मनुष्य जीवन देव दुर्लभ जीवन है। जिसे पाने स्वर्ग के देवता भी तरसते हैं। इतना पावन, कीमती जीवन यूं का यूं ही निकल जाए तो बड़ा दुर्भाग्य है। देवर्षि लौकान्तिक देव तीर्थंकरों के दीक्षा कल्याणक के अवसर पर आते हैं और उनके वैराग्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं- धन्य धन्य है आपके पावन विचार जो आप मुक्ति पथानुरागी बन गये हैं। हम भी यही भावना भा रहे हैं कि हम भी कब उस दुर्लभ मानव देह को प्राप्त करें। तुलसीदास जी कहते हैं-
बड़े भाग मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ ग्रंथन नहीं गावां।
यह मानव का तन देव दुर्लभ है। विरले ही देवों का समय भगवत् भक्ति, तीर्थ प्रभावना, सहायता में जाता है। अधिकांशतः देव दूसरों को परेशान करते हैं। ऐसे मिथ्यादृष्टि देव अधिकांश तिर्यंच पर्याय में जाते हैं। विरले ही मनुष्य होकर संयम धारण कर निर्वाण पाते हैं। मनुष्य तन पाया परंतु कषायों को, छल-कपट, असूया भावों को न छोड़ पाने के कारण दुर्गति में जाते हैं। मानव जीवन तो सार्थक उनका है जो संयम से इसे श्रृंगारित कर लेता है। सद्गुणों से भर लेते हैं। ऐसे मनुष्य अपने भव को सार्थक कर पाते हैं। 2000 सागर वर्ष त्रस पर्याय में से 1000 सागर तो विकलत्रयों में ही निकल जाते हैं। 1000 त्रस के उसमें भी मात्र 48 भव ही मनुष्य पर्याय के होते हैं। जिनमें 16 भव स्त्री, 16 भव नपुंसक व 16 भव पुरुष के होते हैं। और कर्मों का क्षय मात्र पुरुष पर्याय में ही होता है। यानि मात्र 16 ही अवसर है यदि इन भवों में सावधान नहीं हुए तो वापस निगोद में जाना पड़ता है और वापस आना भरे समुद्र में से राई के दाने को खोजने की तरह कठिन है। अनंत समय निगोद में ही बीत जाता है। अतः सावधान ! सोचिए? आप क्या कर रहे हैं? क्या भविष्य को धूमिल बनाना है? तब अंतरात्मा से एक ही आवाज निकलती है नहीं, नहीं मुझे अनंत संसारी नहीं बनना। कर्मों का क्षय कर निर्वाण को पाना है। बस बंधुओं! यही से मानव जीवन की कीमत होने लगती है। और जीवन में सुधार के सूत्र प्रारंभ हो जाते हैं। व्यक्ति कदम बढ़ाता है- आत्महित के उपायों को खोजता है, गुरु चरणों में जाता है और गुरु उपदेश देते हैं हे मानव । जागो ! सावधान होओ ! क्योंकि जीवन का कुछ भरोसा नहीं है। ‘जब जागो तभी सवेरा।’ संत/गुरुजन जीवन के उपकारी होते हैं। वे जीवन को संस्कारित करते हैं। मिट्टी को सांचे में ढ़ाल सुंदर कुंभ बना देते हैं। मूर्ति का आकार दे देते हैं। अतः गुरु चरणों में जाकर अपने मानव जीवन को सफल बना ले यही विवेक है, यही ज्ञान है यही मानव होने की उपलब्धि है।