श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी

राजस्थान के करौली जिले के हिण्डौन परगना में चाँदनपुर गाँव में स्थित अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ है । लोगों का मानना है कियहाँ स्थित भगवान महावीर की प्रतिमा अतिशयकारी है।
दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन ही नहीं अजैन लोग भी इसके दर्शन करने के लिए आते हैं। यह प्रतिमा लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है। गंभीर नदी के निकट इस गाँव के एक टीले से यह प्रतिमा लगभग चार सौ वर्ष पहले प्राप्त हुई थी जिसका एक बहुत ही रोचक किस्सा है।
एक जनश्रुति के आधार पर यह प्रचलित है कि एक ग्वाला इस टीले पर प्रतिदिन अपनी गाय चराने आता था। संध्या के समय वह अपनी गायों को लेकर घर चला जाता था। लेकिन एक दिन बड़ी अजीब घटना हुई, जब वह दूध दोहने के लिए बैठा तब उसने पाया कि एक गाय दूध नहीं दे रही है। कई दिनों तक ऐसा होता रहा ।उसे लगा कि कोई दूसरा उसकी गाय को घर आने से पहले ही दोह लेता है।उसने इसकी छानबीन करने की ठानी। वह उस गाय पर नजर रखने लगा। उसने जो देखा उसे देखकर वह स्तब्ध रह गया। यह देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि टीले के एक स्थान पर उस गाय का दूध स्वतः ही झर रहा है। दूसरे दिन फिर उसी स्थान पर यही घटना हुई। जब यह घटना लगातार होने लगी तो उसने उस स्थान को खोदने की सोची। थोड़ा सा ही खोदने पर उसे उपरोक्त प्रतिमा दिखी। उसने आदर पूर्वक उसे निकाला तथा उसी टीले पर एक ऊँचे स्थान पर उसे विराजमान कर दिया। तत्पश्चात् वहाँ एक छोटा मंदिर बना दिया गया।

इस प्रतिमा की प्रसिद्धि होने लगी। आसपास के लोग इसके दर्शन को आने लगे। सन् 1720 (संवत् 1777 ) में हिण्डौन के फौजदार अमरचंद बिलाला ने नए मंदिर का निर्माण कराया। जब इस मूर्ति को रथ पर रख कर टीले से नए मंदिर की ओर ले जाया जाने लगा तब यह रथ बिल्कुल भी नहीं खिसका। कई प्रयत्न किये गये तब भी मूर्ति को विस्थापित नहीं किया जा सका। तभी किसी ने एक युक्ति बताई कि जिसने इस मूर्ति को निकाला है। वही रथ को खींचे। ऐसा ही किया तब रथ बिना किसी बाधा के चलने लगा। तब से ही यह परंपरा रही है कि प्रतिवर्ष रथयात्रा के वार्षिक आयोजन में उस ग्वाले के परिवार का ही कोई व्यक्ति रथ को जरूर हाथ लगाता है।
एक दूसरी जनश्रुति भी प्रचलित रही है, दीवान जोधराज पल्लीवाल जातिय डंगिया चौधरी गोत्रीय एक जैन श्रेष्ठी थे। इनके पिता का नाम मंगलचंद था तथा माता का नाम कृपालुदेवी था । दीवान जोधराज का जन्म अलवर जिले के हरसाना ग्राम में सन् 1733 में हुआ था। उस समय भरतपुर राज्य के शासक जाट राजा हुआ करते थे। राजा सूरजमल से लेकर केसरीसिंह तक जोधराज यहा के दीवान रहे। सन 1764 के आसपास यहाँ के शासक रणजीतसिंह इनसे अप्रसन्न हो गये तथा इनको मृत्युदण्ड सुना दिया। दीवान जोधराज ने चाँदनपुर की भगवान महावीर की मूर्ति का स्मरण किया तथा निश्चय किया कि यदि इस सजा से बच गया तो वह भगवान महावीर का भव्य मंदिर बनवायेगा। जोधराज को मारने के लिए तोप से एक के बाद एक तीन गोले दागे गये लेकिन एक भी गोला नहीं चला। भगवान महावीर की कृपा से जोधराज मृत्यु से बच गया। तत्पश्चात् सन् 1769 में केसरीसिंह के शासन में उसने भगवान महावीर का तीन शिखर वाला मंदिर बनवाया जो आज भी स्थित है ।
श्री महावीरजी क्षेत्र के आसपास के गांवों में अनके पल्लीवाल रहते थे। प्रारंभ में अधिकतर पल्लीवाल दिगम्बर आम्नायी थे तथा उनके मंदिर भी दिगम्बर आम्नायी थे। लगभग 60-70 वर्ष पहले यहाँ के अनेक पल्लीवाल आगरा चले गए। सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी मुंबई ने इस अवसर का लाभ उठाया तथा जो शेष पल्लीवाल थे उनमें से कुछ को विश्वास में लेकर जीर्णोद्धार के नाम पर यहाँ के मंदिरों की मूर्तियों के आँखें लगाकर उन्हें श्वेताम्बरी बना दिया गया।

1. चूँकि जनश्रुति के आधार पर श्री महावीर जी क्षेत्र के मंदिर का संबंध पल्लीवाल जातिय दीवान जोधराज से रहा है तथा यहाँ आसपास के पल्लीवाल मात्र श्वेताम्बर जैन ही रह गये थे, अतः इसी आधार पर सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी का कहना है कि श्री महावीर जी का मंदिर श्वेताम्बरों का है तथा भगवान महावीर की मूर्ति भी श्वेताम्बर आम्नायी ही है। इस बात को लेकर पिछले अनेक वर्षों से विवाद चल रहा है तथा कई दशकों से कोर्ट में लगातार मुकदमा चल रहा है। दिगम्बर लोग निचली अदालत से मुकदमा जीत गये थे, लेकिन उसके बाद श्वेताम्बर लोगों ने उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया।
2. हमारी दृष्टि में यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अपनी शक्ति को इस अनावश्यक कार्य में नष्ट कर रहे हैं। शायद यह मुकदमेबाजी बंद हो भी जाय लेकिन कुछ स्वार्थी लोग ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं जिस आधार पर श्वेताम्बर लोग श्री महावीर जी के मंदिर को श्वेताम्बर आम्नायी होना मानते हैं उसके लिए वे निम्न तर्क देते हैं।
3. श्री महावीर भगवान की मूर्ति श्वेताम्बर है, अतः यह मंदिर भी श्वेताम्बर है।
4. दीवान जोधराज श्वेताम्बर परंपरा को मानते थे। उन्होंने तीन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा / अंजनशलाका करवाई थी, ये तीनों मूर्तियां श्वेताम्बरी थीं। इनमें से एक मूर्ति भरतपुर के श्वेताम्बर मंदिर में, एक डीग के श्वेताम्बर मंदिर तथा एक अन्यत्र जो कि वर्तमान में मथुरा के म्युजियम में स्थित है विराजमान कर दिया गया था।
5. श्री महावीर जी में भी एक मूर्ति श्वेताम्बरी थी लेकिन उसे मंदिर केनिकट के एक कुए में डाल दिया गया।

6 प्रसिद्ध दिगम्बर जैन विद्वान पंडित श्री कैलाशचंद्र जी (बनारस वालों) ने “कल्याण’ पत्रिका के वर्ष ३१ के तीर्थांक में “दि. जैन तीर्थ क्षेत्र’ नाम से एक लेख प्रकाशित कराया था। इसमें उन्होंने दीवान जोधराज की ऊपर वाली घटना का जिक्र करते हुए स्वीकार किया था कि इस मंदिर का निर्माण दीवान जोधराज ने करवाया था।
7. डॉ. राम पाण्डे ने भी अपने शोध-प्रबन्ध में लिखा है कि दीवान जोधराज ने श्री महावीरजी सहित अनेक जैन मंदिरों का निर्माण कराया था।
8. चूँकि दीवान जोधराज श्वेताम्बर थे, अतः यह मंदिर भी श्वेताम्बरी ही है। हमने इन सभी बातों की छानबीन करने की कोशिश की। हम इसकी क्रमशः चर्चा करेंगे।

1. श्री प्रकाश चन्द्र जैन, रिटायर्ड IAS वर्षों तक श्री महावीर जी क्षेत्र के मंत्री रहे। आपका कुछ समय पूर्व सन् 2021 में 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। आप भरतपुर तथा अलवर में जिलाधिकारी रहे तथा हरसाना का भ्रमण भी किया था। आपके अनुसार भगवान महावीर की मूर्ति का अनेक बार सर्वे कराया जा चुका है। हर बार सर्वे में पाया कि मूर्ति पूर्णतः दिगम्बरी ही है दूसरी बात यह कहना बिल्कुल गलत तथा निराधार है कि एक श्वेताम्बरी मूर्ति जिसे दीवान जोधराज ने प्रतिष्ठित करवाया था, को मूल मंदिर के नजदीक वाले कुए में डाल दिया गया। उन्होंने बताया कि न तो उनके जीवन काल में ऐसी कोई घटना हुई और न ही उन्होंने अपने बुजुगों से ही यह बात सुनी। वस्तुतः ऐसी कोई मूर्ति थी ही नहीं।
2. पण्डित श्री कैलाशचंद्र जी को जब यह पता चला कि कल्याण में प्रकाशित उनके लेख का गलत प्रकार से प्रयोग किया जा रहा है तो उन्होंने ३० जनवरी सन् १९८६ के ‘जैन सन्देश’ पत्र में अपने सम्पादकीय में स्पष्टीकरण प्रकाशित किया। उन्होंने लिखा “श्री महावीरजी के दि जैन मंदिर का निर्माण किसने किया इसके लिए मेरे पास कोई ऐतिहासिक आधार व प्रमाण न उस वक्त था और न अब है। उन दिनों वाराणसी में मुझसे मिलने एक श्वेताम्बर मती श्री हीराचन्द जी प्रायः मिलते रहते थे। एक बार उनसे चर्चा हुई थी। उनके कथनानुसार ही इस क्षेत्र पर हुए श्री जोधराज जी के तोप के गोले से बचने के अतिशय की बात का मैंने अपने उस लेख में समावेश किया था।’
वे आगे लिखते हैं  “ऐसी चमत्कारिक अतिशय रूप में घटनायें हमारे लगभग सभी अतिशय क्षेत्रों के साथ कही जाती रही है व जुडी हुई हैं। उनकी ऐतिहासिकता व सत्यता के प्रमाण खोजने के बजाय उन घटनाओं से इस तीर्थ के प्रति लोगों की भावनाएं व श्रद्धा अधिकाधिक उत्पन्न हो, यही ध्येय लेखक का उनके दिग्दर्शन में रहता है। लेकिन मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि मेरी उन भावनाओं का लाभ श्वेताम्बर समाज दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी के आधिपत्य के लिए साक्ष्य तैयार करने में उठाना चाहता है। यह कोई स्वस्थ परम्परा नहीं है।” मेरा मानना है कि आदरणीय पंडितजी का यह स्पष्टीकरण उपरोक्त बिंदु न. ३ के उत्तर के लिए पर्याप्त होगा।

3. डॉ. राम पाण्डे के शोध-प्रबन्ध “A social and political history of the state of Bharatpur upto 1826″ को हमने राजस्थान विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में जाकर पूरा पढ़ा। यह शोध-प्रबन्ध उन्होंने सन् 1969 में राजस्थान विश्वविद्यालय में पीएचडी के लिए जमा कराया था। बाद में इसे पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित कराया गया था। इस शोध-प्रबन्ध में मात्र एक स्थान पर passing remarks की तरह जोधराज का नाम आया है। वे लिखते हैं, “Even then Najaf Khan consolidate Ranjeet Singh and promising his Deewan Jodhraj (Ranjeet Singh’s Mukhtar and famous for erecting so many temples of Mahavirji in different towns of the former states of Bharatpur and Jaipur) that after the emporer’s share of one-third has been settled”। यहाँ मात्र इतना ही लिखा है कि “वह दीवान जोधराज जिसने महावीरजी के अनेक मंदिर भरतपुर और जयपुर राज्यों में बनवायें।” ऐसा नहीं लिखा कि उन्होंने चांदनपुर के महावीरजी के मंदिर को बनवाया। इसी शोध प्रबन्ध में लिखा है कि भरतपुर और जयपुर के शासकों में दुश्मनी रहा करती थी। ऐसी स्थिति में जयपुर के राजा अपने दुश्मन राज्य (भरतपुर) के दीवान को अपने राज्य में कोई गतिविधि करने की मंजूरी देगा, यह संदेहात्मक ही है।
मैंने स्वयं डॉ. राम पाण्डे जी से फोन पर बात की। बाद में उनसे मिलने उनके घर भी गया और इस विषय में चर्चा की। हमने उनसे यह जानना चाहा कि क्या उनके पास ऐसा कोई प्रमाण है जो यह सिद्ध करता हो कि श्री महावीरजी के मंदिर का निर्माण दीवान जोधराज ने करवाया। वे कोई स्ष्ट उत्तर न दे सके।

4. दीवान जोधराज अलवर जिले के हरसाना गाँव के थे । अतः हमने वहाँ के मूल निवासी 90 वर्षीय डॉ. महावीर कोटिया जी (जयपुर) से बात की जो कि स्वयं पल्लीवाल जाति से हैं। डॉ. कोटिया एक अच्छे साहित्यकार हैं तथा कुशल संपादक रहे हैं। उनकी पुस्तक “जैन धर्म में कृष्ण भारतीय ज्ञानपीठ” से प्रकाशित हुई है । उन्होंने बताया कि वे बचपन से देखते चले आ रहे हैं कि हरसाना में मात्र एक पल्लीवाल जैन मंदिर था। मंदिर की मूर्तियों में कभी आँखे नही लगी थीं, जबकि श्वेताम्बर मूर्तियों में आँखे लगी होती है। सभी लोग उस मंदिर मे दर्शन, प्रक्षाल / अभिषेक व पूजा दिगम्बर पद्धति से करते रहे हैं।आगरा के पल्लीवाल दिगम्बर मंदिर की तरह यहाँ भी भादों के महीने में पंचमी और चतुर्दशी तथा क्षमावाणी पर्व ( पड़वा ढोक) आश्विन कृष्णा एकम (असोज वदी एकम) के दिन मानते रहे है तथा उस दिन अभिषेक भी होते रहे है। हाँ यह आवश्य है कि वहाँ कुछ श्वेताम्बर स्थानकवासी साधु और साध्वियां भी आते रहते थे लेकिन वे भी उसी मंदिर में ठहर जाते थे। पहले पहले मंदिर में शिखर नहीं था। बाद में एक चातुर्मास के दौरान दिगम्बर मुनि श्री सम्यक्त्वसागर जी (जोकि दीवान जोधराज के वंशज ही थे) की प्रेरणा से मंदिर में शिखर का निर्माण कराया गया। आज भी वह मंदिर उसी स्थिति में है। यही बात वहाँ के रहने वाले अन्य लोगों ने भी बताई। इन बातों से हमें प्रतीत होता है कि हरसाना का मंदिर दिगम्बरी रहा है लेकिन सभी पल्लीवाल जैनों में परस्पर अच्छा मेलजोल रहा है। इसलिये वहाँ कभी कोई विवाद नहीं रहा है।

5. दीवान जोधराज दिगंबर थे, यह एक और बात से सिद्ध होती है। अलवर निवासी श्री सतीशचन्द जी (जैन बुक स्टोर वालों) ने हमें दीवान जोधराज की वंशावली उपलब्ध करवाई। श्री सतीशचन्द जी की रिश्तेदारी दीवान जोधराज के वंशजों से है। उस वंशावली के अनुसार एक शाखा क्रमशः इस प्रकार रही है- मंगलचंद  जी – दीवान जोधराज –> सुखपाल –> प्रेमराज –> चतुर्भुजलाल –> गेंदालाल –> आनंदीलाल –> अमरचन्द–> मुकेश । श्री अमरचंदजी सतीशचन्द जी के ससुर थे। अमरचंदजी तथा उनका परिवार हमेशा से दिगम्बर परंपरा को मानता रहा है। अमरचंदजी ने पल्लीवाल जातियोत्पन्न आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज हस्तिनापुर वालों (अलावड़े वालों) से दिगम्बर मुनि दीक्षा ले ली थी तथा दीक्षोपरांत उनका नाम मुनि सम्यक्त्वसागर रखा गया था। मुनि श्री सम्यक्त्वसागर जी का समाधिमरण 73 वर्ष की आयु में सन् 2009 में हो गया था। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि दीवान जोधराज के वंशज आज भी न केवल दिगम्बर पंरपरा को मानते है बल्कि उनके परिवार के ही वंशज दिगम्बर मुनि भी हुए हैं। इन सब बातों पर विचार करने पर यह निश्चय होता है कि दीवान जोधराज मूलतः दिगम्बर आम्नायी थे। लेकिन जब कोई व्यक्ति किसी उच्च पद पर आसीन हो जाता है तब वह अन्य धर्मो और आम्नायों को भी समान रूप से सम्मान देने लगता है। इसी कारण यदि दीवान जोधराज द्वारा प्रतिष्ठित कोई श्वेताम्बर मूर्ति मिलती भी है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इतिहास से पता चलता है कि पहले अनेक राजा ऐसे हुए हैं जो सभी धर्मों का आदर करते थे तथा सभी धर्मों के मंदिरों को आर्थिक सहायता भी करते थे। दूसरी बात यह है कि न तो पण्डित श्री कैलाशचंद्र जी की बात से और न ही डॉ. राम पाण्डे जी की बात से यह सिद्ध हो पाता है कि श्री महावीरजी के मंदिर का निर्माण दीवान जोधराज ने कराया।

डॉ. गोपीचन्द्र वर्मा (सेवा निवृत प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय, बांसवाडा) ने अपनी पुस्तक “दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी का संक्षिप्त इतिहास एवं कार्य विवरण” में श्री महावीरजी के मंदिर से सम्बंधित सभी प्राचीन दस्तावेजों को संग्रहीत किया है। जिससे यह पता चता है कि प्रारंभ से ही यहाँ के मंदिर पर दिगम्बर परंपरा के भट्टारकों की गद्दी रही है। इतना ही नहीं, जयपुर राज्य से उन्हें नियमित अनुदान भी प्राप्त होता था। उसमें कुछ जैन लोगों के गोत्रों का भी जिक्र है जो दिगम्बर समाज में ही पाये जाते हैं। इस प्रकार प्रारम्भ से ही दिगम्बर समाज द्वारा ही यहाँ की व्यवस्था व देखरेख की जाती रही है।

इस सब बातों से निष्कर्ष निकलता है कि श्री महावीरजी का मंदिर प्रारंभ से ही दिगम्बर आम्नायी रहा है । निचली अदालत दिगम्बरों के पक्ष में अपना फैसला दे चुकी है, फिर भी श्वेताम्बरों ने पुनः याचिका दायर कर दी है। हमारा मानना है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों को अनावश्यक मुकदमेबाजी में अपनी शक्ति के दुरूपयोग से बचना चाहिए और सौहार्द का वातावरण स्थापित करना चाहिए। वैसे भी जैन समाज की कुल आबादी पूरे देश की आबादी का मात्र 0.4% ही है। जैन समाज के सामने अनेक मुद्दे हैं जिन्हें हम सब को मिलकर सुलझाना चाहिए।

डॉ. अनिल कुमार जैन
बापू नगर, जयपुर

This Post Has One Comment

  1. Raman Ahale

    बेहद सटीक और सप्रमाण 🙏

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