आत्म चिन्तन के तरीके-
1. अपनी बुराईयों को विचारें।
2. दूसरों की अच्छाईयों को देखे।
3. अपनी अच्छाईयों को देखे।
4. दूसरों की बुराईयों को देखे।
आचार्य कहते हैं- दुःखमेव वा। अर्थात् पांचों पाप दुःख के हेतु है। मैं इनसे कैसे बचूं? क्या उपाय अपनाऊँ? जब ऐसे विचार आते हैं तो अयत्न पर ब्रेक लगता है और यत्नाचार पूर्वक प्रवृत्तियाँ प्रारंभ हो जाती है। सामायिक में जब व्यक्ति बैठता है तो अपनी बुराईयों का चिंतन करता है। मेरे अंदर ये ये बुराईयां हैं। नकारात्मक चिंतन, सकारात्मकता में बदल जाता है पश्चिम की ओर का मुख पूर्व की ओर हो जाता है। नहीं-नहीं मैं तो यह गलत कर रहा हूँ यह मेरा स्वभाव नहीं है। आज मुझसे बड़ा अपराध हो गया, मैंने अनछना पानी ढोल दिया हमारा धर्म कहता है पानी की एक बूंद में असंख्यात जीव होते हैं और मैंने इतना पानी गिराया कितने जीवों की हिंसा हो गई होगी, अब मैं व्यर्थ का पानी नहीं गिराऊंगा, नल बंद कर दूंगा। इस प्रकार एक-एक छोटी-बड़ी गल्ती पर दृष्टि देता जाता है और प्रयास करता है कि अब ऐसी गल्ती नहीं होने दूंगा। गल्ती को स्वीकारना अपराध बोध है। और अपराध बोध आत्मोन्नति का सशक्त साधन है। जहाँ गल्ति स्वीकारी गयी है वहाँ नियम से सुधार भी होगा। क्योंकि जिसे गलत माना है उससे ग्लानि होती है जिससे ग्लानी होती है उससे विरंक्ति होती है जिससे विरक्ति होती है वह नियम से छूट ही जाता है। आत्म दोषों का निरीक्षण जब चलता है तो आत्म निंदा, गर्हा की भूमिका बनती है। पापों का पश्चाताप् होना प्रथम प्रायश्चित्त है। जो कि पापों को हल्का करने में सशक्त हेतु है।
आत्मचिंतन करने का दूसरा तरीका है अपनी अच्छाईयों को देखें आप कहेंगे। अच्छाई देखने से क्या लाभ तो बंधुओं उससे भी बहुत से लाभ है प्रथम तो अपनी अच्छाई देखने से हमारे अन्दर यदि हीनता जैसा दुर्गुण है तो वह दूर हो जाता है जीवन में कुछ कर गुजरने का उत्साह जगता है और भावना होती है कि मैं अपने इस गुण को और वृद्धिगत करूँगा और अच्छाई से अच्छाईयाँ बढ़ती जाती है। आत्म चिंतन का तीसरा तरीका है।
दूसरों की अच्छाईयों को देखें जो व्यक्ति निरंतर दूसरों की अच्छाईयाँ देखते है वे गुणग्राही प्रकृति के कहलाते है। दूसरों के अच्छे गुण देखने से हमें सारी सृष्टि अच्छी नजर आती है और Mental freshness बढ़ती है और उन अच्छाईयों का संचार हमारे अन्दर भी होता जाता है। फलस्वरुप हम बुराईयों के कचरे से खाली हो जाते है। गुणग्राहकता का यह गुण हमें लोकप्रिय भी बना देता हैं तथा गुणग्राहकता हमारे अन्दर लघुता की भूमिका भी निर्माण करती है और लघुता सदैव आत्मोन्नति में साधक बनती है
आत्म चिंतन का चौथा तरीका है-
दूसरों की बुराई पर एक नजर अवश्य डालें आप कहेंगे यह तो विपरीत बात हो गई क्या कभी दूसरों की बुराई भी देखना चाहिए? तो हाँ बंधुओं। दूसरों की बुराई पर भी कभी कभी एक नजर डालना जरूरी है, क्यों? तो कारण यह है कि हम दूसरों की बुराई को देखकर सावधान हो जाए कि ऐसी mistake कहीं हमारे अंदर तो नहीं है यदि है तो हम उसे पनपने के पूर्व ही जड़ से उखाड़ फेकेंगे। दूसरे की बुराई इसलिये नहीं देखना कि हम दूसरों की निंदा करें। उसे भला-बुरा कहे अपितु इसलिये हम उस जैसे कभी नहीं बनेंगे, उसके जैसे दुर्गुण अपने अन्दर कभी नहीं आने देंगे। यदि आपका दृष्टिकोण इतना निर्मल है तो आप अवश्य दूसरों की बुराई पर एक नजर डालें और यदि आप अपना सोच उत्कृष्ट नहीं बना सकते तो बुराई के दिखते ही आँखे बंद कर ले कि मुझे बुरा नहीं बस मात्र अच्छा ही देखना है।
यदि आपने ऐसा आत्मचिंतन प्रारंभ कर दिया तो आप पायेंगे कि आप विशालता और उदारता के आकाश में विचरण कर रहे है। एक स्वतंत्र पक्षी की तरह। जहाँ आनन्द की लहरें व शान्ति की बहार है एक गुनगुनाता सा प्राकृतिक नजारा जो हरा-भरा रखेगा। आपकी आत्मा को अपूर्व शांति, शीतलता के अनुपम प्रकाश से।