जैन दर्शन में सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र इन तीनों के प्राप्त होने को मोक्ष का साधन बताया गया है। अतः मोक्ष प्राप्ति की पहली शर्त सम्यक्-दृष्टि होना बताया गया है। सात तत्वों यानि कि जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, का ठीक-ठीक (यथार्थ) श्रद्धान होना सम्यक् दर्शन है। सच्चे देव, सच्चे शास्त्र तथा सच्चे गुरुओं के प्रति श्रद्धा रखने को भी सम्यक् दर्शन का कारण कहा गया है।
इसके विपरीत सात तत्वों पर श्रद्धान न करना, सच्चे देव, सच्चे शास्त्र या सच्चे गुरुओं पर श्रद्धान न रखना या फिर खोटे देव, खोटे शास्त्र तथा खोटे गुरुओं पर श्रद्धान रखना, इन सब को मिथ्या दर्शन कहा गया है। पं. दौलतराम जी ने मिथ्यात्व को दो प्रकार का बताया है (१) गृहीत मिथ्यात्व (२) अगृहीत मिथ्यात्व। वह मिथ्यात्व जो अनादिकाल से जीव के साथ जुड़ा हुआ है, अगृहीत मिथ्यात्व है; तथा वह मिथ्यात्व जो इस भव में ही जीव के द्वारा ग्रहण कर लिया गया है, गृहीत मिथ्यात्व है।
श्री रतनलाल डोशी ने अपनी पुस्तक “सम्यत्क्तत्व-विमर्श” में पच्चीस प्रकार के मिथ्यात्व का वर्णन किया है। ये निम्र प्रकार है- (१) अधर्म को धर्म मानना, (२) धर्म को अधर्म मानना, (३) कुमार्ग को सुमार्ग समझना, (४) सुमार्ग को कुमार्ग समझना, (५) अजीव को जीव मानना, (६) जीव को अजीव मानना, (७) असाधु को साधु मानना, (८) साधु को असाधु मानना, (९) अमुक्त को मुक्त मानना, (१०) मुक्त को अमुक्त मानना, (११) आभिमहिक मिथ्यात्व, (१२) आनाभिमहिक मिथ्यात्व, (१३) आभिनिवेशिक मिथ्यात्व, (१४) सांशयिक मिथ्यात्व, (१५) अनायोगिक मिथ्यात्व, (१६). लौकिक मिथ्यात्व, (१७) लोकोत्तर मिथ्यात्व, (१८) कुप्रावचिक मिथ्यात्व, (१९) न्यूनकरण मिथ्यात्व, (२०) अधिक-करण मिथ्यात्व, (२१) विपरीत मिथ्यात्व, (२२) अक्रिया मिथ्यात्व, (२३) अज्ञान मिथ्यात्व, (२४) अविनय मिथ्यात्व, (२५) आशातना मिथ्यात्व।
कुल मिलाकर सही को गलत मानना या गलत को सही मानना ही मिथ्यात्व है। अब यहाँ कुछ प्रश्न उपस्थित होते हैं। आज विज्ञान ने अनेकों गूढ़ रहस्यों को खोज निकाला है। कुछ ऐसे भी रहस्य उद्घाटित हुए हैं जो प्राचीन मान्यताओं के विपरीत है या फिर प्राचीन मान्यताओं का खण्डन करते हैं। मसलन पृथ्वी चपटी है या गोल; यह स्थिर है या घूमती है। इसी प्रकार के अन्य कई बिंदु हो सकते हैं, लेकिन फिलहाल हम पृथ्वी के संबंध में चर्चा करेंगे।
जैन मान्यता रही है कि पृथ्वी चपटी है तथा स्थिर है। दो सूर्य तथा दो चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा देते रहते हैं। सूर्य चन्द्रमा के मुकाबले पृथ्वी के नजदीक है। लेकिन आज विज्ञान ने इन सब बातों को गलत सिद्ध कर दिया है। आज की वैज्ञानिक खोजों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि पृथ्वी चपटी नहीं बल्कि गोल है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। चन्द्रमा पृथ्वी का ही एक उपग्रह है तथा सूर्य के मुकाबले में वह पृथ्वी के काफी करीब है। पृथ्वी का मात्र एक सूर्य तथा एक ही उपग्रह चन्द्रमा है। पृथ्वी गोल है, इसे हम अपने सामान्य अनुभवों से भी सिद्ध कर सकते हैं।
जब कोई पानी का जहाज समुद्र से जमीन की ओर आता है तो पहले उस जहाज का शिरोभाग या झंडा दिखाई देता है, बाद में जहाज दिखाई देता है। इसका स्पष्ट कारण यह है कि पृथ्वी गोल है तथा जहाज और धरातल के बीच पृथ्वी का गोल भाग आ जाता है जो कि जहाज को छिपा देता है. जबकि जहाज का शिरोभाग तथा घरातल पर स्थित प्रेक्षक के मध्य पृथ्वी का अवरोध समाप्त हो जाता है और वह दिखने लगता है। इसे चित्र – १ में दिखाया गया है। चूँकि प्रेक्षक मात्र उस ऊचाई की वस्तु देख सकती है जो प्रेक्षक की पृथ्वी पर स्पर्श रेखा XY से ऊँची हो, उससे कम ऊँची वस्तु को प्रेक्षक नहीं देख सकता है। चूँकि जहाज का झंडा स्पर्श रेखा को पहले छूने लगता है, अतः वह पहले दिखाई देने लगता है। जहाज स्पर्श रेखा के नीचे रहता है। अतः वह दिखाई नहीं देता है। जब जहाज स्पर्श रेखा को छूने लगता है तो वह भी दिखाई देने लगता है।
एक अन्य प्रयोग हम टेलीविजन पर प्रसारण को लेकर भी समझ सकते हैं। आज यह हम सभी जानते हैं कि हम ट्रांजिस्टर या रेडियो पर बिना कृत्रिम उपग्रह पा ऐन्टिना की मदद से अमेरिका से समाचार सुन सकते हैं लेकिन अमेरिका से प्रसारित होने वाले चलचित्र टेलीविजन पर नहीं देख सकते हैं। इसका कारण यह है कि ध्वनि तरंगे सूक्ष्म होती है तथा आयनोस्फेयर से परावर्तित होकर वापस पृथ्वी पर आ जाती हैं; जबकि चलचित्र वाली प्रकाश तरंगें दीर्घ होती हैं तथा आयनोस्फेयर से परावर्तित होकर पृथ्वी पर वापस नहीं आ पाती हैं। अतः इन तरंगों को मात्र उस क्षेत्र में ही प्राप्त करा जा सकता है जो पृथ्वी पर स्पर्श रेखा के ऊपर का भाग है।
(चित्र-२) यानि कि यदि चलचित्र का प्रसारण ट्रांसमीटर A से हो रहा है तो उसे रिसीवर B पर तो प्राप्त करा जा सकता है, लेकिन रिसीवर C पर प्राप्त नहीं करा जा सकता है क्योंकि उसके मध्य पृथ्वी अवरोध बन जाती है। यदि रिसीवर C पर भी चित्र देखना हो तो कृत्रिम उपग्रह की मदद ली जाती है या फिर रिसीवर तथा ट्रांसमीटर एक साथ अनेकों स्थानों पर लगाने होते हैं।
इनके अतिरिक्त एक साक्ष्य अंतरिक्ष यात्रियों का भी है। विभिन्न देशों ने अनेकों अंतरिक्ष यान भेजे हैं तथा उनमें स्थित अंतरिक्ष यात्रियों ने पृथ्वी के चित्र भी लिए हैं और देखा भी है। ये चित्र भी बताते हैं कि पृथ्वी गोल है, चपटी नहीं।
इस प्रकार हम देखते है कि वैज्ञानिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी चपटी नहीं गोल है। उसने सदियों से चली आ रही मान्यता को गलत सिद्ध कर दिया है। इसके वाबजूद भी बहुत से लोग इन खोजों को गलत मानते हैं क्योंकि शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी गोल नहीं चपटी है। यदि शास्त्रों में लिखी बात को गलत मानेंगे तो मिथ्यादृष्टि कहलायेंगे, इस भय से वे वैज्ञानिक खोज पर आधारित सत्य को गलत मानते हैं।
लेकिन जैसा कि हमने ऊपर लिखा है कि सही बात को गलत मानना भी मिथ्यात्व है। यदि हम इस सत्य को स्वीकार नहीं कर सके कि पृथ्वी गोल है तो स्पष्ट मानियेगा कि हम मिथ्यादृष्टियों की श्रेणी में ही हैं। और अब रही शास्त्रों में लिखी पृथ्वी सम्बन्धी अवधारणा, तो इस बात को हमें इस रूप में लेना चाहिए कि हमारे आचार्यों ने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर यह अवधारणा व्यक्त की थी। उस समय प्रयोग आदि करने की व्यवस्था तो थी नहीं। अतः इस अवधारणा को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जो कुछ शास्त्रों में लिखा है वह ज्यों का त्यों, सारा का सारा भगवान् महावीर की ही वाणी नहीं है। अनेकों आचार्यों तथा विचारकों की भी कई बातें शास्त्रों में जुड़ती चली गई हैं। हमें तो वैज्ञानिक खोजों से खुश होना चाहिए कि इनके कारण हम अपनी भूलों को सुधार पा रहे हैं तथा सत्य को उजागर कर पा रहे हैं।
बहुत से लोग सोचते हैं कि यदि हमने आचार्यों की बात को गलत सिद्ध कर दिया तो उनके ज्ञान पर प्रश्न चिह्न लग जायेगा या फिर वे अपमानित होंगे। यह भी मिया धारणा है। महान् वैज्ञानिक न्यूटन ने सिद्ध किया कि प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है, लेकिन बाद में उसका तरंग सिद्धान्त गलत साबित हो गया। इससे न्यूटन के सम्मान में कोई कमी नहीं आई है। वह आज भी उतने ही सम्मानित वैज्ञानिक है जितने वे अपने समय में थे। इसी प्रकार यदि किसी आचार्य ने अपने अनुभव के आधार पर कोई बात लिख दी और यदि वैज्ञानिक खोजों के आधार पर गलत सिद्ध हो जाती है तो हमें खिन्न नहीं होना चाहिए। वे आज भी उतने ही सम्मानित है जितने पहले थे। यदि हम ऐसा कर पायेंगे तभी मिथ्यात्व हमसे दूर हो पायेगा और सम्यत्क्तत्व को ग्रहण कर पायेंगे।
डॉ. अनिल कुमार जैन
बापू नगर, जयपुर