एक बहुत ही होशियार डॉक्टर थे, उनकी खासियत थी कि वे हर पल मुस्कराते रहते थे। सभी उनको हँसमुख डॉक्टर के नाम से जानते थे। उनके बारे में यह कहा जाता था कि वे मौत के मुँह में से भी बीमार को वापस ले आते थे।
उन डॉक्टर के पास जो भी मरीज आते, वे उनसे एक पत्र लिखवाते थे। मरीज से यह पूछते कि, “आप इस पत्र में लिखें कि यदि आप बच गए तो आप अपना बाकी का जीवन किस तरह से जियेगें और आपके जीवन में क्या करना शेष रह गया है , जो आप करना चाहेंगें ?”
सभी मरीज अपने मन की बात लिखते।
“अगर मैं बच गया तो अपने परिवार के साथ अपना समय बिताउँगा।”
“मैं अपने पुत्र और पुत्री की संतानों के साथ जी भर कर खेलूँगा।”
“मैंने अपने पति और उनके माता पिता का बहुत दिल दुखाया है। ऑपरेशन के बाद मैं उन सबसे माफी मागूँगी और उनके साथ हँसी खुशी मिलकर रहूँगी।”
“किसी ने जी भर कर पर्यटन, घूमने का शौक पूरा करने का लिखा।”
“किसी ने तो यह भी लिखा कि मेरे द्वारा जिंदगी में यदि किसी को ठेस पहुँची है, तो मैं उससे माफी मागूँगा।”
“किसी ने लिखा कि मैं अपनी जिंदगी में हँसी की मात्रा बढ़ा दूँगा।”
“जिंदगी में किसी से भी शिकायत नहीं करूँगा और ना किसी को शिकायत का मौका दूँगा। किसी का भी मन न दुखे ऐसा काम करूँगा।”
“किसी ने लिखा कि मैं ध्यान के द्वारा जीवन के वास्तविक लक्ष्य को जानना चाहूँगा।”
बहुत से लोगों ने तरह-तरह की बातें लिखी।
डॉक्टर आपरेशन करने के बाद जब मरीज को छुट्टी देते तब उनके द्वारा लिखा हुआ पत्र उन्हे वापिस देते थे और कहते कि,”आपने जो पत्र में लिखा है, वह आप अपनी जिंदगी में कितना पूरा कर पा रहे हैं, उस पर निशान लगाते जाएँ। एक साल बाद वापस आएँ और मुझे बताएँ कि आपने इसमें से किस तरह की जिंदगी जी है।”
डॉक्टर के बताए अनुसार हैरान करने वाली बात यह थी कि एक भी व्यक्ति ने आज तक ऐसा नहीं लिखा कि अगर मैं बच गया तो मुझे किसी से बदला लेना है। अपने दुश्मन को खत्म कर दूँगा। मुझे बहुत धन कमाना है। अपने आपको बहुत व्यस्त रखना है। किसी से जीतना है। और अधिक मान सम्मान पाना है।
प्रत्येक का जीवन जीने का नजरिया अलग-अलग था।
डॉक्टर फिर प्रश्न करते, “जब आप स्वस्थ थे, तब आपने इस तरह का जीवन क्यों नहीं जिया, आप को कौन रोक रहा था। अभी कौन सी देरी हो गई है?”
ये तो थी डॉक्टर हँसमुख की कहानी!!
आइए कुछ क्षण हम अपने जीवन की कहानी पर नजर डालते हैं। विचार करें कि हम अपनी जिंदगी किस तरह से जीना चाहते है?
बस इस तरह का जीवन जीना प्रारम्भ कर देते है। जीवन का आनंद तब ही है, जब जीवन की यात्रा पूर्ण हो, उस पल कोई कामना नहीं रहे, कोई ग्लानि ना रहे। और हम कह सके….”हम जैसा सुंदर जीवन जीना चाहते थे, वैसा जीवन जीया।”
कहीं देर न हो जाए!! आपका जीवन मंगलमय हो।
संजय कुमार जैन