श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

कहानी सबसे सुहानी

छल-कपट

मायाचारी छिपती नहीं

एक बहुत ही सुंदर वन था। जिसमें बहुत ही सुंदर वृक्ष थे उन वृक्षों पर पक्षी रहते थे। उसी जंगल में एक गीदड़ रहता था वह अपने आपको उन पक्षियों के बीच बड़ा मानता था। तथा उसी जंगल से कुछ दूरी पर शिकारी रहते थे । एक बार वह घूमते-घूमते जंगल में शिकारियों के बीच चला गया। लेकिन वहाँ शिकारी नहीं थे। वे कहीं चले गये थे। उसे वहाँ एक शेर की खाल मिल गई। वह उसे पहिन कर जंगल की ओर वापिस आ गया । और अपने आपको उन सभी पक्षियों के बीच राजा मान कर अधिकार जमाने लगा । एक बार उसकी इस खाल की पहिचान एक बाज ने कर ली और उसने सभी पक्षियों से कहा- चलो, अब हम सभी मिलकर उसे खदेड़ना शुरू करते हैं तथा सभी ने मिलकर उसे खदेड़ना शुरु कर दिया और वह दौड़ते-दौड़ते जंगल के बाहर रंगरेज के दरवाजे पर पहुँचा साथ ही पीछे-पीछे सारे पक्षी पहुँच गये। वह परेशान हो गया और रंगरेज के रंग भरे पात्र में गिर कर मर गया जिससे उसका रहस्य खुल गया। इस प्रकार कभी भी मायाचारी नहीं करना चाहिये । अपने वास्तविक स्वभाव में ही रहना चाहिये । क्योंकि मायाचारी कभी छिपती नहीं है, बल्कि एक न एक दिन प्रकट हो जाती है।

बगुला भक्ति भी मायाचारी

बात उस समय की है जब राम, लक्ष्मण तथा सीता १२ वर्ष के वनवास में विहार करते हुये पम्पापुर सरोवर पर पहुँचे। वहाँ चारों तरफ की हरियाली अति मनोहर थी । उद्यान वृक्षों, लताओं, बेलों तथा फल-फूल के अनेक प्रकार के वृक्षों की शोभा से शोभायमान हो रहा था। उस उपवन की निराली छटा देख सभी हर्षित थे, खुश थे। उसी सरोवर में लक्ष्मण ने एक बगुला देखा। वह योगी की तरह बैठा था राम ने भी उसे देखा। लक्ष्मण ने उसे देख राम से कहा- भैया, यह कितना सुंदर है देखो। राम ने कहा देख रहा हूँ। लक्ष्मण ने कहा- नहीं भैया, देखो तो यह कितना सुंदर है, साथ ही एक पैर पर खड़ा है, गर्दन को नीचे करके खड़ा है, एक योगी की तरह योग साधना कर रहा है, अभिमान से रहित है, दृष्टि भी एकाग्र है, ‘चंचलता नहीं है, पलक भी नहीं झपक रहा है। राम बोले- क्या बार-बार, देखो देखो यही रट लगा रखी है ? देख तो लिया है। लेकिन लक्ष्मण फिर भी राम से बार-बार आग्रह करते रहे और जब लक्ष्मण नहीं माने तो राम ने कहा कुछ देर पहिले यहाँ विश्रांति कर लें फिर आपके प्रश्न का उत्तर देंगे। अब लक्ष्मण की उत्सुकता बढ़ जाती है और राम से कहते हैं-भैया नहीं, आप बताइये कि क्या बात है ? तब राम ने कहा कि अगर मैं अभी कहूँगा तो तुमको विश्वास नहीं होगा। लक्ष्मण कहते हैं-कैसे नहीं होगा ? तब राम कहते हैं-थोड़ी देर रूको बताऊँगा, और उसी समय मछली उचक कर पास आती है कि वह बगुला उसे पकड़ लेता है और उड़ जाता है। राम कहते हैं कि – देख लिया लक्ष्मण । लक्ष्मण को बहुत आश्चर्य हुआ। राम कहते हैं –

उज्जवल वर्ण गरीब गति, एक टांग मुख ध्यान ।। देखत लागत भक्त सम, निपट कपट की खान ।।

इस प्रकार बगुला की तरह भक्ति नहीं करना चाहिये क्यों कि जो बाहर में बहुत अच्छी होती है लेकिन अंदर में मायाचारी रहती है।

मायाचारी से विश्वास समाप्त होता

एक बार की बात है कि एक नगर में एक ग्वाला (वरेदी) था। वह गायों को रोज चराने जंगल में ले जाता था। वह सरल, सदाचारी, भद्र परिणामी था तथा अच्छी तरह गायों का पालन-पोषण करता था। उसमें बहुत सारी अच्छाईयाँ थी लेकिन एक दुर्गुण था कि वह हमेशा धोखा करता था, वह गायों को पहाड़ पर ले जाता और पहाड़ की ऊँची चोटी पर पहुँच कर वहाँ से आवाज लगाता था कि अरे भैया दौड़ो-दौड़ो भालू आया है, गायों को पकड़ कर के ले जा रहा है, खत्म कर रहा आदि-आदि अनेक प्रकार की बात करता था। जिससे गाँव के लोग उसके पास बचाने के उद्देश्य से आ जाते थे और लोगों के पास आने पर वह कहता कि अरे ! कोई नहीं आया और ठहाका लगा कर हँसने लगता था। कभी-कभी वह झूठ भी बोलने लगता था कि हमने नहीं किसी और ने कहा होगा। इस प्रकार जब बहुत दिन हो गये और लोगों ने देखा कि यह परेशान करता है तो उस पर सभी का विश्वास समाप्त हो गया और धीरे-धीरे वह आवाज लगाता लेकिन कोई भी गाँव का व्यक्ति नहीं आता। इसी बीच एक घटना घट गई कि वह गायों को लेकर जंगल पहुँचा और उसके पास भालू आ गया तथा वह गायों को पकड़ कर ले गया । तब उसने सुरक्षा के लिये आवाज लगाई पर कोई भी व्यक्ति उसके पास नहीं पहुंचा और भालू ने उसे घायल कर दिया आक्रमण करने के बाद गाँव के लोगों को पता चला तो वे सभी वहाँ पँहुचे। तब उसने कहा- आप सभी मेरे कैसे भैया हो, कैसे पड़ोसी, रिश्तेदार हो कि मेरे आवाज लगाने पर भी आप कोई भी नहीं दौड़े ? और वह सभी को उलाहना देता है। तब पड़ोसी कहते हैं कि भैया, हम सभी दौड़ आते, अगर तुम किसी के साथ छल करके अपना विश्वास समाप्त नहीं करते, क्योंकि छल व मायाचारी करने वाले का विश्वास समाप्त हो जाता है । विश्वासहीन जीवन, जीवन को बिगाड़ देता है।

मायाचारी कायरता का प्रतीक

किसी जंगल में गधों का एक समूह था, एक बार एक गधे को जंगल में किसी मृत शेर की खाल मिल गई और उस गधे ने उस खाल को ओढ़ लिया। उसने सोचा अब ठीक रहा, मैं सारे गधों के समूह पर शासन करूँगा और वह उस खाल को पहिन कर अपने समूह में रहने लगा। एक दिन वह अपने समूह के साथ जंगल गया तो ऊपर पहाड़ की चोटी पर एक शेर खड़ा था, उसने जब देखा कि मेरा भाई इन गधों के बीच में कैसे रह रहा है ? वह सोचता है कि अगर यह शेर होगा तो मेरे पास आ जायेगा और नहीं होगा तो चला जायेगा। क्योंकि वह जानता था कि मेरा भाई कायर नहीं हो सकता है। और वह उस पहाड़ की चोटी पर से एक दहाड़ लगाता है कि शेर के रूप में उपस्थित गधा उस दहाड़ को सुन कर भागता है और सुरक्षा की खोज में उसकी खाल निकल जाती है। जिससे सभी लोग उसे पहिचान जाते हैं। उसका भेद खुल जाता है जिसके कारण उसे समूह के बीच अपमानित होना पड़ता है । अतः कायर व्यक्ति ही मायाचारी करता है वीर नहीं ।

Leave a Reply