श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

पर्वाधिराजपर्यूषण पर्व

पर्यूषण पर्व एक परम पावन साधना पर्व है, जिसका जैन धर्म में बहुत महत्व है। आध्यात्मिक एवं धार्मिक कार्यों के लिए पर्यूषण पर्व ही जैन धर्म में सबसे बड़ा उत्सव है। साधना पक्ष के जो अभ्यासी हैं. साधना मार्ग के जो पथिक हैं उनके लिए इन दिनों का वस्तुतः अत्याधिक महत्व है। संसार के आमोद प्रमोद के मिलने जुलने तथा भौतिक सुख सुविधाओं के प्रसंग अन्य अवसरों एवं उत्सवों पर हमें मिल जाते हैं किन्तु आध्यात्मिक, धार्मिक कार्य, आत्मशुद्धि, दर्शन, ज्ञान, चरित्र निर्माण, तप आदि का पूर्ण लाभ हमें पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व में ही मिलता है।

पर्यूषण का लक्ष्य

पर्यूषण का मुख्य लक्ष्य है आत्मशुद्धि करना। आत्मशुद्धि के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक आचार पद्धति, साधना क्रम का रूप रखा गया है कि किस प्रकार की साधना से किस प्रकार की आचार पद्धति से साधक अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकता है अपना जीवन को विशुद्ध कर सकता है।

पर्यूषण का अर्थ

पर्यूषण का एक अर्थ यह हो सकता है कि चारो ओर फैले बाहर के कषायों से मन को हटाकर निजघर में आध्यात्मिक भावों से आत्मा के स्वभाव में बस जाना इसी का नाम पर्यूषण पर्व है।

पर्यूषण पर्व का दूसरा अर्थ यह भी निकाला जा सकता है “उष” का अर्थ दहन अर्थात् जलाना, “परि” अर्थात चारों ओर से अच्छी तरह से कर्मों को, विषय विकारों, मिथ्यात्व का जो कचरा है उस कचरे को तपस्या की अग्नि से जलाया जाय उसका नाम पर्यूषण है।

जैन धर्म में पर्यूषणपर्व श्वेताम्बर मत के अनुसार भाद्रवदी 13 से भाद्रसुदी 5 (पंचमी) तक 8 दिवस के अठाई के रूप में मनाये जाते हैं। एक एक दिवस को एक एक गुण के अनुसार प्रथम दिवस दर्शन दिवस, दूसरा दिवस ज्ञान, तीसरा चरित्र, चौथा तप, पांचवा भक्ति दिवस, छठा स्वाध्याय एवं सातवां दान तथा अन्तिम दिवस क्षमा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इसी प्रकार दिगम्बर मत के अनुसार भाद्रसुदी पंचम से भाद्रसुदी चतुर्दशी तक 10 दिवस के दस लक्षण पर्व के रूप में मनाये जाते हैं, प्रथम उत्तम क्षमा, द्वितीय उत्तम मार्दव, तृतीय उत्तम आर्जव, चौथ उत्तम शौच, पांचवा उत्तम सत्य, छठा उत्तम संयम, सांतवा उत्तम तप, आठवा उत्तम त्याग, नवां उत्तम आकिंचन्य, दसवां ब्रह्मचर्य।

पर्यूषण पर्व के प्रत्येक दिनों का महत्व

दशलक्षण महापर्व ऐसा पर्व है जो परमोदात्त भावनाओं का प्रेरक, वीतरागता का पोषक तथा संयम, साधना व त्याग का पर्व है।

दिगम्बर मत के अनुसार पर्यूषण पर्व के दिवस 10 होते हैं। इन 10 दिनों में श्रावकगण संयम से रहते हैं, मन्दिरों में पूजन पाठ करते हैं, व्रत, नियम, उपवास रखते हैं, हरित पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं। स्वाध्याय तत्व चर्चा करते हैं। ये दश धर्म के लक्षण है। उक्त दस धर्म चरित्रगुण की निर्मल पर्यायें हैं।

धर्म के इन दस गुणों को 10 दिन में एक एक दिवस पर एक एक गुण को ग्रहण करने के लिए रखा गया है।

जैन धर्म में 8 कर्म माने गये हैं जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह, क्रोध, मान, माया है तथा 8 ही आत्मा के गुण बताये गये हैं एवं श्वेताम्बर मत के अनुसार पर्यूषण के दिवस भी आठ है। प्रमाद एवं मद भी आठ-आठ है। क्या ही सुन्दर व्यवस्था है अगर मनुष्य पर्यूषण पर्व के आठ दिनों में आत्मा पर लगे एक एक दुर्गुण को, एक एक कर्म बन्धन को एक एक मद और प्रमाद को एक एक दिन में कम करता जावे और आत्मा के एक एक गुण को गृहण करता जावे तो अपनी आत्मा को सब गुणों से चमका सकता है। पर्यूषण पर्व के आठ दिवसों में एक-एक दिवस का महत्व है। जैन धर्म में जो आठ गुण बताये है उनके अनुसार एक एक दिवस एक एक गुण के लिए रखा गया है। प्रथम दिवस दर्शन दिवस शुद्ध दर्शन (दृष्टि) से ही ज्ञान, चरित्र आदि प्राप्त होते हैं। अतः दर्शन को प्रथम रखा गया है। दूसरा दिवस ज्ञान का है ज्ञान के बगैर दर्शन का महत्व नहीं है। तीसरा दिवस चरित्र के लिए है। चतुर्थ दिवस तप का है। तप का जैन धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है तब से कर्मों का जलाकर आत्मशुद्धि की जा सकती है। जिसके द्वारा कर्मों को जलाया जाय उसे तप कहते हैं। पांचवा भक्ति दिवस, छठा स्वाध्याय दिवस, सातवा दान दिवस एवं आठवा क्षमा दिवस है जिसे संवत्सरी पर्व कहते हैं। संवत्सरी का दिवस आत्मा का समीचीन रूप से शोधन करने का दिवस है।

क्षमा का महत्व

जैन धर्म में क्षमा का बहुत महत्व है। क्षमा दिवस को हम एक दूसरे से विगत में किये गये अपराधों, गलतियों आदि के लिए मन, वचन, काया से एक दूसरे से मिलकर क्षमा याचना करते हैं। किन्तु हम अगर मनन करके वास्तविकता देखे तो यह सब हम परम्पराओं की पालना मात्र करते हैं। मात्र औपचारिकताएँ निभाते हैं। क्षमा दिवस से ठीक पूर्व तक हम गलतियां करते रहेंगे एक दूसरे को मन वचन से और यहां कि तन से भी कष्ट देते रहेंगे और क्षमा दिवस को क्षमा याचना कर लेगें। और फिर पुनः वही क्रम शुरू हो जाता है। क्या यह मात्र औपचारिकता नहीं है। दूसरी बात यह है कि क्षमा दिवस पर हम क्षमा याचना उनसे करते हैं जिनसे कोई वैरभाव, द्वेष, मनमुटाव आदिनहीं है बल्कि संगे संबंधी है। हम उनसे कदापि क्षमा नहीं मांगते जिनसे वैर भाव, द्वेष, रंजिस आदि है उनसे क्षमा मांगना ही सही मायने में क्षमा याचना करना है नहीं तो मात्र औपचारिकता है।

क्षमा दिवस के अवसर पर हमें सामूहिक रूप से भी यही प्रयास करने चाहिए कि जिन भाईयों में आपस में वैरभाव मनमुटाव है उनकी मन, वचन से क्षमायाचना कराके उनमें पुनः मेल जोल, प्रेम भाव, स्थापित कराया जावे। मेरे विचार अनुसार क्षमा दिवस पर हमें एक दूसरे से विगत में किये गये अपराधों, गलतियों की क्षमायाचना के साथ यह भी संकल्प लेना चाहिए कि भविष्य में कोई अपराध, गलतियां किसी भी प्राणी मात्रके साथ तन से मन से नहीं करेंगे, तब ही सच्चा क्षमा दिवस पर्यूषण पर्व जैन धर्मालंबियों का मानना सार्थक होगा।

 

श्रीचन्द जैन
110 अशोक विहार विस्तार गोपालपुरा बाईपास,
जयपुर

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