हायकू जापानी छंद की कविता है, इसमें पहली पंक्ति में 5 अक्षर, दूसरी पंक्ति में 7 अक्षर, तीसरी पंक्ति में 5 अक्षर होते हैं।
हायकू में संक्षेप में सार गर्भित बहु अर्थ को प्रकट करने वाले शिक्षाप्रद व प्रेरणास्पद विचार होते हैं।
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज द्वारा रचित कुछ हायकू प्रस्तुत हैं :
1️⃣ फूलों की रक्षा
कांटों से हो, शील की
सादगी से हो.
2️⃣ तेरी दो आंखें
तेरी ओर हजार
सतर्क होजा.
3️⃣ विष का पान
समता सहित भी
अमृत बने.
4️⃣ तटस्थ व्यक्ति
डूबता नहीं हो, तो
पार भी ना हो.
5️⃣ मलाई कहां
अशांत दूध में सो
प्रशांत बनो.
6️⃣ पर की पीड़ा
अपनी करुणा की
परीक्षा लेती.
7️⃣ झूठ भी यदि
सफेद हो तो सत्य
कटु क्यों ना हो.
8️⃣ दो जीभ ना हो
जीवन में सत्य ही
सब कुछ है.
9️⃣ अनेक यानि
बहुत नहीं किंतु
एक नहीं है.
1️⃣0️⃣ बचो बचाओ
पाप से पापी से ना
पुण्य कमाओ.
1️⃣1️⃣ डाट के बिना
शिष्य और शीशी का
भविष्य ही क्या.
1️⃣2️⃣ गुरु ने मुझे
क्या न दिया हाथ में
दिया दे दिया.
1️⃣3️⃣ अपना मन
अपने विषय में
क्यों न सोचता.
1️⃣4️⃣ जगत रहा
पुण्य पाप का खेत
बोया सो पाया.
1️⃣5️⃣ मौन के बिना
मुक्ति संभव नहीं
मन बना ले.
1️⃣6️⃣ खाल मिली थी
यहीं मिट्टी में मिली
ख़ाली जाता हूं.
1️⃣7️⃣ साधु वृक्ष है
छाया फल प्रदाता
जो धूप खाता.
1️⃣8️⃣ काले मेघ भी
नीचे तपी धरा को
देख, रो पड़े.
1️⃣9️⃣ पाषाण भीगे
वर्षा में, हमारी भी
यही दशा है.
2️⃣0️⃣ मेरी दो आंखें
मेरी ओर हजार
सतर्क होऊं.
संकलनकर्ता : उर्मिला जैन
मुक्तानंद नगर जयपुर