हैं। वातावरण सोहार्दपूर्ण होना चाहिए। कत्ल भी करना हो तो भी सौहार्दपूर्ण वातावरण में करिए समझे न आप ‘वह तो ठीक है, पर आप तो उस लल्ला बाबू का इलाज करवाइए। ‘
   फिर वही बात की न आपने आप हमारी बात मानिए प्यार मोहब्बत से रहिए। लल्ला बाबू की कमर में, गले में हाथ डालिए, अपना बना कर रखिए। सीधे-साधे बने रहिए और मौके की प्रतीक्षा करिए। मौके की प्रतीक्षा कीजिए तो मौका जरूर आता है। गिद्ध जैसा धैर्य चाहिए भैयाजी दुश्मन को पछाड़ना है तो धैर्य से प्रतीक्षा कीजिए मौका आएगा और एक बार मौका आए तो चूकिए मत। कमर में हाथ डाल कर पटक दीजिए चढ़ बैठिए ऊपर और खत्म कर दीजिए दुश्मन पर ऐसा वार कीजिए कि पलटकर बाद में बार करने के लिए बचे ही नहीं।
   कब तक प्रतीक्षा करूं? दो साल होने को आए और आप कह रहे हैं कि प्रतिक्षा करूं। इतने इंतजार में तो गिद्ध भी अघा जाता है, भईयाजी रूंआसे से होकर बोले।
   नहीं अघाता जनाब हम क्यों नहीं अघाए ? लोगों ने सामाजिक संगठन में पद पाने के लिए वर्षों तक प्रतीक्षा की है। हम राजनीति में क्या करते हैं? सही अवसर की प्रतीक्षा करते हैं सही अवसर की प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं। चुपचाप पड़े रहते हैं। सबको नमस्ते करते हैं। ऐसा लगता है कि हमारे जैसा कोई संत ही नहीं हैं। फिर मौका आता और सब खत्म।
   नहीं नहीं नन्दन जी, आप तो इस लल्ला बाबू का कुछ करावें वरना मैं प्रतीक्षा करता ही रह जाऊंगा और वह चापलूसों का संग-साथ बनाकर मेरी छाती पर ऐसे ही बैठा रहेगा।
‘नहीं बैठ पाएगा। परेशान न हों। प्रतीक्षा करो मौका जरूर आयेगा।’
   दो वर्ष तो हो गये प्रतिक्षा करते-करते, आप के कहने से इतना पैसा खर्च किया शहर शहर गाँव-गांव आदमी आदमी को अपना बाप बनाता फिरा, महिनों पूरे परिवार ने अपना काम धन्धा छोड़ कर हर नातेदार रिश्तेदार की चिलम भरी । इतना करने के बाद भी उस कल के लौंडे ने हमारे मुंह पर हमारा जूता ही भिंगो-भिगो के मारा है और आप कहते हो कि मौके का इन्तजार करो।
   ऐसा मत कहिए भैयाजी, मौके का क्या है, आप आँखें खुली रखो, वह आज भी आ सकता है होता क्या है राजनीति में जो बेवकूफ खिलाड़ी होते हैं वह रोना रोते रहते हैं कि मौका नहीं आया और मौका कई बार आकर चला जाता है। आँखे मींचकर मत चलिए। अन्दर की आँखें भी खोल कर रखिए। हर छोटी-मोटी घटना पर नजर रखिए, इन्हीं में से मौके आते हैं, जब आप दुश्मन को परास्त कर सकते हैं हम राजनीति में क्या करते हैं? कोई अवसर छोड़ते हैं क्या? आपने तो अपने हाथों में आये हुए कई अवसर अपनी मूर्खता से गंवा दिये। आपकी इन्हीं गलतियों का परिणाम है कि लल्ला बाबू दिन-पर- दिन संगठन को नुकसान और अपने गिरोह को मजबूत करता चला गया। खैर अब इन बातों में रखा भी क्या है? लल्ला ने अपनी चालाकियों से समाज जनों में अपनी जाजम बिछा दी है।
   अब आपको एक काम करना चाहिए, पहले तो आप लल्ला बाबू के खिलाफ अनियमिताओं का समाज जनों में प्रचार कीजिए, फिर कुछ समय बाद देश भर के समाज जनों का सम्मेलन अधिवेशन आयोजित कीजिए। इस अधिवेशन सम्मेलन में ज्यादा से ज्यादा समाज के लोगों की भीड़ जुटाईये एकत्रित समाज जनों में लल्ला बाबू की दुष्टताओं का प्रचार कीजिए । एकत्रित समाज जनों के बीच लल्ला बाबू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उसे संगठन से निकाल बाहर कीजिए। अपने किसी खास आदमी को उसकी जगह मनोनीत कीजिए और संगठन पर पूरी तरह से काबिज हो जाईए।
   नन्दन जी ने आगे की रूपरेखा का वर्णन कुछ इस प्रकार किया- आपके द्वारा निष्कासित लल्ला बाबू निश्चत ही विरोध स्वरूप कार्यकारिणी जोकि पूरी तरह से उसके फेवर में हैं, की आपतकालीन बैठक बुलाएगा और उसमें आपको और आपके संगी-साथियों के प्रति अनियमिताओं और संगठन विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर आपको और अन्य आपके साथी पदाधिकारियों के प्रति अविश्वास प्रस्ताव पास कराकर संगठन से निष्कासित कराने की कार्यवाही को अमली जामा पहना देगा।
   संगठन दो भागों में विभाजित हो जाएगा, एक में आप अपनी मनमर्जी चलाईये और दूसरे में लल्ला बाबू अपने अहम की सन्तुष्टी करता रहेगा। अब लड़ाई असली और नकली की हो जाएगी कौन सा संगठन असली है और कौन सा नकली। दोनो ही अपने को असली का प्रतिनिधि घोषित करेंगे। ‘नक्कालों से सावधान’ मामला कोर्ट-कचहरी में विचाराधीन हो जाएगा। दसियों वर्षों तक न्यायालय में कोई न्याय नहीं होगा, तब तक आप और लल्ला बाबू दोनों मजे से अपने-अपने गुट- गिरोहों के नेता बने रहोगे। पर अपनी गिद्ध दृष्टि को खुला रखना लल्ला बाबू अति उत्साह में कोई न कोई गलती करेगा, बस चूकना मत और उस गलती का पूरा लाभ उठाते हुए उसकी गरदन मसक देना।
   भईयाजी को बात पूरी तरह से समझ में आ गई। उन्होंने नन्दन जी के मार्गदर्शन को हृदयंगम करते हुए, गिद्ध बनने का संकल्प कर लिया है।
-अशोक कुमार जैन

This Post Has 2 Comments

  1. मनीष जैन

    आप तो हरि शंकर परसाई को भी मात दे चुके हों

  2. राजेन्द्र प्रसाद जैन, अध्यक्ष जयपुर शाखा

    आज के हालात पर सटीक व्यंग्य किया है।
    ये बात बेहद पसंद आई है:-
    “अपनी गिद्ध दृष्टि को खुला रखना लल्ला बाबू अति उत्साह में कोई न कोई गलती करेगा, बस चूकना मत और उस गलती का पूरा लाभ उठाते हुए उसकी गरदन मसक देना।”
    मार्गदर्शन को हृदयंगम करते हुए, गिद्ध बनने का संकल्प सभी को कर लेना चाहिए।

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