श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

“फ्यूज्ड (उड़ चुके) बल्ब – क्लब”

रिटायरमेंट के बाद बहुत से लोग बेचैनी और अकेलेपन का अनुभव करते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि वे अपनी पिछली नौकरी में पद, प्रतिष्ठा, पैसा और सम्मान पाते रहे हैं। इन सब चीज़ों ने उनके मन में अनजाने में एक अहम (Ego) का निर्माण कर दिया होता है। रिटायरमेंट के बाद जब पद चला जाता है, तो उन्हें लगता है कि मानो सब कुछ खत्म हो गया हो।

आज हम एक सज्जन की कहानी सुनते हैं, जो इसी तरह के दर्द और अनजाने अहंकार से पीड़ित थे। उनके घर के सामने एक गार्डन था। वहाँ उनके जैसे ही अन्य बुजुर्ग भी आते और एक समूह में बैठकर बातें करते। वह सज्जन भी वहाँ जाने लगे, लेकिन अपने अंदर के अहंकार के कारण हमेशा अलग ही बैठते। उन्हें लगता था कि वह लोग सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हैं और ऐसे लोगों के साथ बैठने से उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाएगी।

कुछ दिनों तक वह सज्जन दूर या नजदीक के बेंच पर बैठकर उनकी बातें सुनते रहे। उन्हें आश्चर्य होता कि उन बुजुर्गों की चर्चा का विषय विज्ञान, राजनीति, दर्शन, देश-विदेश आदि होता था। वे कभी-कभी चाय-नाश्ता मंगवाकर भी खाते थे, जिसे वह सज्जन मिडिल क्लास की आदत मानते थे।

अंततः उन्हें भी अकेलापन महसूस होने लगा। परंतु उनका अहंकार उन्हें उस समूह में जाने नहीं दे रहा था। उन्हें उम्मीद थी कि वह समूह के लोग खुद उन्हें बुलाएंगे। लेकिन सच तो यह था कि उन्हें ही पहल करनी चाहिए थी।

भाग्यवश, एक दिन समूह के एक बुजुर्ग ने आगे बढ़कर उन्हें नाश्ते में शामिल होने का निमंत्रण दिया। उन्होंने परिचय पूछा, और यही वह मौका था जिसका वह सज्जन इंतजार कर रहे थे। उन्होंने अपनी शानदार नौकरी, अपने पद, बंगला, गाड़ी आदि की बड़ी-बड़ी बातें करना शुरू कर दीं। उन्हें लगा कि इस समूह के मध्यमवर्गीय लोग उनकी बातों से प्रभावित होंगे और उनकी प्रशंसा करेंगे।

समूह के लोग उनकी बातें चुपचाप सुनते और उनकी उपलब्धियों की सराहना करते। यह कुछ दिनों तक चलता रहा। लेकिन धीरे-धीरे उस सज्जन को महसूस हुआ कि वह बस अपनी ही बातें करते रहते हैं, जबकि समूह के बाकी सदस्य अपनी मस्ती में चर्चा करते और नाश्ते का आनंद लेते।

एक दिन, उन्होंने समूह के एक बुजुर्ग से पूछ ही लिया, “आप पहले क्या काम करते थे?”

उन बुजुर्ग ने सहजता से जवाब दिया, “मैं पहले क्या करता था, इसका अब क्या महत्व है?”

यह जवाब सुनकर वह सज्जन हैरान रह गए। उन्हें लगा कि शायद उनका उच्च पद देखकर ये लोग अपने आप को छोटा महसूस कर रहे होंगे। लेकिन फिर एक अन्य बुजुर्ग ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा, “भाई, यहाँ मौजूद किसी भी व्यक्ति से यह सवाल पूछेंगे तो यही जवाब मिलेगा।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारे समूह का नाम ‘फ्यूज्ड बल्ब क्लब’ है। हम अपने भव्य अतीत को भूलकर वर्तमान में जीते हैं। हमारा अतीत चाहे जैसा भी रहा हो, हम उसे भुलाकर अब एक सम्माननीय बुजुर्ग नागरिक और परिवार के सदस्य के रूप में जीवन जीते हैं।”

इसके बाद उन्होंने बताया कि समूह के सदस्य कौन हैं—किसी ने बताया कि एक सदस्य ISRO के वरिष्ठ वैज्ञानिक थे, जिनके बेटे अमेरिका में हैं। लेकिन वे भारत की सामाजिक जीवनशैली को पसंद करते हैं। अन्य सदस्य कोई पूर्व सांसद, कोई IAS अधिकारी, कोई विश्वविद्यालय के कुलपति और कोई रेलवे प्रबंधक रहे हैं।

यह सब सुनकर उन सज्जन की स्थिति “काटो तो खून नहीं” जैसी हो गई।

फिर एक बुजुर्ग ने कहा, “हम सब फ्यूज्ड बल्ब यानी उड़ चुके बल्ब हैं। अब हमारा उद्देश्य अपने नए जीवन अध्याय का आनंद लेना है। अब तक हमने संस्थानों और परिवार के लिए काम किया। अब हम अपने लिए जी रहे हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “उगते सूरज को सब पूजते हैं। अब हम ढल चुके हैं। यह संसार परिवर्तनशील है, और यह हमें स्वीकार करना ही होगा। भूतकाल में जो कुछ भी हासिल किया, वह हमारे लिए उपलब्धि है। लेकिन अब उस भूतकाल को पीछे छोड़कर नए जीवन की ओर बढ़ना है।”

अंत में उन सज्जन ने आँखों में नमी लिए समूह से प्रार्थना की, “कृपया, आज से मुझे भी अपने फ्यूज्ड बल्ब क्लब का सदस्य बना लीजिए।”

शिक्षा:

पद, प्रतिष्ठा और अहंकार छोड़कर सादगी से जीवन जीना सीखें। बीते समय को पीछे छोड़कर वर्तमान का आनंद लें। तभी असली खुशी का अनुभव होगा।

This Post Has One Comment

  1. मनीष जैन

    बहुत ही अच्छा लेख है।उचित मार्ग दर्शन है…

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