श्री पल्लीवाल जैन डिजिटल पत्रिका

अखिल भारतीय पल्लीवाल जैन महासभा

(पल्लीवाल, जैसवाल, सैलवाल सम्बंधित जैन समाज)

जीवन प्रभु का प्रसाद है

है सुनहरी पलो के कर्णधार :-

प्रभु ने मनुष्य के सांचे में सत्य और असत्य के बीज, पाप-पुण्य के कण, दुख-सुख के पौधे, अश्रुधारा के साथ मुस्कराहट के अणु, तथा साथ ही जीवन में इनके कार्य हेतु कृति और और वृति की रचना कर दी। कृति के परिमाणु शरीर में और वृति के परिमाणु मन में डाल दिये। इन सब का परीक्षण तथा उयोगिता के परिणाम हेतु नर्क, स्वर्ग की रचना कर कर्म को द्वार पाल बना दिया।

कर्म ने लेखा जोखा रखने के लिए मनुष्य के आचार -विचार, कृति – वृति के रिकार्ड के अनुसार ही निर्णायक बना।

हे आत्म जन – शरीर की चेष्टा आचार है, मन की चेष्टा बिचार है आचार ही कृति है और विचार ही वृति है। अपराध शरीर से और पाप मन से होता है। मन की वृति को शरीर की कृति में परिवर्तन करता है। विचार शरीर से 100 गुना शक्तिशाली होता है । पाप पुण्य के कण मन में ही उत्पन्न होते हैं। शरीर तो उसका आज्ञाकारी सेवक है। मन का कोई संविधान नहीं । मन चंचल है। इसकी गति हवा से भी तेज है । मन उड्डान भरकर घर घर गौचरी करता है। जिससे हमारा जीवन अवव्यय में कोठरी में जा रहा है।

हे तत्व ज्ञानी – मन को संयम की डोरी से बाँध कर स्वाध्याय की डाली पर लटका दे। आँख कान, मन के ये मुख्यमंत्री है। इनमें जो तेजाब जैसे कण है, उन्हें निकालें, ये कण जलनशील है। इंसान दूसरे की खुशी को अपनी तिजोरी में कैद करने की कोशिश करता है | विचार रूपी मैल से हृदय दर्पण मैला रहता है।

हे कर्णधार – आपके आचार और विचार ही मुल्यबान है। पलक से चाँद उतरेगा, चेहरा मुस्करायेगा, शरीर में प्रसन्नता का समुद्र लहरायेगा। स्वभाव और आदतों के बादल को एकत्रित कर मधुर फुहारों से संसार को तरबतर कर, सन्तोप और धैर्य का ज्यूस पी ताकि जीवन – सरस बन जाए । सत्य की लहरों में डुबकी लगा । कोध की तरंगों में न फंस, अधिक धन के अहंकार से गलत राह की यात्रा न कर, अहंकार की पगड़ी न बाँध |

आपको ज्ञात होगा विचार शरीर से 100 गुना शक्तिशाली होता है। कर्म की स्मृति की रील बड़ी तेजी के साथ घूमती है। जीवन में आग के पीछे चिन्गारी है, उसे मीठा बोलकर बुझा । व्यवहार महकदार बनाना है। कहते है जब भीतर दीपक जलता है, तो जागृति स्वतः ही आ जाती है। दस मिनट का क्रोध हमारे छ सौ सैकेण्ड की प्रसन्नता छीन लेगा खुशबू बन कर जीओ और खुशबू से जीने दो । शब्दों की माला ऐसी बनाएं जिसे भी पहनाए उसके उदास चेहरे पर मुस्कराहट आ जाएँ। अच्छे विचार ही जीवन को महकाते हैं। खिलता हुआ चेहरा मस्तिष्क के कचरे को दूर करता है।

हे श्रेष्ठ जीवनधारी – मन का आँगन साफ हो, महक दार हो, खिलते फूल मुस्कराहट का कोई मोल नहीं, न कोई टैक्स, मुस्कराते रहो। अगर मीठा बोलने से किसी का खून बढ़ जाए तो वो भी एक प्रकार से रक्तदान है। मुस्कान तो खुशियों का समुद्र है । मुस्कान से खिलता चेहरा हर गम या दुख की दवा है। मुस्कान और मन ये दो ऐसे इत्र है जितना छिडकोगे उतनी महक आयेगी।

आपके घर हो खुशियों का ए.टी.एम.। जिज्ञासा से बिखरते रहे, आपके जीवन की खुशबू। याद रहे जीवन प्रभु का प्रसाद है। जीवन भी बोलता है, जब विचार के पौधे खिलखिला रहे हैं।

छगन लाल जैन शाह( हरसाना वाले)
अलवर

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